Motivation Kahani | मां की सीख

Motivation Kahani सुधा की नई-नई शादी हुई थी वह ससुराल से एक महीने बाद जब अपने मायके लौटी तो मां के सामने रोने बैठ गई और आंसू बहाते हुए बोली… मां… तुमने मुझे किस घर में पटक दिया वहां तो मेरी कोई इज्जत ही नहीं है
सारा दिन नौकरानी की तरह रसोई घर में खड़ी रहती हूं
किसी को भी दया नहीं आती मुझ पर


कभी सास ससुर की रोटी पकाओ तो कभी दो छोटे देवर की रोटियां पकाओ फिर एक नन्द है वो कालेज से लौटे तो उसके लिए रोटियां पकाओ


और तो और मां आए दिन सासू मां के रिश्तेदार आते रहते हैं उन सबके लिए भी मुझे ही चाय नाश्ता खाना वगैरह तैयार करना होता है


रोज गंदे कपड़ों के ढेर इकट्ठे हो जाते हैं आराम ही नहीं मिलता जिंदगी नरक सी बन गई है
नन्द को बिस्तर पर बैठे-बैठे ही सब कुछ चाहिए


जानती हो बीते दिन मुझे अपने पति पर तब गुस्सा आया
जब उन्होंने महीने की पूरी तनख्वाह सासू मां के हाथ में रख दी और मुझसे कहा तुम्हें जो कुछ भी चाहिए एक पर्ची पर लिख देना मैं शाम को ड्यूटी से छुट्टी होने पर लेता आऊंगा

और पढ़ें प्रेम कहानी


सुधा की बातों को ध्यान से सुनकर मां ने थोड़ा सोचकर कहा …तो तुम क्या चाहती हो
मुझे उन सबके साथ नहीं रहना बस में और मेरे पति हम दोनों अलग अपनी गृहस्थी बसा ले कुछ ऐसा उपाय बताओ मां


हूह… बेटा तुम्हारे पास दो ही रास्ते हैं एक तो तुम वहीं रहो और उन सब की सेवा करो क्योंकि वह परिवार भी अब तुम्हारा ही है और अगर तुम चाहती हो तो तुम अपने पति को किसी किराए के मकान में ले जा सकती हो वहां तुम्हें किसी का खाना नहीं पकाना पड़ेगा किसी के कपड़े नहीं धोने पड़ेंगे पति की पूरी तनख्वाह भी हाथ में ही तुम्हें मिलेगी लेकिन याद रखना जब तुम्हारे कोई पुत्र होगा और जब वह बड़ा हो जाएगा उसकी भी शादी होगी घर में तुम्हारे जब बहू आएगी उस वक्त तुम यही चाहोगी कि मेरा बेटा और मेरी बहू मेरे ही साथ रहे और मैं अपने नाती पोतों के साथ खेलूं…


प्यास लगने पर मेरे नाती पोते दौड़ कर मेरे पास लिए एक गिलास पानी ले आएंगे कोई ऐनक ढूंढ कर मेरे हाथ में थमा देगा


कोई कहेगा दादी जी खाना बन चुका है थाली लग गई है आओ हम सब मिलकर खाना खाएंगे
मां ने आगे बोलना जारी रखा जिन कामों को तुम दुख बता रही हो एक-एक करके गिना रही हो दरअसल यही जीवन के महत्वपूर्ण क्षण है एक सफल गृहिणी अपने हर एक कार्यों को सरल बना कर झट निपटा देती है उसका रोना नहीं रोती दुनिया में जो लोग सफल हुए हैं वह अपनी जिम्मेदारियों से भागते नहीं बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा लेते हैं और बेटा ये जो तुम जिन्हें दुख समझ रही हो ना वो दर असल तुम्हारी सासूमां तुम्हें एक जिम्मेदार बनना सीखा रही वो आनेवाले समय के लिए और आनेवाली अनेकों परेशानियों से निपटने के लिए लड़ना सीखा रही है वर्षों से हर सास अपनी बहु को अपनी जगह पर जिम्मेदार बनाने के लिए ऐसा करती आई है कल तुम भी अपनी बहु को जिम्मेदार बनाने के लिए उसे मजबूत बनाओगी बेटा घर के बुजुर्ग कब तक है और कब नहीं कोई नहीं जानता वो अपनी आनेवाली पीढ़ियों को मजबूत और रिश्ते निभाते हुए देखना चाहते हैं कल तुम भी अपने बच्चों से यही आशाएं रखोगी


सुधा की आंख में आंसू थे सुधा ने उसी वक्त अपना बैग उठाया और बोली …बस मां मैं समझ गई आपकी बातों में अनमोल सीख है मैं चली अपने ससुराल शाम होने वाली है सासू मां के पैरों में दर्द रहता है उनके घुटनों की मालिश भी करनी है सुधा इतना कह कर मुस्कुराती हुई ससुराल की ओर चल दी वहीं दूसरी ओर मां अपनी बेटी की समझदारी पर मुस्कुरा रही थी….!!

Leave a Reply