Desi Kahani कचहरी के बाहर चाय की थड़ी पर बैठा संजय अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। आज जहां तक उसे उम्मीद थी उसका और उसकी पत्नी साक्षी का तलाक हो जाएगा। तलाक वो अपनी मर्जी से ले रहा था पर फिर भी पता नहीं क्यों वो खुश नहीं था।
तभी साक्षी अपने माता-पिता के साथ आती हुई दिखी। आज पता नहीं क्यों उसकी नजर अपने आप ही साक्षी पर टिक गई। आज साक्षी ने शिफॉन की हरे रंग वाली साड़ी पहन रखी थी।
वही साड़ी जो संजय मुंबई से उसके लिए लाया था और जिसके पीछे घर में अच्छा खासा बवाल हुआ था। और जिसके पीछे अम्मा ने कसम खा ली कि वो साक्षी को इस घर में देखना ही नहीं चाहती। अब या तो साक्षी ही रहेगी या फिर अम्मा। संजय अम्मा का विरोध नहीं कर पाया और नौबत तलाक तक आ पहुँची।
साक्षी और संजय की शादी दस महीने पहले ही हुई थी। ये कोई लव मैरिज नहीं थी बल्कि खुद अम्मा ने साक्षी को संजय के लिए पसंद किया था। तब अम्मा को साक्षी में गुण ही गुण नजर आ रहे थे। जिस किसी से भी मिलती तो उसके गुणों की तारीफ करती। अपनी छोटी बहू की बलैया लेती।
शादी की तैयारियां भी अम्मा ने खुद आगे होकर की थी। उनके पैरों में तो जैसे किसी ने पहिए फिट कर दिए हो। शादी के लिए इतनी फुर्ती से काम कर रही थी कि हर कोई देखते ही कहता,
” अरे बहु ला रही हो। भला इसमें इतनी खुश होने वाली क्या बात है?”
और अम्मा सबको मुस्कुरा कर जवाब देती,
” अरे मेरा परिवार बढ़ रहा है तो खुश नहीं होउँगी क्या”
और फिर अपने काम में लग जाती। शादी वाले दिन बारात साक्षी के द्वारे पहुंच गई। बारातियों में से कुछ लोग शादी में बने पकवानों का लुफ्त उठाने लगे तो कुछ लोग दहेज के सामान को देखने लगे तो कोई वरमाला देखने में बिजी हो गया। शादी भी अच्छे से हो गई।
कुछ देर बाद बारात में आई सारी महिलाएं और अन्य रिश्तेदार रवाना हो गए। बस घर के कुछ खास रिश्तेदार ही बचे थे। और महिला के नाम पर सिर्फ ननद वैदेही वहाँ रुकी थी। विदाई के समय उन खास रिश्तेदारों को शगुन के लिफाफे दिए जाने लगे। जिन जिन खास लोगों के नाम अम्मा जी ने खुद लिस्ट में लिखवा कर दिये थे, उन सबको शगुन के लिफाफे दे दिए गए। उसके बाद साक्षी के पापा ने अम्मा जी के बड़े भाई शंभूदयाल जी से पूछा,
” समधी जी अगर कोई रह गया हो तो बता दीजिए ताकि उसे भी शगुन का लिफाफा दे दे। हम हमारी तरफ से हम कोई कमी नहीं रखना चाहते”
शंभू दयाल जी के अनुसार सभी को शगुन का लिफाफा मिल चुका था इसलिए उन्होंने भी हाथ जोड़कर साक्षी के पापा से कहा,
” समधी जी आपने जो कुछ दिया है सब सोने के बराबर है। मेरे अनुसार तो सभी को शगुन मिल चुका है। आप फिक्र मत कीजिए”
थोड़ी देर बाद विदाई हो गई। नई दुल्हन का घर में प्रवेश भी हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद बुआ सास का मुंह फूल गया। उन्होंने इस बात का बतंगड़ बना दिया कि नए समधी ने उनके पोते को शगुन नहीं दिया। वो तीन साल का है तो क्या हुआ? शगुन का हक तो वो भी रखता है
तब अम्मा जी ने शंभू दयाल जी की तरफ देखा तो शंभू दयाल जी बोले,
“अरे जो लोग वहां पर थे उन सबको शगुन दिया गया है। और जो लोग नहीं थे पर उनका नाम पर्ची में था तो उनके लिए भी शगुन दिया गया है। और सभी लिफाफे पर नाम भी है”
अम्मा जी ने सभी आए हुए लिफाफे देख लिए, लेकिन उन में से किसी पर भी उस बच्चे का नाम नहीं था। इस बात को लेकर बुआ सास ने अच्छा खासा बखेड़ा खड़ा कर दिया। सब लोगों ने उन्हें मनाने की कोशिश की। पर वो मानी नहीं और रूठ कर अपने घर चली गई।
इस बात के लिए अम्मा ने भी साक्षी को बहुत सुनाया,
” तेरे पापा की एक गलती के कारण देख यहाँ रिश्ते टूटने की कगार पर आ गए। अरे! लिस्ट दी थी, फिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? ऐसे कैसे कदम है तेरे, आते ही रिश्तो के टुकड़े कर दिए”
भला आज के जमाने की साक्षी ये सब बातें क्यों सुनती। सीधे-सीधे सारी गलती के लिए उसके पापा और उसे जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। तो उसने उसी समय अपने पापा से उस लिस्ट की फोटो व्हाट्सएप पर मंगा ली और अम्मा जी को दिखाते हुए बोली,
” आप खुद चेक कर लीजिए अम्मा जी। इसमें उस बच्चे का नाम ही नहीं है तो भला मेरे पापा की क्या गलती? और विदाई के समय हमने तो आगे होकर पूछा भी था, पर मामा जी ने कहा कि सब लोगों को शगुन दे दिया गया है”
साक्षी ने ये बात बड़े ही आराम से और शांति पूर्वक कही थी, लेकिन अम्मा जी ने इस बात को दिल पर ले लिया। भला उनकी बहू इतने लोगों के सामने उनकी बात काट रही थी। वो इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाई और उनका दिल साक्षी के लिए नफरत से भर उठा।
गलती उनकी तरफ से हुई थी लेकिन तिल का ताड़ अब बन चुका था। जब साक्षी के पापा को ये सारी बातें पता चली तो उन्होंने शगुन का लिफाफा उस बच्चे के लिए भी भेज दिया।
अम्मा जी और बड़े भैया खुद वो लिफाफा देने बुआ सास के घर गए। पर बुआ सास और उनके परिवार वालों ने ये कहकर वो लिफाफा लौटा दिया कि जिस समय देना था, उस समय तो दिया नहीं। अब इन सब का क्या फायदा। हमें तो माफ करो। हमने तो आपकी रिश्तेदारी देख ली। नए रिश्ते जोड़ने के चक्कर में आप तो पुराने रिश्ते तोड़ने में लगे हुए हो।
उस रिश्ते में गांठ पड़ चुकी थी और इन सब के लिए अम्मा जी साक्षी को ही जिम्मेदार ठहरा रही थी। जबकि साक्षी की कहीं से कहीं तक गलती भी नहीं थी।
जब इंसान किसी के लिए अपने दिल में नफरत बैठा लेता है, तो उसकी अच्छी बात भी उसे बुरी ही लगती है। उसकी अच्छाइयों में भी हमेशा कमियां ही नजर आती हैं। ऐसा ही कुछ अम्मा जी के साथ हो रहा था।
अब तो साक्षी कोई भी काम करती तो अम्मा जी को उसमें कमियां ही कमियां नजर आती। साक्षी कोई भी जवाब दे अम्मा जी उसका उल्टा मतलब ही निकालती। घर का माहौल बड़ा बोझिल सा होने लगा था। घर में कोई भी अम्मा जी को समझाने की कोशिश करता तो अम्मा जी उसी से लड़ने को तैयार हो जाती। धीरे-धीरे सब ने बोलना ही छोड़ दिया।
पर इसका सबसे ज्यादा असर हो रहा था संजय और साक्षी के रिश्ते पर। अम्मा जी साक्षी की हर छोटी छोटी बात का तिल का ताड़ बनाकर संजय के सामने पेश करती। इस कारण एक महीने की शादी में ही दोनों में भी आए दिन अब बहस होने लगी थी।
उस दिन बात कुछ भी नहीं थी। संजय दो दिन के लिए मुंबई गया था। वहां से आते समय वो सबके लिए कुछ ना कुछ खरीद कर लाया था। उस दिन भाभी के घर में कोई प्रोग्राम था तो इसलिए भैया भाभी और वैदेही वहां गए हुए थे। घर में अम्मा और साक्षी ही थे। साक्षी के लिए वो हरे रंग की शिफॉन की साड़ी लेकर आया था, जो साक्षी को भी बहुत पसंद आई थी।
संजय का फोन आ गया तो फोन पर बात करता हुआ बाहर वो आ गया। उस समय साक्षी अंदर कमरे में आईने के सामने खड़ी होकर उस साड़ी को लगा कर देख रही थी। ये देखकर अम्मा ने तंज कसा,
” हां हां भाई, पहन लो नयी साड़ी। बाप की तो शगुन देने की औकात नहीं है, यहाँ मेरे बेटे के पैसे खर्च कराए जा रहे हैं। आखिर फकीरों के घर पर क्या देखा होगा”
ये बात साक्षी को बहुत बुरी लगी और उसने पलट कर कहा,
” अम्मा जी आखिर कब तक आप मेरे और मेरे पापा के पीछे पड़े रहोगी। गलती आप लोगों की थी, पर जब देखो आप मुझे सुनाती रहती है”
” ज्यादा जबान मत चला मेरे सामने। जब जब तू मेरे सामने आएगी मैं तुझे ये बात सुनाती रहूंगी क्योंकि तेरे कारण हमारे खास रिश्ते टूट गए”
अम्मा जी अभी भी चुप नहीं हो रही थी तो साक्षी ने जोर से कहा,
“मेरे कारण कोई रिश्ता नहीं टूटा है आपका। ये सब तो आपकी हरकतों के कारण टूटा है। आपको खुद रिश्ते बनाकर रखने नहीं आते। तभी तो अब अपने बेटे बहू के पीछे पड़ गई हो”
” बस कर ज्यादा जबान चला रही है”
अम्मा ने इतनी जोर से कहा कि बाहर से संजय दौड़ा-दौड़ा अंदर आया और बोला,
“क्या हुआ अम्मा? इतनी जोर से क्यों चिल्ला रही हो?”
” अरे! पूछ तेरी पत्नी से। ये मुझ पर तेरा घर तोड़ने का इल्जाम लगा रही है। अब या तो ये इस घर में रहेगी या फिर मैं”
अम्मा जी ने रोते हुए कहा। अम्मा की बात सुनकर संजय हक्का-बक्का रह गया। तभी साक्षी बोली,
” भला मैं क्यों जाऊंगी यहां से। सारी गलती तो आपकी है”
साक्षी के कहने पर अम्मा ने संजय की तरफ रोते हुए देखा और कहा,
” इसी दिन के लिए तुझे पाल पोस कर बड़ा किया था मैंने। अरे जिस दिन तेरे पिता खत्म हुए थे, उस दिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। बल्कि तुम लोगों के लिए फिर से खड़ी हो गई। इसका नतीजा ये है कि आज मुझे ये दिन देखना पड़ रहा है “
आखिर संजय ने साक्षी को ही डांट दिया,
” अगर तुम्हें अम्मा के साथ रहने में दिक्कत है तो निकल जाओ यहां से। कब तक मैं ये सब बर्दाश्त करता रहूंगा”
साक्षी को संजय से इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। वो भी गुस्से में अपना सामान पैक कर वहां से निकल गई। अब हर कोई तो अच्छी समझाइश देने वाला नहीं होता। रिश्तेदारों को भी मौका मिल गया बात बनाने का। दोनों तरफ के रिश्तेदारों ने आग में घी डालने का काम ही किया। और उसका नतीजा ये निकला कि कुछ दिन बाद ही अम्मा जी के कहने पर संजय ने तलाक के लिए अर्जी दे दी।
साक्षी संजय को तलाक देना नहीं चाहती थी क्योंकि वो ये जानती थी कि संजय की गलती नहीं है। बस अम्मा उसकी हर बात को संजय के सामने तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही है।
तभी साक्षी की नजर संजय से टकराई पर इस बार संजय ने अपनी निगाह दूसरी तरफ नहीं की और ना ही साक्षी ने अपनी नजरें दूसरी तरफ घुमाई। साक्षी की नजरें उसे ऐसे देख रही थी जैसे पूछ रही हो
” क्या हुआ संजय, आज अकेले कैसे आए हो?”
सचमुच संजय अपने आप को अकेला ही तो महसूस कर रहा था। घर का कोई सदस्य उसके साथ नहीं आया जिसमें तो वो एक संयुक्त परिवार का बेटा है। जाहिर सी बात है आपको अपनी परेशानी खुद ही झेलनी पड़ती है। परिवार भी कुछ दिन ही साथ देता है।
शुरू शुरू में तो सब ने संजय का पूरा ध्यान रखा। लेकिन जैसे-जैसे वक्त निकला सब अपने-अपने कामों में बिजी हो गए। अभी पिछले महीने बड़े भैया भाभी को बेटा हुआ है, तबसे किसी का भी ध्यान संजय की तरफ नहीं है। वो कब खाना खा रहा है, कब आ रहा है, कब जा रहा है, उसके कपड़े धुले हुए हैं या नहीं, किसी को कोई लेना देना नहीं।
घर में सब लोग खुश हैं, संजय को छोड़कर। और आज यहां फैसले के दिन भी कोई उसके साथ नहीं आया। भाभी घर के काम करने हैं बिजी थी, अम्मा अपने पोते को खिलाने में बिजी थी, वैदेही का तो वैसे भी कॉलेज होता है, भैया का अपना ऑफिस होता है, तो भला किसी के पास संजय के लिए फुर्सत कहाँ?
अब उसे समझ में आ रहा था कि जो साथ एक पत्नी दे सकती है, वो और कोई नहीं।
खैर, जब अंदर से बुलावा आया तो संजय और साक्षी दोनों अंदर गए। तलाक के पेपर पर दोनों को साइन करने के लिए कहा गया। लेकिन संजय के हाथ साइन करते समय कांपने लगे। ये देखकर साक्षी ने पूछा,
“क्या हुआ संजय, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?”
संजय ने साक्षी की तरफ देखा और फिर हिम्मत करके कहा,
” क्या हमारा तलाक लेना जरूरी है?”
साक्षी एकटक उसे देखती ही रह गई। फिर बोली,
” तलाक मैंने नहीं तुमने मांगा था। और अगर तलाक नहीं लेंगे तो फिर अम्मा…”
” तुम अम्मा की बात छोड़ो। उनके पास उनके बेटे बहू परिवार सब है। पर मैं तो अकेला हूं। इस बार मैं वो गलतियां नहीं दोहराऊँगा, जो मैंने उस समय की थी। इसलिए मैं एक बार फिर पूछ रहा हूं क्या हमारा तलाक लेना जरूरी है। हम एक नई शुरुआत नहीं कर सकते”
” मुझे तलाक नहीं चाहिए। पर क्या तुम अपनी अम्मा का सामना कर पाओगे”
साक्षी का जवाब सुनकर संजय एक पल के लिए बिल्कुल चुप हो गया। फिर उसने तलाक के पेपर की तरफ देखा और उन्हें उठाकर फाड़ दिया। वहां खड़े साक्षी के माता-पिता की आंखों में भी आंसू आ गए। आखिर कौन से माता पिता अपनी बेटी का घर उजड़ते देख सकते थे।
साक्षी को उसके माता-पिता के साथ भेज कर सबसे पहले संजय अपने ऑफिस के आसपास एक किराए का घर ढूंढने गया। शाम तक ढूंढने के बाद उसे ढंग का घर मिल गया। उसके बाद सीधे अपने घर गया। अम्मा उस समय अपने पोते को खिला रही थी। संजय को घर आया देख कर बोली,
” मिल गया छुटकारा उस आफत से”
संजय ने अम्मा से कहा,
” मैंने तलाक के पेपर फाड़ दिये। मुझे अपनी पत्नी से तलाक नहीं चाहिए”
उसकी बात सुनकर अम्मा बोली,
” क्यों? क्यों नहीं चाहिए तलाक? तुझे कहा था ना या तो इस घर में वो ही रहेगी या फिर मैं”
अम्मा की बात सुनकर संजय बोला,
” अम्मा ये आपका घर है, आप यही ही रहिए। मैंने अपना बंदोबस्त बाहर कर लिया है। मैं साक्षी के साथ वही रहूंगा”
” अरे ऐसा क्या जादू कर दिया उसने जो तलाक लेने से मना कर रहा है। छोड़ उसे, उसके जैसी दस मिलेगी। तुझे मेरी बात पर यकीन नहीं है। अरे मैं तेरी अम्मा हूं, मैंने तुझे पाल पोस कर बड़ा किया है। अब तू उसके लिए मुझे छोड़ कर जा रहा है। जब तेरे
पिताजी…”
” बस भी करो अम्मा। कब तक इमोशनल ब्लैकमेल करोगी। अम्मा तेरी जिद के कारण मैं अपने घर को नहीं टूटने दूंगा। अपने दिल पर हाथ रख कर सोचो कि क्या साक्षी ही हमेशा गलत थी। क्यों जबरदस्ती मेरा घर बर्बाद करने में तुली हुई हो? तुम तो खुद अपने बेटे बहू पोते पोती में खुश हो। क्या तुम्हें मेरा अकेलापन दिखता है? सब अपने आप में खुश है पर मैं तो अकेला हूं। मैं भी अपना परिवार चाहता हूं, तो क्या गलत चाह रहा हूँ। बस अम्मा आप यहां खुश रहिए, अब हमें भी खुश रहने दीजिए”
कहकर संजय अंदर कमरे में चला गया और अपना सामान पैक कर उसी शाम साक्षी के साथ अपनी गृहस्थी बसाने के लिए रवाना हो गया।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत