Prem Kahani उमेश और रुचि

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Prem Kahani उमेश ने रुचि से लव मैरिज की थी।दोनों कालेज में साथ ही पढ़ते थे।रुचि बहुत ही प्रतिभाशाली लड़की थी।अपनी कक्षा में हमेशा टॉप पर रहती थी।वह उमेश से भी हमेशा आगे ही रहती पर दोनों की शुरू से ही दोस्ती थी अत: जब यह दोस्ती प्यार में बदल गयी तो फिर दोनों ने शादी कर ली।

रुचि एक बहुत ही अमीर परिवार की शहरी लड़की थी।उसके पापा शहर के एक बड़े व जाने-माने बिजनेसमैन थे इसलिए वे उमेश से उसकी शादी कराने के पक्ष में नहीं थे पर बेटी की जिद के आगे उन्हें हार माननी पड़ी थी।ठीक इसके विपरीत उमेश गांव की पृष्ठभूमि से आता था।उसके पिता जी एक विद्यालय के रिटायर्ड प्रिंसिपल थे और मां सीधी सादी घरेलू महिला थीं।

उमेश के पिताजी का स्कूल तो शहर में था पर वे घर से ही स्कूल आना जाना करते थे।रिटायरमेंट के बाद उमेश ने अपने साथ शहर में रहने की उनसे जिद तो बहुत की थी पर वे उनके साथ नहीं गये और पति-पत्नी गांव में ही रहते थे।

उमेश के पिताजी काफी उच्च शिक्षित थे और बहुत ही विनम्र व्यक्ति थे।कहा भी गया है – विद्या ददाति विनयं।विद्या पाकर जो विनयशील नहीं हुआ वह विद्या वान या विद्वान कैसे हो सकता है??अतुलनीय विद्वता के बावजूद असाधारण विनम्रता के कारण लोग उनकी बहुत ही इज्जत करते थे।

रुचि और उमेश दोनों ही युनिवर्सिटी के प्रोफेसर थे।शहर में उन्होंने अपना एक फ्लैट भी खरीद लिया था पर वे त्योहारों में यदा-कदा घर आते-जाते रहते थे।रुचि पढ़ाई में जितनी होशियार थी उससे कहीं ज्यादा उसे इस बात का घमंड भी था।बात बात में वह वहां (गॉंव ) के लोगों को बताना नहीं भूलती कि वो शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की टॉपर रही है।

एक बार, किसी बात पर घर में रुचि की अपने ससुर से बहस हो गयी।बात कैमिस्ट्री से संबंधित थी।रुचि के ससुर खुद ही कैमेस्ट्री के विद्वान थे पर अपने ज्ञान के घमंड में रुचि उन्हें अन्डर इस्टिमेट करते हुए बोली -पापा जी! आप मुझसे बहस न करें।मैं केमिस्ट्री में पी एच डी, डी लिट हूं।आपने भी भले ही कैमिस्ट्री से ही पढ़ाई की होगी पर आपकी नॉलेज इतनी अपडेटेड नहीं है।अब वो पुराने ज़माने की बात थी जब आप पढ़े होंगे।

रुचि के ससुर चुप रह गये और मुस्कराते हुए वहां से हट गए।आखिर बेटे-बहू से बहस कर कौन अपने बुढ़ापे का सुख-चैन गंवाना चाहेगा और आज के बच्चों से बहस में जीत भी कौन सकता है भला ???

उमेश रुचि को कई बार समझाने का प्रयास करता कि तुम पिताजी से ऐसे नहीं मुंह लगाया करो।वे भी बहुत बड़े विद्वान हैं।अपने समय के वे भी टॉपर ही रहे हैं…पर वे तुम्हारी तरह बड़बोले नहीं हैं बस।

जाओ भी…रुचि बड़े अहंकार से कहती और उसकी एक न सुनती।एक बार अपने पी एच डी के गाइड व सुपरवाइजर प्रोफेसर विज की इच्छानुसार रुचि को उन्हें अपने गांव (ससुराल) वाले घर बुलाना पड़ा।रुचि की समझ से यह बाहर था कि वो वहां क्यों आना चाहते थे पर उनकी इच्छा को वह टाल न सकी।

रुचि ने उस घर को मॉडर्न तरीके से सजाने,संवारने में बहुत तैयारियां की थी।उसके सास-ससुर ने जानना चाहा कि आखिर ऐसा कौन आ रहा है जिसके लिए इतना सब कुछ हो रहा है??उनका कहना था कि हम जो भी हैं वो हमारे व्यवहार से दिख जाता है फिर ये सब करने की क्या जरूरत है??? पर रुचि ने उनकी बात पर कान ही नहीं दिया,उलटि पलट कर जवाब दियि – आप लोग सोच भी नहीं सकते कि वो कौन हैं ??उन्हें इंटरनेशनल अवार्ड्स तक मिल चुके हैं…

शाम को रुचि के मेहमान आए।रुचि उनकी आवभगत में लगी हुई थी।वो चाहती तो नहीं थी कि उसके ससुर मेहमान के सामने आएं पर उमेश के डांटने पर वह चुप रह गयी।

डॉक्टर विज ने जैसे ही रुचि के ससुर को देखा तो वो उनके पैरों में झुक गए…प्रिंसिपल सर! आप यहां हैं अभी तक?वो भाव विह्वाल हो उठे।

बूढ़ी आंखों ने ध्यान से उसे देखा, तुम अधिराज हो?उसे पहचानते हुए वो बोले।

जी…आपसे ही हमने केमेस्ट्री के सूत्र याद रखने की ट्रिक्स सीखी थीं।देश-विदेश के कितने ही टीचर्स से पढ़ लिए पर जो बात आप में थी वो बात आज तक मुझे कहीं न दिखी।

रुचि अवाक होकर यह सब देख रही थी।उसने कभी अपने ससुर को समझा ही नहीं और उनसे बहस करती रही।उन्होंने कभी बताया भी तो नहीं था कि उनके स्टूडेंट्स इतने बड़े पोस्ट पर हैं।

आज वो कहावत सच सिद्ध हो रही थी कि थोथा चना बाजे घना…वो कैसे अपने ज्ञान का पिटारा अपने सिर पर लिए घूमती रही और उसके ससुर इतने ज्ञानी होते हुए भी बिल्कुल शांत,सरल और सौम्य बने रहे।
विद्वता की सबसे बड़ी पहचान भी तो यही है।तभी तो कहा गया है कि

बड़े बड़ाई ना करै ,बड़े न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहत ,लाख टका मम मोल।।

दोस्तों, जो सचमुच प्रशंसा के पात्र होते हैं वे कभी खुद अपनी प्रशंसा नहीं करते।बल्कि अपनी प्रशंसा सुनकर भी वे बस सौम्यता से हलका मुस्कुरा कर रह जाते हैं।जो प्रशंसा के पात्र होते हैं उनकी प्रशंसा दूसरे लोग करते हैं‌।खुद की प्रशंसा करना आत्ममुग्धता की श्रेणी में आता है जो पतन की सबसे पहली सीढ़ी है।आपका इस संबंध में क्या विचार है ???

यह मूल कहानी वैशाली,गाजियाबाद की रहने वाली संगीता अग्रवाल बहन की है जिसे अपना टच देने के लिए मैंने इसमें भाषाई संशोधन करने के साथ ही अपने विचार जोड़कर इसे आपको परोसा है।

कहानी अगर अच्छी लगी हो तो आपका आशीर्वाद चाहूंगा।….!!
आभार -शिवनाथ भैया

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