मैं चुप हूं इसलिए तुम ताकतवर हो Short Story

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मैं चुप हूं इसलिए तुम ताकतवर हो

Short Story: ‘ राजू, ओ राजू! जरा जल्दी से बाहर तो आओ। तनिक जरूरी काम है’
‘क्या हुआ बापू? सुबह-सुबह गला फाड़े जा रहे हो’
‘अरे, तुझे पता है रामदीन काका की फुलवा वापस ससुराल से पीहर आ गई’
‘क्यों इस बार क्या बात हो गई’
‘ पता नहीं पर कह रहे थे ससुराल वाले बहुत मारे बिटिया को’
‘ अरे जल्लादों के घर ब्याह दिया बेटी को’

Short Story
‘ पिछली बार भी मारपीट कर छोड़ गए थे। पर क्या करें? समाज की दुहाई देकर रामदीन काका वापस ससुराल छोड़ आए थे। तीन छोटी बेटियां और है, उनको भी ब्याहना हैं’
‘ अब क्या करें बापू? आप तो वह बताओ।’
‘चल रामदीन काका के घर चल कर आते हैं। देखते हैं इस बार क्या हुआ?’
ऐसा कहकर राजू अपने बापू किशनलाल को रामदीन काका के घर की तरफ ले कर चल पड़ा। रामदीन काका का घर ज्यादा दूर नहीं था। दोनों जल्दी ही राम दिन काका के घर पहुंच गए। वहां जाकर देखे तो रामदीन काका बाहर खाट पर सिर पकड़े बैठे हैं और काकी रो रही है। घर में मातम का सा माहौल हैं।
किशन लाल जी ने रामदीन काका से पूछा, ‘भाई रामदीन! क्या बात है? सुना है फुलवा वापस आ गई। बहुत मारे है उसके ससुराल वाले उसको।’
‘ हां कल रात को ही इसका पति यहाँ छोड़ गया था। बहुत बुरी तरह मारे हैं हमारी बिटिया को। आंखों में फिर भी शर्म लिहाज नहीं’
‘ क्यों मारा? कारण तो बताओ। कुछ तो बोला होगा वह बेशर्म आदमी’
‘ हाँ, कह रहा था जब काम ढंग से करना आ जाए और सास और पति का लिहाज करना आ जाए तब भेज दियो ‘
‘ अच्छा जरा बुलवाना फुलवा बिटिया को बाहर। तनिक उससे बात करनी है’
रामदीन काका ने अपनी बिटिया को बाहर बुलाया। जब फुलवा बाहर आई तो उसे देख कर किशनलाल और राजू दोनों सकते में आ गए। आंखें सूजी हुई, चेहरे पर चोट के निशान, हाथ और गले पर नील पढ़ी हुई। देखकर बहुत ही गुस्सा आया, पर खुद को संयमित रखकर किशन लाल ने कहा, ‘ क्या हुआ बिटिया? इस तरह क्यों मारा’
फुलवा चुप रही। उसे इस तरह चुप देख कर किशनलाल ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोला ‘बिटिया, ताऊ लगता हूं तेरा। तु मुझे तो बता इस तरह क्यों मारा?’
किशन लाल के मुंह से अपने लिए प्यार भरे शब्दों को सुनकर फुलवा का रोना छूट गया। रोते हुए बोली, ‘ताऊ जी! क्या बताऊं? जल्लाद है वो लोग।छोटी-छोटी बातों पर बहुत मारते हैं। बहू नहीं, नौकरानी समझते हैं। अगर कुछ बोलूं तो मारने लगते हैं और कहते हैं तुझे ब्याह कर किसलिए लाए हैं’
‘ यह सब कब से चल रहा है’
‘ ब्याह कर गई थी तब से ऐसा ही बर्ताव करते हैं। दूसरे दिन सुबह सुबह ही कमरे में आकर सासू मां ने चांटा मार दिया और बोली कि तेरे होते मेरी बेटी काम कर रही है, शर्म नहीं आती। बेचारी सुबह सुबह काम में लगी है और तू यहाँ कमरे में बैठी हुई है’
‘ तेरे ससुर ने कुछ नहीं कहा’
‘ क्या कहेंगे? बीवी के सामने जबान नहीं चलती। दोनों मां-बेटे अपनी मनमानी करते रहते हैं’
‘अब की बार क्या हुआ? ‘
‘ ताऊ जी, सच बोला था इसलिए।चार-पांच दिन हो गए ढंग से खाना नहीं खाया मैने। इतना काम करो फिर भी भरपेट रोटी तक नसीब नहीं होती। रोटी ज्यादा बन जाए तो सुनने को मिलता अपने बाप के घर से लेकर आई थी क्या? और कम पड़ जाए तो कोई जरूरत नहीं है अलग से बनाने की। दिन भर रोटी तोड़ती रहती हो। एक टाइम भूखे रह जाएगी तो मर नहीं जाएगी। इंसान हूं जानवर नहीं। बस यही बोला कि दिन भर काम करती हूं कम से कम रोटी तो खाने को दे दिया करो। उस पर दोनों मां बेटे ने मिलकर के मुझे मारना शुरू कर दिया। जब बेहोश हो गई तब जाकर के पीछे छोड़ा। अब बर्दाश्त नहीं होता ताऊ जी’
‘ देख फुलवा तू चुप है इसलिए वो लोग ताकतवर है। अपनी खामोशी को उनकी ताकत न बना। बाकी तू खुद समझदार हैं ‘
दस बारह दिन बाद रामदीन काका फुलवा को समझा कर वापस ससुराल छोड़ आए। पर इस बार फुलवा पूरी तरह से तैयार थी।
अब जो बहू मार खाने के बाद भी दूसरी नहीं बल्कि तीसरी बार भी लौट कर आ गई हो, ससुराल वालों को तो अपने आप ही बहाना मिल जाता है उसे परेशान करने का। दूसरे दिन फुलवा ने खाना बनाया। तो खाने में नमक कम है इस बात को लेकर उसकी सास ने चिल्लाना शुरू कर दिया।
फुलवा ने नमक लाकर रख दिया और कहा कि मां नमक कम है, तो नमक डाल लीजिए। सुनकर सासूजी और ज्यादा भड़क गई। कहने लगी कि ज्यादा ही जबान चलने लगी है। आने दे मेरे बेटे को बताती हूं। सारी अकड़ निकल जाएगी।
शाम को जब फुलवा का पति घर आया तो सासु मां ने अपने स्वभाव के अनुसार हर बात को नमक मिर्च लगाकर कहा। जिस पर उसका पति भड़क गया और फुलवा को गालियां देने लगा।
फुलवा ने भी कहा कि नमक कम था तो नमक डाला जा सकता था। उस पर बेवजह का हंगामा करने की कोई जरूरत नहीं है। पर फुलवा के पति को ये अपनी शान के खिलाफ लगा कि पहली बार उसकी पत्नी ने पलट कर जवाब दिया है।
उसने आंव देखा ना ताव। उठाया लट्ठ और फुलवा को मारने लगा। लेकिन इस बार फुलवा ने भी ठान रखी थी। जैसे ही उसका पति उसे लट्ठ से मारने लगा, वैसे ही फुलवा ने लट्ठ पकड़ लिया। और जोर से चिल्लाई,
‘ इस बार कमजोर मैं भी नहीं हूं। छू कर दिखा, हाथ पैर तोड़ के ना रख दूं तो’
फुलवा का रूद्र रूप देख करके उसका पति एक बार तो बिल्कुल सकते में आ गया। पर इतने में सासू मां जोर से चिल्लाई, ‘ज्यादा ही जबान चलने लगी है। अपने पति के सामने बोलती है।शरम बेच खाई’

फुलवा ने कहा, ‘हां ,बोलती हूं। मैं चुप हूं इसलिए तुम ताकतवर हो। पर सामने करोगे तो चुप भी नहीं रहूंगी। चुप रहकर बहुत मार खा ली मैंने। आज के बाद हाथ उठाया तो यह याद रखना तुम्हारी मार तो मुझे पड़ेगी लेकिन उससे पहले तुम लोगों के हाथ पैर तोड़ दूंगी। बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने’
‘अरे लल्ला! कैसे कैंची की तरह जबान चल रही है इसकी। इसके बाप को तो बुला जरा। देखे तो क्या सीखा कर भेजा है इसे ‘
‘ हां, बुलाओ मेरे बाप को। बहुत इज्जत के नाम पर मार खा ली मैंने। मार मुझे पड़ती है, मेरे बाप को नहीं। घाव मुझे मिलते हैं, दर्द मुझे होता है। चाहो तो पूरी पंचायत बुला लो। अब तो मैं बेशर्म हो गई। अब बस और नहीं। मैं मेरी खामोशी को तुम लोग ही ताकत नहीं बनने दूंगी’
फुलवा का यह रौद्र रूप देख करके अब किसी की हिम्मत नहीं हुई उसके आगे कुछ बोलने की।
पर आज फुलवा खुश है। एक हिम्मत काफी है जिंदगी की मुसीबतों को दूर करने की। खामोशी तभी ठीक ठीक है जब तक वह नुकसान ना दे। ऐसी खामोशी भी किस काम की जो शरीर पर चोट के अलावा कुछ ना दें।

आभार:-लक्ष्मी कुमावत

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