Parivarik Kahani: रिश्तों को बैलेंस करना आना चाहिए” अरे सुनो, मयंक को फोन करके कहना कि मेरे लिए दवाईयां लेते आए। दवाइयां आज खत्म हो जाएगी “
सरला जी अंदर कमरे आते हुए बोली।
” अब तुम मयंक को क्यों कह रही हो? बहू को बोलो ना। दवाई तो वो लेकर आएगी। कितनी बार कहा है कि मुझे बोलने से अच्छा है सीधा बहू को बोल दिया करो। पर पता नहीं क्यों, क्या टेक लेकर बैठी रहती हो मन में “
गगन जी ने भी जवाब दिया।
” बहु को क्यों बोलूं। मेरा बेटा है, मैं तो उससे बोलूंगी”
सरला जी तूनकते हुए बोली।
” तुम जानो और तुम्हारे लीला जाने। अच्छे से पता है कि सेवा बहू करती है तो बहू से बात क्यों नहीं करती हो। जब देखो, बेटे को फोन करती हो और फिर वो एक ही दो बात सुना देता है “
गगन जी चिढ़ते हुए बोले।
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” अरे उसके पास वक्त नहीं होता। जब देखो उसके लिए कुछ ना कुछ कहते रहते हो। पैसे तो वही कमा कर लाता है ना”
सरला जी बेटे की पक्ष में बोली।
” हां, माना कि कमाकर वो लाता है। लेकिन सेवा बहू ही करती है। तुम्हारे बेटे को तो ये तक नहीं पता कि तुम दवाइयां कौन-कौन सी लेती हो। और फिर कह रही है उसको फोन करके बोल दो। अरे, तुम उसको फोन करती हो। और फिर वो बहू से आकर लड़ता है कि वो घर में रहकर क्या करती है। जबकि बहु को तुम कुछ बोलती नहीं। तुम दोनों पति-पत्नी में झगड़ा करवा देती हो”
” तुमसे एक बात कहो ना तो तुम दस बातें सुनाते हो। तुमसे तो बोलना ही बेकार है। मैं खुद ही कर दूंगी अपने बेटे को फोन “
कहती हुई सरला जी जिस रफ्तार से कमरे में आई थी उसी रफ्तार से बाहर निकल गई। और जाकर अपने बेटे मयंक को फोन लगा दिया। मयंक के फोन उठाते ही उन्होंने बोलना शुरू किया,
” बेटा आज आते समय मेरी दवाई लेते आना सिर्फ एक दिन की ही दवा बची है”
” मम्मी मैं ऑफिस में बिजी हूं। आप मुझे फोन करके कह रही हो। स्नेहा भी तो वही है, उससे कह दीजिए”
” अब उससे क्या बोलूं? वो तो कहीं बाहर गई भी है। तू तो तू ही आते समय मेरी दवाई लेते आना। तुझे पता है ना मैं एक दिन भी दवाई नहीं लेती तो मुझे समस्या होती है “
” ठीक है मम्मी, मैं देखता हूं”
कहकर मयंक ने फोन रख दिया।
और सीधे फोन लगाया अपनी पत्नी स्नेहा को। स्नेहा के फोन उठाते ही मयंक ने बोलना शुरू किया,
” यार कहां हो तुम। मम्मी की दवाई खत्म हो रही है। तुम उन्हें दवाई तो लाकर दे सकती हो। वह मुझे यहां ऑफिस में फोन करके परेशान कर रही है”
” मयंक मैं बाजार ही तो आई हूं। अब जाहिर सी बात है दवाई भी लेकर ही जाऊंगी। ऊपर से मुझे उनकी रिपोर्ट भी कलेक्ट करनी है। मुझे क्या पता वो तुम्हें क्यों फोन कर रही है। कह कर तो आई थी कि बाजार जा रही हूं “
” यार तुम लोगों का मुझे समझ में नहीं आता। मम्मी तुमसे कहती नहीं है या तुम काम करती नहीं हो? कुछ समझ ही नहीं आ रहा मुझे तो। उन्हें हर बात क्लियर बात कर निकला करो ना”
कहकर मयंक में फोन रख दिया। सुनकर स्नेहा का भी मूड खराब हो गया। आखिर सरला जी ऐसा करती ही क्यों है उसे समझ में नहीं आता। कोई भी बात होती है उससे वो कभी नहीं कहती थी। सीधा मयंक को ही बोलती थी। कई बार तो मयंक सुनकर चुप हो जाता। लेकिन कई बार जब मूड खराब होता तो वो स्नेह से लड़ पड़ता।
अभी कल शाम की ही बात है। स्नेहा ने खाना बनाकर गगन जी और सरला जी को खाना खिलाने बैठा दिया। कल शायद सब्जी थोड़ी तीखी हो गई। इसलिए स्नेहा ने दाल अलग से बनाई। गगन जी ने तो खाना चुपचाप खा लिया। लेकिन सरला जी उस समय कुछ नहीं बोली।
लेकिन जैसे ही मयंक खाना खाने बैठा सरला जी भी उसके पास बैठ गई और उससे बोली,
” आज सब्जी में मिर्ची थोड़ी तेज हो गई है। मुझे तो बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। मुझसे तो खाना भी नहीं खाते बन रहा था। वो तो जैसे तैसे दाल में रोटी डूबो डुबोकर खाया है। आज तो मेरा पेट भी नहीं भरा। लगता है आज तो भूखे रहने की ही नौबत है”
ये सुनकर मयंक ने स्नेहा को बुलाया,
” स्नेहा तुम्हें पता है ना कि मसालेदार सब्जी मम्मी पापा से खाते नहीं बनती। फिर सब्जी इतनी तीखी कैसे कर दी?”
” मयंक वो गलती से सब्जी में मिर्च दो बार गिर गई। इसीलिए मैंने दाल बनाई है। ताकि मम्मी जी पापा जी भी पेट भर के खाना खा ले”
” थोड़ा तो ध्यान देना चाहिए। अब तुम ही खाओ तुम्हारी यह सब्जी। मम्मी का तो पेट भी नहीं भरा। खुद का पेट भरने से मतलब होता है। घर में बाकी लोग चाहे भूखे रह जाए”
“मयंक मैं मान तो रही हूं ना कि मुझसे गलती हो गई। इसीलिए ही तो मैंने दाल बनाई थी”
” तो कोई एहसान किया था मुझ पर। तुम मम्मी पापा का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रख सकती हो”
कहते हुए मयंक खाना खाते-खाते उठ गया। और इस तरह छोटी सी बात का तिल का ताड़ हो गया। उस दिन भी गगन जी ने मयंक को बहुत समझाया था। मयंक समझता तो सही फिर थोड़ी दिन में भूल जाता।
खैर शाम को मयंक घर आया तो सरला जी उसके लिए पानी का गिलास लेकर आई।
” अरे मम्मी आप पानी का गिलास लेकर आई हो। स्नेहा कहां है?”
” वो तो अभी तक घर नहीं आई। पता नहीं कौन से बाजार गई है”
सरला जी उसके पास बैठते हुए बोली। गगन जी ने कहा,
” अरे! अभी आ जाएगी। कई बार रिपोर्ट तैयार नहीं होती है तो उसमें टाइम लग जाता है। जब मेरी उससे बात हुई थी तो वो रिपोर्ट लेने गई हुई थी”
” राम ही जाने, कौन सी रिपोर्ट लेने गई है। भला इतना टाइम लगता है क्या”
” पर फिर भी अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था। आपने दोबारा फोन लगाया उसे?”
मयंक ने पूछा।
“नहीं। पर आ रही होगी अपनी सहेलियों के साथ झूलते झूलते। आते समय अपनी सहेलियों के साथ लग गई होगी बातें करने। देख ले बेटा, मैं कहां झूठ बोल रही हूं। दवाई अभी तक नहीं आई मेरी”
सरला जी ने कहा।
मयंक फोन लगाने लगा कि इतने में स्नेहा आ गई। उसे देखते ही मयंक ने डांटना शुरू कर दिया,
” कहां थी तुम अब तक। सहेलियों के लिए टाइम है लेकिन घर के लिए नहीं। मम्मी की दवाई अभी तक नहीं आई”
” मयंक पहले सुन तो लो। मम्मी की रिपोर्ट कलेक्ट करने में ही टाइम लग गया। सभी रिपोर्ट्स तैयार ही नहीं थी।
और कौन सी सहेलियों के साथ थी मैं। बताओ मुझे”
अब की बार स्नेहा ने अपनी आवाज थोड़ी ऊंची करते हुए कहा।
” आवाज नीची करके बात करो। एक तो खुद बाहर घूम रही हो, घर की कोई जिम्मेदारी नहीं है। और ऊपर से मुझे सुना रही हो”
” मयंक में अपनी जिम्मेदारी समझ कर ही गई थी। अब टाइम लग गया तो उसमें मैं भी क्या कर सकती हूं”
” स्नेहा, अपनी जबान बंद करो”
मयंक गुस्से में आता हुआ बोला।
” बस करो मयंक। उसने घर में कदम भी नहीं रखा और तुमने चिल्लाना शुरू कर दिया। उस पर चिल्लाने से अच्छा था कि तुम्हारी मम्मी की रिपोर्ट्स और दवाइयां तुम खुद लेकर आते। हर चीज में वक्त लगता है”
गगन जी ने कहा तो स्नेहा रिपोर्ट्स और दवाइयां वही रखकर अपने कमरे में चली गई। गगन जी ने सरला जी की तरफ घूर कर देखा, जैसे कह रहे हो कि पड़ गई मन को ठंडक। उन्हें घूरता देखकर सरला जी भी उठकर अपने कमरे में चली गई। तब गगन जी मयंक से बोले,
” बेटा जब तुझे पता है कि तेरी मां हर बात तुझसे ही कहती है, तेरी पत्नी से नहीं। तो थोड़ा संयम तू भी रखा कर। बिना सच जाने छोटी-छोटी बातों को लेकर बस बहु से लड़ पड़ता है। ऐसे तो बेटा तुम लोग कैसे खुश रहोगे”
“पर पापा, मैं भी क्या करूं? मम्मी सीधे मुझसे बोलती है। तो मुझे भी लगता है कि स्नेहा कुछ भी नहीं करती”
मयंक ने अपनी बात कही।
” बेटा एकदम से रिएक्ट क्यों करते हो? एक को सुनकर दूसरे को डांट देना। या दूसरे को सुनकर एक को नजर अंदाज कर देना। ये गलत है। हम पुरूषों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती। हमें भी बैलेंस करना पड़ता है। जब चीजों को बैलेंस करना सीख जाओगे तो ही जिंदगी में खुश रहोगे। और घर में शांति रहेगी। मम्मी ने कहा और तुम ने रिएक्ट कर दिया। ये तो गलत है। अपना खुद का दिमाग इस्तेमाल किया करो”
” सॉरी पापा, आगे से ध्यान रखूंगा”
कहकर मयंक अपने कमरे में चला गया और स्नेह से माफी मांगी। अब सरला जी कोई भी बात कहती तो मयंक पहले रिएक्ट करने की जगह पहले बातों को समझता, उसके बाद ही बोलता था। और इस कारण अब उसमें और स्नेहा में झगड़े कम हो चुके थे।
मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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