नीरा देवी अपने बेटे कुशल की शादी करके बहुत खुश थी। वो बहू रंजू के लिए रोज़ कुछ ना कुछ नई डिश बनाती।
प्रमोद, “अरे भई! आज खाने में क्या बना है?”
नीरा, “आज मैंने केले के कोफते बनाए हैं, बहू को पसंद आएँगे।”
प्रमोद, “क्यों नहीं पसंद आएँगे? तुम खाना इतना अच्छा जो बनाती हो।”
रंजू, “लगता है मम्मी जी को खाना बनाने का बहुत शौक है।”
नीरा, “खाना बनाने का शौक है और तीनों समय ताजा खाना खाने का भी शौक है। नीरा कभी बासी खाना नहीं खाती।”
ससुर जी की बात सुनकर रंजू परेशान हो जाती है।
रंजू, “क्या..? मम्मी जी बासी खाना नहीं खातीं?”
प्रमोद, “अरी बहू! तू क्यों इतना परेशान हो रही है?”
रंजू, “कुछ नहीं, मैं तो बस यूं ही पूछ रही थी।”
प्रमोद, “तुझे अपनी सासु मां के लिए हर वक्त ताजा खाना बनाना होगा।”
नीरा, “आप मेरी बहू से ऐसा क्यों कह रहे हैं? वो तो खुद मेरे लिए ताजा खाना बनाएगी। क्यों, बनाएगी ना बहू?”
रंजू, “हां मम्मी जी, बनाऊंगी ना ताजा खाना।”
रंजू सोच सोचकर परेशान हो जाती है कि उसे रोज़ तीनों वक्त का खाना ताजा बनाना पड़ेगा क्योंकि उसकी सास तो बासी खाना खाती नहीं है।
एक दिन…
कुशल, “अरे रंजू! माँ अकेले रसोई में काम करती है, तुम माँ की मदद कर दिया करो।”
रंजू, “हां, क्यों नहीं?”
रंजू अब खाना बनाने में सास नीरा की मदद करने लगती है। धीरे-धीरे रसोई का सारा काम रंजू के जिम्मे आ जाता है और तीनों वक्त का खाना रंजू को बनाना पड़ता है।
नीरा, “मम्मी जी, आज खाने में क्या बनेगा?”
नीरा, “खाना? अभी तो सुबह का नाश्ता भी नहीं हुआ बहू। पहले नाश्ता बना ले। नाश्ते में आलू के पराठे बना ले और उसके साथ धनिया की चटनी बना लेना।
दिन के खाने में चने की दाल, गोभी की सब्जी और चावल बना लेना। और रात के खाने में मटर पनीर और रोटी बना लेना।”
नीरा देवी ने दिन भर का मेन्यू सुना दिया। रंजू रसोई में जाती है।
रंजू, “सारा दिन खाना बनाना पड़ेगा, ये सब मुझसे नहीं हो पाएगा।”
उस दिन रंजू को सब कुछ बनाना पड़ता है। सुबह आलू के पराठे और धनिया की चटनी, दोपहर में दाल चावल और सब्जी। रात का खाना बनाने के लिए रंजू जब रसोई में जाती है।
रंजू, “दिनभर खाना बनाकर मैं थक गई हूं। कल भी सुबह से यही सब करना होगा।
एक काम करती हूं, आटा ज्यादा गूंथ लेती हूं और मटर पनीर की सब्जी भी ज्यादा बना लेती हूं, कल काम आ जाएगा।”
रंजू यही करती है। वो ढेर सारा आटा गूंध लेती है और सब्जी भी ज्यादा बना लेती है। रात को सभी खाना खाते हैं और बचा हुआ खाना रंजू फ्रिज में रख देती है।
सुबह जब नीरा देवी फ्रिज खोलती है तो देखती है कि उसमें मटर पनीर की सब्जी और आटा रखा हुआ है।
नीरा, “अरे बहू! ये तूने रात का खाना फ्रिज में क्यों रखा है?”
रंजू, “क्या करती मम्मी जी? खाना बच गया था, उसे फेक तो नहीं सकती थी ना?”
नीरा, “तो तूने इतना सारा खाना बनाया ही क्यों? खाना उतना ही बनाती जो रात में ही खत्म हो जाता।”
रंजू, “कोई बात नहीं मम्मी जी, ये खाना हम आज खा लेंगे।”
नीरा, “लेकिन मैं बासी खाना नहीं खाती।”
रंजू, “मम्मी जी, मैं सब्जी गर्म कर दूंगी और आटे की पूरियां तल दूंगी। आपको पता भी नहीं चलेगा कि खाना बासी है।”
रंजू यही करती है। बासी आटे की पूरियां तल देती है और मटर पनीर की सब्जी को गर्म कर देती है और सबको नाश्ते में परोस देती है।
कुशल, “आज सुबह फिर मटर पनीर बना लिए? कुछ और बना लेती।”
रंजू, “आज सुबह नहीं बनाई। ये कल रात का ही खाना है।”
कुशल कुछ नहीं कहता, नाश्ता करके ऑफिस चला जाता है। लेकिन बासी खाना खाने के बाद नीरा देवी के पेट में दर्द होने लगता है।
नीरा, “हाय, हाय मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है।”
प्रमोद, “अरे! क्या हुआ तुम्हें?”
नीरा, “मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। बहू से कहा था बासी खाना मत खिलाना, लेकिन उसे तो अपने आराम की पड़ी है।
प्रमोद, “चलो, मैं तुम्हें डॉक्टर के यहाँ ले चलता हूँ।”
प्रमोद नीरा देवी को डॉक्टर के यहाँ ले जाते हैं और उन्हें दवाई दिलाते हैं।
घर आने के बाद…
प्रमोद, “बहू, अब खाने में खिचड़ी बना ले। तेरी मम्मी की तबियत खराब है। और हां, आज रात में भी कुछ हल्का बना लेना।”
रंजू खाने में खिचड़ी बना लेती है। रात के खाने में उसने दाल चावल बना लिए। लेकिन इतना सारा खाना बना लिया कि वो अगले दिन भी खाया जा सके।
दूसरे दिन…
नीरा, “अरे बहू! ये फ्रिज में दाल चावल तूने कब रखे?”
रंजू, “मम्मी जी, ये कल रात बनाई थी।”
नीरा, “फिर से बासी खाना।”
रंजू, “मम्मी जी, मैं दाल में तड़का लगा दूंगी और चावल को आलू प्याज डाल कर फ्राई कर लूंगी।
खाना एकदम ताजा लगेगा और सब्जी बनाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।”
नीरा, “बहू, तू समझती क्यों नहीं? बासी खाना खाने से मेरी तबियत खराब हुई थी।”
रंजू, “ठीक है मम्मी जी, मैं आपके लिए अभी खिचड़ी बना देती हूँ।”
रंजू नीरा देवी के लिए फिर से खिचड़ी बना देती है और रात के बासी खाने को फिर से ताजा करके सबको खिला देती है।
ऐसे दिन गुजर रहे थे। रंजू खुद भी बासी खाना खाती और घर वालों को भी खिलाती। अब तो उसने होटलों से भी खाना मंगवाना शुरू कर दिया था।
एक बार की बात है। रंजू ने बाहर से चौमीन मंगवाई।
नीरा, “ये इतने बड़े डिब्बे में क्या है?”
रंजू, “मम्मी जी, इसमें चौमीन है।”
नीरा, “लेकिन घर में तो कोई चौमीन नहीं खाता और तूने इतना सारा मंगवा लिया?”
रंजू, “मम्मी जी, आज रात मैंने आप लोगों के लिए आलू मटर की सब्जी और रोटी बनाई है और मैं चाउमीन खाऊंगी।”
रंजू ने रात में सबको सब्जी रोटी खिलाई और खुद चौमीन खाई, लेकिन चौमीन काफी ज्यादा थी, इसलिए बच गई।
बची हुई चौमीन उसने फ्रिज में रख दी। अगले दिन उसने उस चौमीन को गर्म करके नाश्ते में खा लिया।
नीरा, “देख बहू, तू हमें घर का बासी खाना खिलाती थी, तब तो ठीक था। लेकिन अब तू होटलों का बासी खाना खाएगी तो तेरी तबियत बिगड़ जाएगी।”
रंजू, “मम्मी जी, आप बेकार में ही टेंशन लेती हैं। मुझे कुछ नहीं होगा।”
उस दिन कुशल के कुछ दोस्त रात के खाने पर घर आने वाले थे। यह सुनते ही रंजू खुश हो जाती है।
रंजू, “आज तो इतना सारा खाना बना लूंगी कि अगले चार दिनों तक खाना बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।”
उस दिन रंजू खाने में काफी वेरायटी बनाती है, लेकिन खाना ढेर सारा बना लेती है। कुशल के दोस्त खाने की बहुत तारीफ करते हैं।
दोस्त, “अरे वाह भाभी जी! आपने खीर तो बड़ी ही लाजवाब बनाई है और पालक पनीर की सब्जी,
वाह वाह वाह… ऐसा लग रहा है जैसे रेस्टोरेंट में बैठ कर ही खाना खा रहा हूँ। और ये कश्मीरी दम आलू, मजा आ गया।”
रंजू, “थैंक यू, भाई साहब।”
सभी मेहमान खाना खाकर चले जाते हैं। फिर घर के लोग खाना खाते हैं।
रात का खाना हो जाने के बाद नीरा देवी जब रसोई में आती है तो देखती है कि पूरी रसोई खाने से भरी हुई है।
नीरा, “रंजू बहू, क्या मोहल्ले वालों को भी खाना खिलाएगी?”
रंजू, “नहीं, मम्मी जी।”
नीरा, “फिर इतना सारा खाना क्यों बनाया है?”
रंजू, “मम्मी जी, खाना बच गया। मुझे लगा था कि कुशल के सारे दोस्त आएँगे, लेकिन कम ही लोग आए।”
नीरा, “बहाने मत बना। मुझे सब पता है, तुने हमें फिर से बासी खाना खिलाने के लिए इतना खाना बनाया है।
तू इतनी आलसी क्यों है? ये खाना हम कब तक खाते रहेंगे?”
रंजू, “मम्मी जी अच्छा ही है ना, आपको स्वादिष्ट खाना खाने को मिलेगा। आपने देखा नहीं, कुशल के दोस्त खाने की कितनी तारीफ कर रहे थे?”
नीरा, “रंजू बहू, ये बासी खाना अब तू ही खाना। मैं तो अपने लिए ताज़ा खाना बनाऊंगी।”
रंजू, “घर में खाना रहते हुए आप दोबारा खाना बनाएंगी। जब तक ये खाना खत्म नहीं हो जाता, दोबारा खाना बनाने का क्या मतलब?”
नीरा देवी गुस्से में अपने कमरे में चली जाती हैं और रंजू सारा खाना फ्रिज में रखने लगती है।
रंजू, “ओह! खाना कुछ ज्यादा ही बन गया, फ्रिज में भी नहीं समा रहा।”
उसे कुछ खाना फ्रिज के बाहर ही रखना पड़ता है। दूसरे दिन रंजू आराम से सोकर उठती है और सबको वही बासी खाना परोसने लगती है।
नीरा, “रंजू बहू, मैं और तेरे पापा ये खाना नहीं खाएंगे। मैंने हम दोनों के लिए ताजा खाना बना लिया है। ये खाना तू और कुशल खा लो।”
अब रात का बासी खाना सिर्फ रंजू और कुशल खाते हैं। नीरा देवी तीनों वक्त अपने और प्रमोद के लिए ताजा खाना बनाने लगी
और रात का बासी खाना सिर्फ रंजू और कुशल को ही खाना पड़ रहा था। खाना इतना ज्यादा था कि खत्म ही नहीं हो रहा था।
कुशल, “मुझे बासी खाना खाते हुए दो दिन हो गए। अब मैं और नहीं खा सकता।”
रंजू, “लेकिन खाना तो अब भी बहुत बचा है।”
कुशल, “मैं कुछ नहीं जानता। तुम्हें इतना सारा खाना बनाने के लिए कहा किसने था?”
कुशल ऑफिस चला जाता है। अब रंजू को बासी खाना खुद ही खाना पड़ता है, लेकिन शाम होते ही रंजू की तबियत काफी बिगड़ जाती है।
उसे उल्टियां होने लगती हैं। नीरा देवी कुशल को फ़ोन करके सब कुछ बताती हैं। कुशल ऑफिस से जल्दी घर आ जाता है और रंजू को डॉक्टर के पास लेकर जाता है।
डॉक्टर रंजू का चेकअप करता है।
डॉक्टर, “इन्हें फूड पॉइज़निंग हो गई है। लगता है इन्होंने काफी बासी खाना खाया है।
मैं कुछ दवाइयां लिख रहा हूँ, तीन दिनों तक इन्हें हल्का खाना ही देना है और ध्यान रहे… बासी खाना बिल्कुल नहीं खाना है।”
कुशल रंजू को लेकर घर आता है और फ्रिज में रखा सारा बासी खाना फेंक देता है।
उस दिन के बाद से रंजू की बासी खाना खाने की आदत छूट जाती है। अब वो रोज़ तीनों वक्त ताजा खाना बनाने लगती है।
दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लगी, नीचे कमेंट में हमें जरूर बताए और ऐसी ही मजेदार कहानी के लिए पेज को फॉलो करें