Most Effective Moral Story in Hindi: बहू के पैर

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Moral Story in Hindi : नई नवेली बहू तनु ने घर में प्रवेश करने के लिए अपने दाहिने पैर को आगे बढ़ाया ही था कि कुछ औरतों की नजर उसकी पैरों की उंगलियों पर पड़ी। उसकी पैरों की उंगलियां अंगूठे से बड़ी थी। इसलिए लोग दबी जबान से वो औरतें आपस में बातें करने लगी।


“देखा तुमने बहू के पैरों की उंगलियां उसके पैरों के अंगूठे से बड़ी है”
“अरे! ऐसी लड़कियां कभी ससुराल में निभाह नहीं कर पाती, बल्कि पति को भी दबा कर रखती है”
“क्या सोच कर ऐसी बहू को घर में लेकर आए ये लोग। एक ही बेटा है। थोड़ा भी दिमाग नहीं लगाया। कही बहू उसे लेकर अलग हो गई तो?”
जिसे सुनकर सास वृंदा जी के मन में डर बैठ गया। इकलौते बेटे वरुण के अलग होने की कल्पना ने ही उन्हें झकझोर कर रख दिया। लेकिन ये बातें उनके अलावा उनकी बहुत तनु को भी सुनाई दे रही थी। और अपनी सास के चेहरे पर बदलते हुए हाव-भाव देखकर उसे हैरानी हो रही थी। उसकी सास इन सब बातों को मानती है उसे यकीन नहीं हो रहा था।


आखिर सारी रस्म रिवाज हो जाने के बाद वृंदा जी के दिमाग में कोई ना कोई खिचड़ी पकने लगी। आखिर ऐसा क्या करें वो कि जिससे वरुण और तनु में प्यार पनप ही ना पाए। इसलिए जब घर से मेहमान रवाना हुए तब वृंदा जी ने अपनी ननद सुमति जी को घर पर ही रोक लिया।
सुमति जी ने वृंदा जी को कुछ समझाया और दोनों अपनी योजना पर अमल करने लगी।

Moral Story in Hindi

आज वरुण और तनु की सुहागरात थी। वरुण के कमरे को फूलों से सजाया गया था। वृंदा जी ने खुद अपनी बेटी मीनू को भेजकर तनु को तैयार करवाया था। रात को तनु कमरे में ही थी इधर मीनू और वरुण के बीच हंसी ठिठोली चल रही थी कि वृंदा जी अचानक जोर से चिल्लाई,


” हाय राम! मैं तो मर गई”
अचानक से सब लोग वृंदा जी के कमरे की तरफ भागे देखा तो वृंदा जी जमीन पर पड़ी हुई है। उन्हें देखते ही वरुण और मीनु एक साथ बोले,
” क्या हुआ मम्मी?”
इससे पहले कि वृंदा जी कुछ कहती सुमति जी की बोली,
” अरे भाभी का पैर फिसल गया और वो गिर गई। शायद मोच आई हो, देखो जरा”
” नहीं नहीं जीजी मोच तो नहीं आई है पर कमर में बहुत दर्द हो रहा है। हाय, मुझसे तो खड़ा भी नहीं होते बन रहा। बेटा वरुण जरा सहारा देकर उठा तो सही”
आखिर वरुण ने सहारा देकर वृंदा जी को उठाया और कराहती हुई अपनी मां को बिस्तर पर लेटाया।
” हाय मेरी कमर में बहुत दर्द हो रहा है। कोई मालिश कर दे तो अच्छा हो”
इतने में मीनू बोली,
” मम्मी आप परेशान ना हो। मैं आपकी मालिश कर देती हूं”
” अरे नहीं नहीं, हमारे में बेटियों से ये सब नहीं कराया जाता। जब घर में बहू है तो बहु ही करेगी। आज वो तेरी मां की सेवा कर देगी और यही तेरी मां के पास सो जाएगी”


सुमति जी ने कहा तो वरुण और मीनू एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। पर कर क्या सकते थे आखिर मीनू तनु को बुला लाई। तनु ने आकर वृंदा जी की कमर की मालिश की, उसके बाद उनके पैर दबाने लगी। रात काफी हो चुकी थी इसलिए वरुण कमरे में जाकर सो गया और तनु वृंदा जी के साथ उनके कमरे में। लेकिन रात को वृंदा जी को खराटे भरते और आराम से सोते देखकर तनु के मन में यही बात आ रही थी कि कहीं सासू मां नाटक तो नहीं कर रही।

दूसरे दिन सुबह वृंदा जी कराहते हुए ही जैसे तैसे कमरे के बाहर आई और हॉल में आकर सोफे पर बैठ गई। वही तनु को पहली रसोई की रसम के नाम पर सुमति जी ने काम पर लगा दिया। बिल्कुल भी मौका नहीं दे रही थी कि वरुण तनु आपस में बात तो कर ले।


खाना खाते समय भी कहीं से कहीं तक नहीं लग रहा था कि वृंदा जी को दर्द है। बल्कि बैठी बैठी वो तो तनु के काम में मीन मेख निकाल रही थी। अभी वो मीन मेख निकाल ही रही थी कि इतने में मीनू ने कहा,
” क्या मम्मी आपकी बातों को सुनकर कहीं से भी नहीं लग रहा कि आपकी कमर में दर्द है। कहीं बहू के आते ही आप भी टिपिकल सास की तरह नाटक तो नहीं करने लगी “


मीनू ऐसा कहकर जोरों से हंसने लगी। सबकी नजरें अपनी तरफ देखकर वृंदा जी खिसियाते हुए बोली,
” हां हां जिसको लगती उसी को पता चलता है। अब तू भी मेरा मजाक बना ले “
” अरे मम्मी मैं तो मजाक कर रही हूँ। क्यों बुरा मान रही हो”
जब तनु घर के काम से फ्री हुई तो वृंदा जी वरुण को बोली,
” मुझे तो डॉक्टर के पास ले कर चल। मुझे तो बहुत दर्द हो रहा है”
इतने में ईश्वर लाल जी ने कहा,
” अरे मैं ले चलता हूं। वरुण को क्यों परेशान कर रही हो”
तो वृंदा जी उन्हें झिड़कते हुए बोली,

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” आप तो रहने ही दो। दिखा तो ऐसे रहे हो जैसे बड़ी सेवा करते हो मेरी। मेरा बेटा मुझे ले जाएगा तो कोई परेशानी है क्या”
” अरे पर भाग्यवान मैं तो इसलिए कह रहा था कि कम से कम पता तो हो कि तुम्हें कौन सी दवाई किस समय देनी है। आखिर तुम्हारे साथ कमरे में मैं ही तो रहता हूं”
” हां बड़े आए मेरी सेवा करने वाले। आप तो घर पर बैठो। वरुण मुझे दिखा आएगा और वही बता देगा कौन सी दवाई कब लेनी है”


अपने पति को झिड़क कर वृंदा जी रवाना होने के लिए अपने स्लिपर्स पहन रही थी, तब भी तनु अपनी सास के पैरों की तरफ बड़े गौर से देख रही थी। कभी उनके पैरों की तरफ देख रही थी तो कभी अपने ससुर जी की तरफ। अभी भी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

अभी भी दिमाग में यही बातें चल रही थी कि मेरे पैरों की उंगलियों को देख कर बेटा कही बहू की मुट्ठी में ना आ जाए इस बात का डर लग रहा है। और यहां तो इनके पैरों की बनावट इन के अनुरूप होने के बावजूद भी ससुर जी इनकी मुट्ठी में है। हे भगवान! ये दुनिया भी बड़ी अजीब है।
पति भी मुट्ठी में चाहिए और बेटा भी मुट्ठी में ही चाहिए।


आखिरकार वरुण वृंदा जी को लेकर हॉस्पिटल रवाना हुआ तो सुमति जी भी उनके साथ ही गई। वृंदा जी को सुमति जी के साथ बाहर बिठाकर वरुण डॉक्टर के केबिन में चला गया। पीछे से वृंदा जी सुमति जी से बोली,” जीजी ऐसे कैसे काम चलेगा? आखिर कब तक मैं बहू बेटे को दूर रख पाऊँगी? देखा नहीं कैसे मीनू ने बात पकड़ ली”
” हां मैं भी यही सोच रही हूं। आखिर ये नाटक हम हमेशा के लिए तो नहीं कर सकते। अब तो कुछ और ही करना पड़ेगा। बेटे के मन में बहू के लिए गलतफहमी पैदा ही करनी पड़ेगी, जिससे दोनों में प्यार पनप भी ना पाए और ऐसी बहू से हमारा पिंड छूटे”


सुमति जी अपनी अकल लगा रही थी। दोनों बातें तो किए जा रही थी, लेकिन दोनों में से किसी ने भी ये नहीं देखा कि वरुण उनके पीछे कब का आकर खड़ा हो चुका है। और शायद उनकी बातें सुन भी चुका है। इतने में वृंदा जी की नजर वरुण की तरफ गई,तो वो घबरा गई। वरुण ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उनकी तरफ देखता रहा तो सुमति जी बात सम्भालते हुए बोली,


” बेटा क्या कहा डॉक्टर ने? चल जल्दी से तेरी मां को दिखा लेते हैं “
वरुण गुस्से से सुमति जी को देखते हुए बोला,
” दिखाना क्या है? अच्छी भली तो है मम्मी। इतना बड़ा धोखा, वो भी अपने बेटे के साथ। अगर इतनी ही नफरत थी तनु से तो शादी ही ना करते। कम से कम उसकी जिंदगी बर्बाद तो ना होती। कोई जबरदस्ती तो शादी नहीं हुई है हमारी”


वृंदा जी से पहले बोलते ना बना पर फिर खुद को संभालते हुए गुस्से में बोली,” तो और क्या करती मैं? शादी से पहले अगर उसकी पैरों की उंगलियां देख लेती है तो कभी ना शादी करती मैं तेरी उससे। उस समय तो ठंड के कारण जुराबे पर पहन कर आ गई अपनी कमी छुपाने के लिए और अब मेरे बेटे को मुझसे छीन रही है। तुझे अपनी मुट्ठी में करके हमारा घर बर्बाद कर देगी”

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वरुण को अपनी मम्मी की सोच पर बहुत बहुत गुस्सा आ रहा था,” ये कैसी बात कर रही हो मम्मी? आज के जमाने में ऐसी बातें कौन मानता है। अंधविश्वास में अंधी हुए जा रही हो और खुद अपना घर बर्बाद कर रही हो, पर इल्जाम अपनी बहू पर लगा रही हो”

उसकी बात सुनकर वृंदा जी ने कहा,” देख ले, असर दिखाना शुरू कर दिया ना उस अपशकुनी ने। आज बेटे को माँ से लड़वा ही दिया। उसके लिए तु मुझसे लड़ने को तैयार हो गया। घर जाकर सबसे पहले उस अपशकुनी को ही निकालती हूं”


” ठीक है, बिल्कुल निकालो। पर उसके साथ मैं भी जाऊंगा। पैरों की बनावट को देखकर आपने अंदाजा लगा लिया कि आने वाले वक्त में आपकी बहू आपके बेटे को मुट्ठी में कर लेगी और आपका बेटा आपका ना रहेगा। तो एक बात बताओ मम्मी, आपके पैरों की बनावट तो सही है ना। फिर आप तो कभी भी पापा को झिड़क कर एक तरफ बैठा देती हूं”

आखिरकार वरुण के घर से निकल जाने के बात सुनकर वृंदा जी चुप तो हो गई लेकिन इतनी बहस के बावजूद भी वृंदा जी मानने को तैयार नहीं थी। घर आने के बाद सुमति जी तो शक और अंधविश्वास का कीड़ा वृंदा जी को देकर अपने घर रवाना हो गई और इधर वृंदा जी अपने अंधविश्वास में ही जी रही थी। वक्त यूं ही बीत रहा था लेकिन तनु को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। पति का प्यार था, ननद का साथ था, ससुर का आशीर्वाद था, इसलिए वृंदा जी ज्यादा कुछ कह नहीं पाती। सब इसी तरह हंसी खुशी जी रहे थे इस उम्मीद के साथ कि कभी तो वृंदा जी अपने अंधविश्वास को छोड़कर तनु को मन से अपना पाएगी।


मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित

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