Deshi Kahani: सासु मां ससुर जी के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना बंद कीजिए

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Deshi Kahani: सासु मां ससुर जी के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना बंद कीजिए। ” मम्मी आप फिक्र मत करो। मैं मायके आने की कोशिश करती हूं। आज मैं सीधा ससुर जी से ही बात करूंगी। बहुत हो गई उनकी मनमानी। भला ये भी कोई बात हुई। मेरे पापा हॉस्पिटल में एडमिट है और वो है कि मुझे जाने ही नहीं दे रहे हैं। इतना भी क्या अकड़ू होना इंसान को”
मानसी अपनी मम्मी से बोली।

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” बेटा तू हमारे लिए अपना ससुराल खराब मत कर। अभी शाम तक तेरा भाई पहुंच जाएगा। तब तक मैं संभाल रही हूं ना। पर अगर समधी जी तैयार नहीं है तो वहां जबरदस्ती मत करना। वैसे भी आजकल बहुओं की मां बदनाम होती है कि वो उसका घर नहीं बसने देती”
मानसी की मम्मी ने उसे समझा कर फोन रख दिया। आखिर उन्हें अपने पति को भी तो संभालना था जो इस समय अस्पताल में एडमिट है। आखिर था तो एक छोटा सा ऑपरेशन ही, लेकिन मम्मी तो अकेली थी।

मानसी हिम्मत करके अपने सास ससुर के कमरे की तरफ चल दी। पर उसके पैर उसी समय ठिठक गए। जब अंदर से सासू मां की आवाज उसे सुनाई दी। वो ससुर जी को समझा रही थी। और ससुर जी चुपचाप सासू मां की बात सुन रहे थे। ये सुनकर उसे बहुत हैरानी हुई। भला ससुर जी को भी कोई समझा सकता था। उसे तो बिल्कुल यकीन ही नहीं हो रहा था।

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अब तक तो मानसी के सामने उसके ससुर जी की इमेज यही थी कि वो बहुत ही अक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति है। जो अपने आगे किसी को सुनते नहीं। अगर किसी चीज को ना कह दे तो हां करवाना बहुत मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। इस घर में ससुर जी का ही सिक्का बोलता है।


पर आज पता चला कि सिक्का ससुर जी का नहीं सासु मां का चलता है। ससुर जी तो बेचारे कुछ बोलते ही नहीं है। बल्कि सासु मां उन से बुलवाती है। सासु मां जैसे चाबी भर देती है वो उन्हीं की जबान बोलते हैं।


कितनी अच्छी इमेज बनी हुई थी मानसी के सामने उसकी सास की। मां जी बहुत ही शांत स्वभाव की है। ज्यादा कुछ कहती नहीं है। पर आज उस इमेज के टुकड़े टुकड़े हो गए। भला कोई इंसान ऐसे दो चेहरों के साथ कैसे जी सकता है। बोलना है तो खुद सामने बोलो। किसी और के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना तो गलत बात है।


खैर, मानसी को इस घर में आए हुए अभी एक साल ही तो हुआ था, जब उसकी शादी इस घर के बड़े बेटे विनोद के साथ हुई थी। घर में सास ससुर देवीलाल जी और मंजू जी, एक देवर अजय और एक ननद माया थी।


पति विनोद की जाॅब बाहर थी इसलिए वो बाहर रहता था। महीने में एक बार आता था वो भी दो दिन के लिए। मानसी यहां अपने सास ससुर के साथ रहती थी क्योंकि ससुर जी ने शादी के बाद उसे जाने ही नहीं दिया। ये कहकर कि पहले अपने रीति रिवाज को, अपने घर को समझो। पति के साथ तो फिर पूरी जिंदगी रहना है।

Deshi kahani भाभी मां आप भी


मानसी जब भी विनोद के साथ जाने के लिए पूछती या मायके आठ दस दिन रहकर आने के लिए पूछती तो सासु मां ये कहकर मना कर देती कि तुम्हारे ससुर जी ने मना किया है। कहीं पापा जी मम्मी जी को दो बातें ना सुनाएं, ये सोचकर मानसी मन मसोस कर रह जाती।


कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि जब देवर और ननद ने ये पूछा कि भाभी आप हमारे साथ बाजार चलोगे क्या। तो भी मंजू जी मना कर देती। कहती कि तुम्हारे पापा जी को पसंद नहीं है बहू का यूं बाहर जाना। देखो मैं ही कहीं नहीं जा पाती। कहीं भी जाना होता तो तुम्हारे ससुर जी के साथ ही जाती हूं। आखिर वो बहुत गुस्से वाले इंसान है।


अब सासू मां तो ससुर जी के साथ चली जाती है लेकिन मानसी तो इसी घर में रहती है। उसका पति यहां कहां? जिसके साथ वो बाहर भी जा पाए। महीने में दो दिन के लिए आता है। उसमें भी कभी पापा जी को लेकर, तो कभी मम्मी जी को लेकर जा रहा होता है।


लेकिन आज तो उसके पापा की तबीयत खराब थी। उनका अपेंडिक्स का ऑपरेशन होना था। भैया भी घर पर नहीं था। बाहर गया हुआ था। उसे भी शाम तक ही पहुंचना था। मानसी ने मंजू जी से पूछा तो मंजू जी ने कहा,
” मैं तुम्हारे पापा जी से पूछ कर बताती हूं। तब तक तुम नाश्ते की तैयारी कर लो”


कहकर सासू मां कमरे में चली गई। नाश्ता बनते बनते सासू मां कमरे से बाहर निकल कर आई। तब मानसी ने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा,
” मम्मी जी पापा जी ने क्या कहा? क्या मैं चली जाऊं?”
मंजू जी ने उदास होते हुए कहा,
” तुम्हारे पापा जी ने मना कर दिया। कह रहे थे अपेंडिक्स का ही तो ऑपरेशन है, तुम जाकर क्या करोगी। और डॉक्टर सब कुछ संभाल ही लेते हैं आजकल हॉस्पिटल में।‌ मैंने तो बहुत मनाने की कोशिश की। पर वो माने ही नहीं। उल्टा मुझ पर गुस्सा हो गए “


आखिर मानसी मन मसोस कर रह गई। लेकिन जब मम्मी का दोबारा फोन आया तब मानसी ससुर जी से ही सीधे बात करने के लिए उठकर उनके कमरे की तरफ जा रही थी कि तभी कमरे में हो रही बातचीत सुनकर उसके पैर ठिठक गए।


ससुर जी सासु मां से कह रहे थे,
” अरे वो जाना चाहती है तो जाने दो ना। उसकी मम्मी अकेली है। कम से कम मानसी के वहां होने से उन्हें थोड़ी हिम्मत तो मिलेगी। और फिर जवान खून है। किसी चीज की जरूरत भी पड़ी तो भाग-भाग कर संभाल भी लेगी। समधन जी कहां भागती फिरेगी”


” अरे ऐसे कैसे भेज दूं? घर का काम कौन करेगा? मुझसे तो नहीं होता अब घर का काम। और फिर डॉक्टर है ना संभालने के लिए। वो कौन सा वहां पर जाकर डॉक्टर गिरी करेगी। आजकल तो सब कुछ हॉस्पिटल में ही मिल जाता है। पैसा फेंको और तमाशा देखो वाली बात है”

” अरे तो आज के लिए तुम संभाल लेना। नहीं तो माया भी तो है घर में। दोनों मां बेटी मिलकर कर लेना घर का काम। बहू के आने से पहले भी तो घर का काम होता था”
” अच्छा! बहू को क्या मंदिर में बिठाकर पूजने के लिए लाए हो। उसके होते हम दोनों क्यों काम करेंगे। अब ज्यादा उसकी तरफदारी मत करो तुम। जैसी इमेज बना रखी है वैसी ही बनी रहने दो। नहीं तो इन आजकल की लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है। सिर चढ़ कर नाचेगी”
मंजू जी ने कहा।


” अरे तो मुझे क्यों बेवजह विलेन बना रखा है तुमने। हर बात मेरे कंधे पर रखकर क्यों बोलती हो। तुम जो कर रही हो ना बहुत गलत कर रही हो। अरे हम बहु बेटे के लिए लेकर आए थे। लेकिन वो बेचारा वहां परेशान होता रहता है। अपना खाना खुद बनाता है। काम खुद करता है। और यहां बहू को तुमने घर के कामकाज के लिए रख रखा है।

Deshi Kahani: सासु मां ससुर जी के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना बंद कीजिए

जाने ही नहीं देती हो उसे। ऊपर से आज वो इतनी परेशान है तो उसे जाने नहीं दे रही हो। कहीं ऐसा ना हो कि बहू पलट कर अच्छे से जवाब दे दे “
ससुर जी ने समझाने की कोशिश की।
” ज्यादा उसके लिए अपना दिल दुखाने की जरूरत नहीं है। बहु है वो तुम्हारी, बेटी नहीं है। चुपचाप शांतिपूर्वक अपना काम करो। जब मैं सब कुछ सम्भाल रही हूं तो तुम्हें बीच में आने की क्या जरूरत है। और जवाब क्या देगी वो मुझे? एक साल में तो कोई जवाब ना दे पाई मुझे”


आखिर सासू मां ने थोड़ी सी ऊंची आवाज में कहा तो ससुर जी चुप हो गए। मानसी का तो वहीं खड़े-खड़े दिमाग घूम गया। एक साल से वो इस घर में है पर उसे अंदाजा भी नहीं था कि उसकी सास ऐसी है। बेचारे ससुर जी को अकडू, खडूस समझती रही। पर यहां तो सास ने ससुर जी की इमेज बिगाड़ रखी है।


खैर, हिम्मत कर मानसी ने दरवाजा खटखटाया।
मानसी को यूं अचानक दरवाजे पर देखकर एक बार तो सासु मां की भी जबान हलक में अटक गई। पर फिर हिम्मत कर बोली,
” क्या हुआ बहू? कुछ चाहिए था?”
” जी मम्मी जी, मैं ये बोलने आई हूं कि मैं अपने मायके जा रही हूं। शाम को भैया जब आ जाएगा तो वापस आ जाऊंगी”
” लेकिन तुम्हारे पापा जी को पसंद…”
मानसी ने एकदम से अपनी सासू मां की तरफ देखा। बोलते बोलते सासू मां चुप हो गई। मानसी सीधे ससुर जी से बोली,

“पापा जी मैं अपने मायके जा रही हूं। मम्मी अकेली वहां परेशान हो रही है। अगर आप चलते तो और अच्छा होता। पापा को भी आपको देखकर हिम्मत मिल जाती “
मानसी ने कहा तो ससुर जी ने सासू मां की तरफ देखा।


सासू मां से कुछ कहते नहीं बना तो मानसी चुपचाप अपने कमरे में गई और तैयार होकर बाहर आ गई। उसने दोबारा ससुर जी से पूछा,
” पापा जी आप चल रहे हैं?”
तो ससुर जी उसके साथ ही रवाना हो गए। पर इस वाक्ये के बाद मानसी कुछ दिनों बाद ही अपने पति के साथ रवाना हो गई। हालांकि सासू मां ने रोकने की पूरी कोशिश की थी। पर इस बार तो मानसी जान चुकी थी कि मना कौन कर रहा है। इसलिए सीधे ससुर जी से ही पूछने में उसने अपनी भलाई समझी। और ससुर जी के हां करते ही सासू मां कुछ कह ही नहीं पाई।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित

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