old story in hindi: जून की दोपहर का वक्त है, गरम-गरम लू चल रही है, गर्मी की वजह से एक चिड़िया का बच्चा भी बाहर नजर नहीं आ रहा था। हर छोटा बड़ा गांव में अपने घर में बैठे हैं ।बच्चों के स्कूल की छुट्टियां चल रही है, तो मांए भी छोटे बच्चों को कुछ समय के लिए दोपहर में सुला ही देतीं है।
गांव की चौपाल पर भी सन्नाटा छाया हुआ है इस बार गर्मी जरा ज्यादा ही जोर दे रही है। पर दुकानदार और कामकाजी व्यक्ति को तो काम पर निकलना ही पड़ता है। हरदेव जी अपने बरसो पुराने नौकर माधव के साथ अपनी बड़ी सी हवेली में आजकल अकेले रह रहे हैं।
कभी समय था कि यह हवेली बच्चों के शोर से गुलजार रहती थी।घर आंगन बच्चों और बड़ों की हंसी से गुलजार था। छोटे-बड़े नौकर चाकर सब कुछ तो था हवेली में। हर समय हवेली में चहल-पहल रहा करती थी।पर वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता ,आज उसी हवेली में मानो भूत लोट रहे हों।
एक माधव ही था जो हरदेव जी से जरा बहुत बातें करता, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखता, उनका खाना पीना बनाता था। तभी माधव अपने सेठ जी से कहता है सेठ जी आप भी थोड़ी देर लेट जाइए , लम्बी दोपहरी है,थोड़ा तो वक्त कट ही जाएगा। पर हरदेव जी को इस समय न तो दिन को चैन था, और न ही रातों को आराम था। आजकल उनके दिन बस गुजर रहे थे और रातें बस कट रही थी।
उनका अकेलापन उन्हें काटने को दौड़ता था। कभी वक्त था कि उनका बहुत रुतबा था गांव में,वह इस गांव के जाने-माने आदमी कहे जाते थे। वो गांव के सरपंच थे। सब उन्हें बहुत सम्मान देते थे, कुछ उनके ओहदे की वजह से तो, कुछ उनकी तानाशाही से डरकर। उनका कहा कोई टाल नहीं सकता था।
असल में एक समय था जब हरदेव जी के पिताजी रमेश चंद जी दूसरों के खेतों में हल चलाया करते थे । रमेश चंद जी बड़े सीधे सरल और संतोषी स्वभाव के थे। लेकिन हरदेव जी शुरू से ही बड़े महत्वाकांक्षी रहे। उन्होंने अच्छी शिक्षा हासिल की और अपनी सूझबूझ से खेती की बारीकियां सीखी। गांव भर में उनका फर्श से अर्श तक आने का उदाहरण दिया जाता था।
यह आज उनकी मेहनत और सूझबूझ का ही नतीजा था कि गांव भर में आज उनके खुद दस बारह खेत थे। उनकी खुद की ही बनाई एक बड़ी सी हवेली थी। फिर क्या था धीरे-धीरे उनका खुद के बनाए रुतबे और हैसियत का गुमान उनके सिर पर चढ़ने लगा।
वो ना अब अपने मां-बाप को कुछ समझते ना ही बीवी बच्चों को, उनका अंहकार था कि बढ़ता ही जा रहा था। उनके अहंकार और अकड़ से अब उनकी गृहस्थी की गाड़ी भी प्रभावित होने लगी थी।
उनके दो बेटे शशि और रवि थे। शशि तो अपने दादाजी रमेशचंद्र जी की तरह शांत और संतोषी स्वभाव का था, पर रवि थोड़ा गर्म मिजाज था उसे बात बात पर अपने पिताजी की तानाशाही पसंद नहीं आती।
एक दिन तो हद ही हो गई जब हरदेव जी ने कहा कि सब कुछ मेरा कमाया है सब कुछ मेरा है और तुम सब मेरी वजह से ही खा पी रहे हो, पूरे परिवार में से यह बात किसी को भी पसंद नहीं आई। हरदेव जी की पत्नी ज्योत्स्ना जी ने भी हरदेव जी को बहुत समझाने की कोशिश की पर बात थी कि बढ़ती चली गई।
रवि को यह बात बहुत नागवार गुजरी उसने कहा यदि नौकरी ही करनी है तो कहीं और कर लेगा पर यहां इस तरह अपनी जिंदगी नहीं बितायेगा, और वो उसी समय, खाली हाथ ये कहकर हवेली से निकल गया कि अब मैं कुछ अपने दम पर ही बनकर दिखाऊंगा।
हरदेव जी भी गुस्से में थे, उन्होंने गुस्से में कहा, हां हां देखता हूं कितने दिन कमाकर खाता है। उस दिन का दिन और आज का दिन आज बीस बरस हो गए , रवि लौट कर नहीं आया।
सुना है उसने भोपाल में अपनी लगन और मेहनत से अपनी कोठी भी बना ली है और खुद का व्यापार भी खड़ा कर लिया है ,और सुखी सुखी अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है।
उधर शशी की उम्र भी शादी की हो चली थी,शशि के रिश्ते आने लगे थे ,हरदेव जी ने एक सीधे सरल परिवार से नाता जोड़ कर उसकी शादी तय कर दी। उनकी अकड़ अभी बाकी थी । उन्होंने बेटे की शादी के कार्ड पर अपने मां पिताजी का नाम नहीं लिखवाया ।जिसकी गांव भर में चर्चा थी। पर कहते हैं ना बड़े आदमी के सभी ऐब दब जाते हैं।
हरदेव जी के पिताजी ने कहा तो कुछ नहीं लेकिन उन्हें मन ही मन अपनी बेटे के इस व्यवहार पर बहुत दुख हुआ ,उम्र तो थी ही लेकिन मन ही मन वे दुखी रहने लगे और एक दिन उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई।
उधर शशि की बहू अब घर आ गई थी उसने खूब अच्छे से घर परिवार की सारी जिम्मेदारियां संभाल ली थी, लेकिन ज्योत्सना जी अभी भी मन से बहुत दुखी थी। उन्हें रह रह कर अपने छोटे बेटे रवि की याद सताती लेकिन कर भी क्या सकती थी। शशी की शादी के लगभग पांच वर्ष बाद ज्योत्स्ना जी भी स्वर्ग सिधार गईं।
लेकिन हरदेव जी की तानाशाही कम नहीं हुई,वो सारी कमाई,सारी बचत खुद संभालते, शशि को छोटे-छोटे खर्चों के लिए अपने पिताजी के सामने बार-बार हाथ पर फैलाना पड़ता।
कमी किसी चीज की नहीं थी,
(बस यहां ऊंची दुकान फीके पकवान)
जैसा हाल था। हरदेव जी वक्त की नजाकत को नहीं समझते थे, वे नहीं समझते थे कि वक्त बदल रहा है खर्चे बढ़ रहे है, उन्हें थोड़ी बहुत छूट तो शशि को भी देनी चाहिए ।
वैसे भी शशी जैसा श्रवण कुमार उन्हें पिछले जन्मों के कर्मों और नसीब से ही मिला था। शशि परेशान रहने लगा कि घर के छोटे मोटे खर्चे के लिए पैसा कहां से लाए पिताजी तो ज्यादातर समय बाहर चौपाल या किसी के साथ बैठकर गुजार देते थे। शशि मन ही मन सोच रहा था कि मैंने पूरी जिंदगी पिताजी की परछाई बनकर गुजार दी और आज उसका ये फल उसे मिल रहा है। पर फिर मन को समझाता पिताजी बड़े है कोई बात नहीं ,उनका हक है मुझ पर, एक दिन सब ठीक हो जाएगा,सोचकर शांत हो जाता।
लेकिन एक दिन जब हरदेव जी ने अपनी पोती की पढ़ाई का पैसा देने से यह कहकर मना कर दिया कि क्या फायदा है ज्यादा पढ़ाई का, जाएगी तो ससुराल ही, फिर क्या करना है किसी पराई अमानत पर खर्च करके।
इस एक बात ने शशि और शशि की पत्नी सुगंधा का दिल तोड़ दिया। वे दोनों लड़का और लड़की में कोई भेदभाव नहीं समझते थे ,वे दोनों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे। शशि सोचने लगा कि उस दिन मैं भी रवि की तरह छोटी उम्र में ही इन्हें छोड़कर चला जाता तो आज मैं खुद में इतना समर्थ होता अपने बच्चों के लिए। बस परिवार की इज्जत की खातिर पूरी जिंदगी इनके साथ बिता दी।
लेकिन शशि की पत्नी सुगंधा को यह बात कतई पसंद नहीं आई। उसने अपने पति से कहा मैंने आज तक आप से कुछ नहीं कहा। लेकिन आज बात आपके स्वाभिमान और बच्चों के भविष्य की है।आज आपको अपने स्वाभिमान और बच्चों की खातिर एक बड़ा फैसला लेना ही होगा।
उसने अपने सारे गहने जेवर शशि को देते हुए कहा कि इन्हें कहीं गिरवी रखकर आप छोटा-मोटा काम शुरू कर दें। मैं हमेशा आपके काम में आपका साथ दूंगी भोले बाबा पर भरोसा रखना सब भला होगा।बस उस रात हवेली में हुआ यह फैसला उस हवेली की रौनक अपने संग ले गया। गांव में भी धीरे-धीरे लोग अब हरदेव जी से कन्नी काटने लगे थे।
हरदेव जी अभी अपने किए पर पछता ही रहे थे सोच रहे थे कि उन्हें अपनी तानाशाही की वजह से जीवन की संध्या बेला इस तरह तन्हा काटनी पड़ रही है। तभी दरवाजे पर हुई दस्तक से हरदेव जी अतीत से बाहर आते हैं ,माधव दरवाजा खोलता है, माधव कहता है सेठ जी देखिए तो कौन आया है, हरदेव जी देखते है कि बाहर शशि और उसकी पत्नी सुगंधा और बेटी मणि के साथ आया है। शशि और सुगंधा आगे बड़कर हरदेव जी के पांव छू लेते हैं।
शशि अपनी बेटी मणि की शादी का कार्ड हरदेव जी के हाथों में देता है। वह कहता है पिताजी आपकी आईपीएस ऑफिसर पोती का हाथ लड़के वालों ने मुंह से मांगकर लिया है। लड़का अच्छा है परिवार अच्छा है बस अब आपको चलकर ये विवाह आपके आशीर्वाद के साथ करवाना है।
हरदेव जी शादी के कार्ड में अपना नाम पोती ( श्री हरदेव अग्रवाल और स्वर्गीय ज्योत्स्ना अग्रवाल जी की) पढ़कर रोने लगते हैं। अपने बेटे से शशी से कहते हैं मुझे माफ कर देना बेटा मैंने तेरी शादी में अपने पिताजी और मां का नाम अपनी झूठी अकड़ में नहीं लिखवाया था ये शायद उसका ही नतीजा है कि भरा पूरा परिवार और घर आंगन होते हुए भी आज मुझे इस तरह जीवन अकेले काटना पड़ रहा है। रवि तो शायद मुझे कभी माफ नहीं करेगा।
मुझे आज जाकर ये समझ में है आया कि व्यक्ति के कर्म जिंदगी भर उसके साथ साथ चलते हैं। जिंदगी एक आईने की तरह है जिस तरह के कर्म हम करते हैं वो ही आईने की तरह जिंदगी हमें दिखाती है। बेटा मैं इस लायक नहीं कि इस कार्ड पर मेरा नाम लिखा हो।
शशि कहता है पिताजी आप माफी न मांगे आप बड़े हैं, आपका आशीर्वाद हमारे लिए बहुत मायने रखता है। मेरी रवि से भी बात हो चुकी है रवि भी शादी में आने वाला है उसे भी अब आप से कोई कोई गिला शिकवा नहीं है। बस अब आप हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो जाइए मैं आपको लेने आया हूं।
शशी कहता है भला आप की पोती का विवाह आपके (लाला हरदेव जी के) आशीर्वाद के बिना कहीं हो सकता है। इतना सुनकर हरदेव जी शशी को गले लगा लेते हैं ,रिश्तो के आईने पर बरसों से पड़ी धूल आज साफ हो जाती है, और हवेली का सूना घर आंगन फिर से महक उठता है।