Rochak Kahaniyan: “बाय मॉम, बाय डैड.” मिनी हाथ हिलाती कॉलेज चली गई?”
यह लड़की तो मुझे जीते जी मार डालेगी. हज़ार बार कह चुका हूं मुझे ‘डैड’ नहीं पापा बोला कर. पर नहीं, अंगे्रज़ चले गए, लेकिन अपनी अंग्रेज़ियत यहीं छोड़ गए.” सुबह-सुबह ही निखिल का मूड ख़राब हो गया था.
“निखिल, मैं अपनी ऐरोबिक्स क्लास ‘इनशेप’ में जा रही हूं, वहां से किटी पार्टी और फिर वहीं से करण आश्रम की मीटिंग में चली जाऊंगी. लौटने में देर हो जाएगी. रामदीन से कुछ हल्का खाना बनवा लेना. और हां, मिनी आज देरी से लौटेगी.” सुभद्रा जल्दी-जल्दी बात समाप्त कर निकलना चाह रही थी.
तभी निखिल ने सवाल उछाल दिया, “क्यूं? अब आज क्यों देर हो जाएगी? अभी परसों ही तो देर से आई थी.”
“उस दिन वह डेटिंग पर गई थी. इन दिनों वह ब्यूटी कॉन्टेस्ट की तैयारी में लगी है.” सुभद्रा बोल तो गई, पर उसे निखिल के भड़कने का पूरा अंदेशा था और वही हुआ. “सुभद्रा, मिनी अब बड़ी हो गई है. तुम्हें उसकी गतिविधियों पर अंकुश रखना चाहिए. दो दिन बाद ही मेरा दोस्त वर्मा, परिवार सहित हमारी बेटी को देखने आ रहा है. बहुत ही सभ्य और सुसंस्कृत परिवार है. मैं चाहता हूं हमारी मिनी का रिश्ता यहां हो जाए.”
“इस बारे में हम शाम को बात करेंगे. अभी मुझे देर हो रही है.” कहकर सुभद्रा झटके से निकल गई. निखिल उसे जाते हुए देखता रहा और ख़्यालों में खो गया.
जज निखिल वर्मा को रिटायर हुए अभी कुछ ही महीने हुए थे. लेकिन इन कुछ महीनों में ही वे बहुत एकाकीपन अनुभव करने लगे थे. जब वे जज बने थे, तो सुभद्रा का भी सामाजिक स्तर एकाएक ऊंचा हो गया था. वह कई स्वयंसेवी संस्थाओं और किटी पार्टियों की सदस्या बन गई थी. स्वयं उनके सेवामुक्त हो जाने पर भी पत्नी की व्यस्तता बनी हुई थी, अपितु पहले से बढ़ गई थी. अपनी देहयष्टि को आकर्षक बनाए रखना भी इसीलिए उसके लिए अनिवार्य हो गया था और प्रतिदिन फ़िटनेस सेंटर जाना भी उसकी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया था.
बेटी मिनी भी मां के नक्शे-क़दम पर चल रही थी. पूरी तरह आज के भौतिकवादी युग में रंगी हुई. आज़ादी के 56 वर्षों में देश कोई दूसरी इंदिरा गांधी तो नहीं दे पाया. हां, 5 ‘मिस वर्ल्ड’ ’ और दो ‘मिस यूनिवर्स’ अवश्य दे दीं. ख़ैर, अब किसी तरह बेटी का रिश्ता दोस्त के बेटे से हो जाए तो सब चिंताओं से छुटकारा मिले. सोचते हुए निखिल कल्पनाओं के आकाश से धरती पर उतर आए.
आगंतुक वर्मा परिवार के स्वागत को लेकर निखिल कुछ ज़्यादा ही उत्साहित थे. सुभद्रा ने भी आज घर पर ही रहने का निश्चय कर लिया था. लेकिन मिनी का कहीं अता-पता न था. खाने के बाद सभी बाहर हल्की धूप का आनंद ले रहे थे. तभी मिनी चहकती हुई गेट से प्रविष्ट हुई. सुभद्रा उसे आगाह करती इससे पूर्व ही चुस्त जींस और बिना बाजू के टॉप में मिनी ‘हाय मॉम डैड’ करती आ धमकी.
“मॉम, मैं मिस मॉडर्न बन गई. मैंने इतनी मस्त कैटवॉक की कि सारा हॉल सीटियों और तालियों से गूंज उठा. इतना मज़ा आया मॉम कि बस पूछो ही मत. अब मेरा अगला टारगेट है ‘मिस इंडिया’ और फिर ‘मिस यूनिवर्स.” अदा से बोलते हुए मिनी खिलखिला पड़ी.
“मिनी, थोड़ा फ्रेश हो लो.” सुभद्रा उसे खींचती हुई अंदर ले गई. बोझिल हो उठे वातावरण में वर्मा परिवार ने विदा ली. अगले ही दिन फोन पर निखिल को आशानुकूल जवाब मिल गया. “निखिल तुम्हारी बेटी बहुत सुंदर है, लेकिन मेरे घर की बहू बनकर शायद उसकी महत्वाकांक्षाएं पूरी न हो पाएं. इसलिए मैं क्षमा चाहता हूं.” निखिल के लिए यह घटना एक वज्राघात के समान थी. वे गुमसुम रहने लगे. लेकिन सुभद्रा और मिनी पर इसका कोई असर न था.
सुभद्रा ने तो स्पष्ट शब्दों में कह भी दिया, “अच्छा हुआ, मेरी बेटी उस दक़ियानूस परिवार की बहू बनने से बच गई. अरे, उसके लिए तो लड़कों की लाइन लगी है.” सुभद्रा ग़लत भी कहां थी? मिनी के ही कॉलेज में पढ़ने वाला यश मिनी की सुंदरता से अभिभूत था. करोड़पति खानदान के इकलौते वारिस का रिश्ता आते ही सुभद्रा ने चट से हां कर दी. निखिल ने तो घरेलू मामलों में पूर्णतया चुप्पी साध ली थी. मिनी ने ज़रूर अपने करियर का हवाला देकर ना-नुकर की, लेकिन सुभद्रा के समझाने पर शांत हो गई.
मिनी की विदाई के साथ ही निखिल और भी एकाकी हो गए. उन्होंने स्वयं को पूरी तरह पुस्तकों में डुबो दिया. सुभद्रा पर इसका कोई असर न पड़ा और वह पहले से कही ज़्यादा क्लब व सोसायटी में व्यस्त हो गई. शादी के बाद मिनी का समय तो पंख लगाकर उड़ चला. यश के संग पार्टी, होटल, फिर लंबे हनीमून में दो माह कब बीत गए, उसे पता ही न चला. यश ने जब पिता के साथ पुनः शोरूम पर जाना आरंभ कर दिया तो मिनी के लिए दिन पहाड़-सा हो उठा.
उसने पुनः जिम आदि जाना आरंभ कर दिया और मॉडलिंग एजेंसियों के चक्कर काटने लगी. यश के माता-पिता को भनक लगी, तो उन्होंने बेटे के माध्यम से बहू को समझाना चाहा.
लेकिन मिनी कुछ भी सुनने-समझने को तैयार न थी. जब यश ने थोड़ी सख़्ती बरतनी चाही, तो वो ग़ुस्से में घर छोड़कर आ गई. जब निखिल ने समझा-बुझाकर उसे पुनः ससुराल भेजना चाहा तो सुभद्रा बीच में आ गई. उसके अनुसार मिनी को अपना करियर बनाने का पूरा अधिकार है और यश व उसके घरवाले उसके पैरों में बेड़ियां डालने का प्रयास कर रहे थे. निखिल और यश ने समझौते का भरसक प्रयास किया, पर सुभद्रा ने उनकी एक न चलने दी.
मिनी की ज़िंदगी पुनः पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. उसे मां के घर लौटे हुए लगभग एक महीना हो गया था. लेकिन धीरे-धीरे मिनी महसूस करने लगी कि उसके पुराने संगी-साथी अब उससे कटने लगे हैं. मॉडलिंग के भी उसे अच्छे ऑफ़र नहीं मिल रहे थे. शायद उसका शादीशुदा होना इसका कारण रहा हो. जो भी हो, मिनी स्वयं अब सबसे कटने लगी और अपना अधिकाधिक समय घर पर बिताने लगी. यही नहीं इन दिनों उसे यश की याद भी बेहद सताने लगी थी. उसके साथ बिताए मधुर लम्हों को याद कर वह अकेले में भी मुस्कुरा देती. वह महसूस करने लगी थी कि अपना घर छोड़कर उसने बहुत बड़ी भूल की है. भला पूरी ज़िंदगी वह यश के बिना कैसे गुज़ार सकती है? अपना भविष्य उसे अंधकारमय नज़र आने लगा. रह-रहकर उसे मां पर ग़ुस्सा आता था. जब वह पापा को अकेले दिन-रात पुस्तकों में डूबा देखती तो मां के प्रति उसका ग़ुस्सा दुगुना हो जाता.
क्या उसके बिना यश भी इतना ही एकाकी हो गया होगा? रह-रहकर उसे यह ख़्याल आने लगा, पर लौटने के सारे रास्ते तो वह स्वयं ही बंद कर आई थी. मिनी खोयी-खोयी रहने लगी. हर व़क़्त उसे उदास देखकर एक दिन सुभद्रा ने उसे डांट दिया, “इस तरह मुंह लटकाए घूमोगी तो बन गया तुम्हारा करियर? अगर ख़ुद से कुछ नहीं कर सकती, तो कल से मेरे साथ चला करो.” मिनी भी भरी बैठी थी, फट पड़ी, “आपके साथ जाकर मुझे अपनी ज़िंदगी और तबाह नहीं करनी. मैं अपने हाल में ख़ुश हूं. पहले आपने पापा की ज़िंदगी तबाह की, फिर मेरी.” सुभद्रा इस आक्षेप से तिलमिला गई. ग़ुस्से से तमतमाती वह घर से निकल गई.
सोसायटी की मीटिंग में जब उस पर ढंग से काम नहीं करने का आरोप लगाया गया, तो वह आवेश में आ गई और इसी दौरान उसकी तबियत बिगड़ गई. तुरंत उसे अस्पताल ले जाया गया और घर सूचना भिजवाई गई. डॉक्टर के यह बताने पर कि सुभद्रा को दिल का गंभीर दौरा पड़ा है, निखिल और मिनी के तो हाथ-पांव फूल गए. मिनी को कुछ नहीं सूझ रहा था. घबराहट में उसने यश को फोन कर दिया. यश ने तुरंत आकर सारी स्थिति संभाल ली. पहले अस्पताल की सारी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी की, दवा वग़ैरह लेकर आया, निखिल और मिनी को ढांढ़स बंधाया.
दोपहर तक यश के माता-पिता सभी के लिए खाना लेकर आ गए. निखिल और मिनी की इच्छा न होने के बावजूद उन्होंने आग्रह करके उन्हें खाना खिलाया. मिनी की तो किसी से नज़रें मिलाने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. रात को यश ने ज़बरदस्ती सभी को घर भेज दिया और अकेला अस्पताल में रहा.
सुभद्रा को अस्पताल में भर्ती हुए तीन दिन हो चुके थे. वह अकेली बिस्तर पर लेटी शून्य में निहार रही थी. यश को उसने ज़बरदस्ती कुछ देर के लिए मिनी के संग बाहर भेज दिया था. सुभद्रा सोच रही थी, यदि यश की जगह उसका अपना बेटा होता, तो वह भी शायद उसकी इतनी अच्छी देखरेख न कर पाता. फिर अपने विचारों पर उसे स्वयं ही शर्मिंदगी महसूस हुई. यश उसका बेटा ही तो है. वह तो उसे बिल्कुल अपनी मां समझकर सेवा कर रहा है. वही अपने तुच्छ विचारों से अभी तक ऊपर नहीं उठ पाई है.
फिर उसे निखिल का ख़्याल आया. निखिल भी कितने बूढ़े लगने लगे हैं, जब युवा थे तब कितने आकर्षक और वाक्पटु थे. और अब हर व़क़्त ख़ामोश! उनकी वक्तृत्व क्षमता पर ही तो वह रीझ गई थी. सुभद्रा के सम्मुख एक-एक करके अतीत के पन्ने खुलने लगे. निखिल उस समय वकालत कर रहे थे. सुभद्रा की सहेली के पिता के पास वह अपनी प्रेक्टिस के सिलसिले में आया करते थे. वहीं उनकी कुछ मुलाक़ातें हुईं. सुभद्रा को निखिल की वाक्पटुता ने तो निखिल को सुभद्रा की सुंदरता ने मोह लिया.
दोनों के पारिवारिक स्तर में ज़मीन-आसमान का अंतर था. सुभद्रा के पिता कचहरी में एक मामूली क्लर्क थे तो निखिल के पिता शहर के जाने-माने व्यवसायी. घरवालों के विरोध के बावजूद निखिल ने सुभद्रा से कोर्टमैरिज कर ली थी. सुभद्रा को ज़िंदगी में निखिल से सब कुछ मिला था- भरपूर प्यार, समाज में मान-सम्मान, ऐशोआराम की ज़िंदगी और फिर मिनी जैसी प्यारी-सी बिटिया. निखिल एक के बाद एक तऱक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही उनकी व्यस्तता भी बढ़ती जा रही थी. फिर भी वह मिनी और सुभद्रा को अपना क़ीमती व़क़्त देने का भरसक प्रयास करते. सुभद्रा को याद आ रहा था,
एक बार उसने निखिल से अपने अकेलेपन की शिकायत की थी, तो निखिल पन्द्रह दिनों का अवकाश लेकर उसे और मिनी को पहाड़ों पर घुमाने ले गए थे. उन्होंने ही सुभद्रा को कई किटी पार्टियों और सभा सोसायटियों का सदस्य बनवाया, ताकि उनके व्यस्त रहने पर सुभद्रा का मन लगा रहे. सुभद्रा को मामूली सिरदर्द या बुखार होता, तो निखिल अपनी प्रैक्टिस छोड़ रात दिन उसके सिरहाने बैठे रहते. सुभद्रा उन्हें कोर्ट चले जाने को कहती या प्रैक्टिस में घाटा हो जाने का ध्यान दिलाती, तो निखिल को अच्छा नहीं लगता था.
वे कहते, “सुभद्रा, ज़िंदगी की कोई भी चीज़ मेरे लिए तुमसे बढ़कर नहीं है.” और सुभद्रा निहाल हो जाती. उन्हीं भरपूर प्यार करने वाले निखिल को उसने ज़िंदगी के सबसे नाज़ुक मोड़ पर कितना एकाकी कर दिया है. जीवन के जिस पड़ाव पर उन्हें सुभद्रा के साथ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उसी पड़ाव पर उसने हाथ झटक लिया. जो स्त्री अपना घर न संभाल सके, उसे भला समाजसेवा का क्या अधिकार है? और मिनी? उसके साथ भी कहां न्याय कर पाई वह? बस फैशन और आधुनिकता के पीछे भागनेवाली जीती-जागती गुड़िया बनाकर रख दिया उसे.
काश उसने उसे कुछ अच्छे संस्कार दिए होते तो आज वह एक सुखी जीवन बिता रही होती.
एक ओर यश जैसा संस्कारशील युवक है, जिसे देखकर कोई भी उसके माता-पिता की प्रशंसा किए बिना नहीं रहेगा कि उन्होंने अपनी संतान को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं. वहीं, दूसरी ओर मिनी है- उच्छृंखल, अभिमानी और मुंहफट. उसे ऐसा बनाने और उसकी ज़िंदगी बरबाद करने की ज़िम्मेदार वह स्वयं है. मिनी ठीक ही तो कह रही थी. न तो वह अच्छी बीवी बन पाई और न अच्छी मां. भगवान ने उसे यह दूसरा जीवन शायद अपनी ग़लतियां सुधार लेने के लिए ही दिया है. एक दृढ़ निश्चय के साथ सुभद्रा पलंग पर उठकर बैठ गई. तभी निखिल ने कमरे में प्रवेश किया.
“अरे, अरे यह क्या कर रही हो? अभी तुम बहुत कमज़ोर हो. लाओ मैं तुम्हें सहारा देकर बैठा देता हूं.” कहते हुए निखिल ने सुभद्रा को तकिए के सहारे बैठा दिया. सुभद्रा एकटक निखिल को देखे जा रही थी.
“ऐसे क्या देख रही हो?” निखिल ने पूछा.
“हं.. अं… कुछ नहीं. मुझे छुट्टी कब मिलेगी?” सुभद्रा ने पूछा. “यही तो बताने आया था मैं. कल तुम्हें छुट्टी मिल जाएगी. कल तुम घर चल सकोगी. लेकिन अभी कुछ दिनों तक तुम्हें पूर्ण विश्राम करना होगा. कुछ समय बाद ही तुम घर से बाहर निकल पाओगी.” निखिल ने समझाते हुए कहा.
“मुझे अब कहीं नहीं जाना निखिल. इतने बरसों बाद तो घर लौट रही हूं. अब कहीं नहीं जाऊंगी.” सुभद्रा बुदबुदा रही थी. “तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है. तुम लेट ही जाओ.” कहते हुए निखिल ने सुभद्रा को फिर से लेटा दिया.
घर लौटकर सुभद्रा बहुत राहत महसूस कर रही थी. घर भी उसे कुछ नया-नया सा और बेहद अपना लग रहा था. सच है जब देखने वाले का दृष्टिकोण बदल जाए, तो हर चीज़ स्वत: ही बदल जाती है. बहुत दिनों बाद सभी डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खा रहे थे. यश भी मौजूद था.
“आजकल रामदीन बहुत अच्छा खाना बनाने लगा है. सूप और सब्ज़ी बहुत टेस्टी बने हैं.” सुभद्रा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.
“यह रामदीन का नहीं तुम्हारी बिटिया के हाथों का कमाल है.” निखिल ने और सब्ज़ी परोसते हुए कहा.
“क्या? सचमुच! मिनी, तुमने कब खाना बनाना सीखा?” सुभद्रा को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.
“मम्मा, वो जब मैंने घर रहना शुरू कर दिया था, तो मन लगाने के लिए किचन में हाथ आज़मा लिया करती थी.” मिनी ने सकुचाते हुए बताया. हालांकि मन-ही-मन अपनी प्रशंसा सुन वह बेहद ख़ुश हो रही थी और उस समय तो उसका चेहरा ख़ुशी से चमक उठा, जब यश ने भी सुभद्रा का समर्थन करते हुए कहा कि ‘खाना वाकई बहुत स्वादिष्ट बना है.’ उपयुक्त मौक़ा जानकर सुभद्रा बोल पड़ी.
“लेकिन मेरे भाग्य में इतना स्वादिष्ट खाना अब ज़्यादा दिन खाना नहीं लिखा है.”
“ऐसा क्यूं बोल रही हो सुभद्रा?” निखिल ने टोका.
“अरे बाबा, कुछ दिनों में मिनी यश के संग अपने घर चली जाएगी, फिर मुझे इतना अच्छा खाना कौन बना कर खिलाएगा?” सुभद्रा शरारत से बोली.
“ऐसी क्या बात है, मम्मा? आपका जब मिनी के हाथ का खाना खाने का जी चाहे, आप वहां चली आना. आख़िर वह भी तो आपका ही घर है.” यश ने सरलता से कहा. निखिल मन-ही-मन सुभद्रा की प्रशंसा किए बिना न रह सके. कितनी चतुराई से सबके दिलों की बात उसने ज़ुबां से इतनी सहजता से बयां कर दी थी. और सुभद्रा मन-ही-मन सोच रही थी कि यह तो प्रायश्चित की शुरुआत भर है….!!