Laghu Katha Class 10 छलावा

laghu katha class 10 छलावा: सौम्या दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरी, तो मौसम बहुत ही ख़ुशगवार था. हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी. उसने एक गहरी सांस लेकर मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू को आत्मसात् किया और व्याकुलता से दर्शक दीर्घा में दृष्टि दौड़ाई. आज पूरे सात महीने बाद सौम्या भारत लौटी है. विवाह के 15 दिन बाद ही सौम्या और दीपक अमेरिका चले गए थे. सौम्या ने देखा सामने से मां, पिताजी, बहन नेहा और भाई सौरभ आ रहे हैं और वह चहककर उनके गले लग गई.

सौरभ और नेहा तो ख़ुशी के मारे पागल हुए जा रहे थे. मां उसे प्यार से ऊपर से नीचे तक निहार रही थी. पिताजी ने अपना हाथ उसके सिर पर रखा, तो उसे उनके चेहरे पर गर्व के भाव स्पष्ट दिखाई दिए कि आज मेरी बेटी विदेश से आई है. आख़िर मैंने अपनी बेटी के लिए एनआरआई दूल्हा ढूंढ़ ही लिया. रास्तेभर नेहा और सौरभ सौम्या से अमेरिका और अपने जीजाजी के विषय में पूछते रहे. सौम्या भी यादों में खो गई.

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जब उसने पहली बार अमेरिका की धरती पर क़दम रखा, तब वहां की चमकती सड़कें और गगनचुंबी इमारतें देखकर उसे लगा, उसका जीवन सफल हो गया. उसका बरसों का सपना कितनी आसानी से पूरा हो गया. दीपक भी आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक और सीधे-सादे इंसान हैं. विदेश में रहकर भी बिल्कुल भारतीय. गाड़ी रुकते ही सौम्या वर्तमान में लौट आई. घर आ गया था. उसका अपना घर, जहां उसने अपना बचपन जिया. वह घूम-घूमकर पूरा घर देख रही थी. सब कुछ वैसा ही था, कुछ भी नहीं बदला था.

नेहा और सौरभ उसके लाए उपहार देखकर ख़ुश हो रहे थे, तभी नेहा ने चहककर पूछा, “दीदी, ये सब तुम्हारी पसंद है या जीजू की.” उसने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया, “दोनों की.” अब नेहा को वह कैसे बताती कि इन उपहारों को ख़रीदने के लिए उसने कैसे महीने के बजट में कमी करके पैसे बचाए और कितने ही सेल काउंटर्स पर घूमी है. फ्रेश होकर जब सौम्या नाश्ते के लिए बैठी तो डायनिंग टेबल पर अपनी पसंद की ढेर सारी डिशेज़ देख, हंसकर मां से बोली, “ये क्या मम्मी, मैं एक दिन के लिए नहीं, एक महीने के लिए आयी हूं. आपने तो आज ही सब कुछ बना दिया.” मां ने लाड़ जताते हुए कहा, “खा ले बेटा, अमेरिका में तुझे ये सब कहां मिलता होगा.” तभी नेहा बोली, “दीदी, मेरी सहेली बता रही थी कि अमेरिका में रोटियां भी पैक्ड मिलती हैं. बस, घर लाओ, गर्म करो और खा लो. वाह! क्या ऐश है.” नेहा के बोलने के अंदाज़ पर सब हंस पड़े.

सौम्या को अपनी अमेरिका की डायनिंग टेबल याद आ गई. दीपक ने उसे बताया था कि साधारण-सा खाना भी अमेरिका में काफ़ी महंगा पड़ता है. वे कहीं भी जाते या ख़र्च करते, तो दीपक भारतीय मुद्रा (रुपए) में उसका मूल्य निकालकर सौम्या को ज़रूर बताते. शुरू-शुरू में उसे ये सब जानकारी बढ़ानेवाला लगा, पर बाद में उसे को़फ़्त-सी होने लगी. वह कुछ भी अपनी पसंद का ले आती, तो दीपक उसे फिज़ूलख़र्ची पर अच्छा-ख़ासा भाषण दे डालते. वह दीपक को भी ग़लत नहीं कह सकती. अपने पूरे परिवार में दीपक ही एकमात्र विदेश में हैं. उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा, तो मुंबई में लिए बंगले का लोन चुकाने में चला जाता है.

छोटे भाई की पढ़ाई का ख़र्च, चचेरी-ममेरी बहनों की फ़रमाइशें, सभी को पूरा करना दीपक अपना फ़र्ज़ समझते हैं. रोज़ किसी न किसी बहाने से सौम्या को सुनने को मिल जाता था कि वह विदेश में घूमने-फिरने, मौज-मस्ती करने नहीं आए हैं. उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर विदेश भेजने के लिए बहुत मेहनत की है. अतः अब उनका फ़र्ज़ बनता है कि वे सभी का ख़याल रखें. सौम्या मन ही मन सोचती कि वह और उसके माता-पिता कुछ नहीं? क्या उनके कोई ख़्वाब नहीं हैं? नाश्ते के बाद सौम्या अपने कमरे में आ गई और पुरानी यादों में खो गई. उसे वह दिन याद आ गया, जब उसने बारहवीं में 92% नंबर प्राप्त किए थे और वह मेडिकल में दाख़िला लेना चाहती थी.

पापा ने उसे प्यार से अपने पास बैठाकर समझाया था कि मेडिकल में दाख़िला लेने की ज़िद्द वह छोड़ दे, क्योंकि अपनी ईमानदारी की नौकरी में वह उसके नाम आठ-दस लाख रुपया ही जमा कर पाए हैं. यदि वह उन रुपयों को उसकी पढ़ाई में लगा देंगे, तो उसका विवाह किसी अच्छे घर में धूमधाम से कैसे कर पाएंगे और फिर नेहा और सौरभ भी तो हैं. पापा बड़े प्यार से बोले थे, “तेरे रूप और गुण पर ही अच्छा परिवार फ़िदा हो जाएगा, इसलिए तू बी.एससी. में दाख़िला ले ले.” सौम्या ने ख़ुशी-ख़ुशी बी.एससी. में दाख़िला ले लिया और अच्छे परिवार की बहू बनने का सपना देखने लगी. फ़ाइनल इयर में आते ही उसका रिश्ता दीपक से तय हो गया. लड़के की विदेश में नौकरी, मुंबई में अपना बड़ा आलीशान बंगला, छोटा परिवार और क्या चाहिए था.

सहेलियां उसके भाग्य को सराह रही थीं और वह स्वयं आकाश में उड़ रही थी. पर आज वह सोच रही थी कि क्या उसका निर्णय सही था? सौम्या के भारत आने से क़रीब एक महीने पहले की बात है. उसने दीपक के आर्थिक बोझ और अपनी दिनभर की बोरियत से बचने के लिए दीपक से कहा कि वह उसके लिए भी कोई नौकरी की तलाश करे तो दीपक पहले तो चौंके फिर हंस पड़े, “बी.एससी. पास को भला कौन नौकरी देगा?” फिर दीपक गंभीर होकर बोले, “तुम्हें नौकरी की क्या ज़रूरत है? मैं इतना तो कमा ही लेता हूं कि हमारा गुज़ारा हो जाए. फिर 1-2 साल में बच्चा हो जाएगा, उसकी और घर की देखभाल कौन करेगा?” दीपक ने लगभग ऐलान करते हुए कहा, “मैं अपने बच्चे की परवरिश में कोई कमी नहीं करना चाहता.

इसीलिए तो मैंने एक साधारण, घरेलू लड़की से शादी की है. मेरे लिए तो एक से बढ़कर एक प्रो़फेशनल लड़कियों के रिश्ते आए थे. मैंने सोचा था कि न होगा बांस और न बजेगी बांसुरी.” दीपक के शब्द उसके कानों में गर्म सीसे की तरह उतरते चले गए. इसका मतलब दीपक उसके रूप और गुण पर फ़िदा नहीं हुए थे. उन्हें चाहिए थी, बस एक घरेलू लड़की, जो उनके घर और बच्चे की देखभाल कर सके. उस दिन से सौम्या मन ही मन छटपटाती रहती. उसे लगता कि वह ऐसे पिंजरे में कैद हो गई है, जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है.

अपनी सहेलियों की खिलखिलाहट से सौम्या वर्तमान में लौट आयी. सौम्या की सारी सहेलियां उससे मिलने आयी थीं और सौम्या भी उनसे अपने मन की बातें करने को आतुर थी. लेकिन थोड़ी देर बाद ही सौम्या को महसूस हुआ कि उसकी सहेलियां उसके बारे में कम, अमेरिका के बारे में, वहां के रहन-सहन के विषय में जानने को ज़्यादा उत्सुक हैं. सौम्या के मन में बार-बार यह विचार आ रहा था कि हम भारतीय विदेश के प्रति इतने आकर्षित क्यों हैं? विदेश में यदि आय अच्छी है, तो ख़र्चे भी उसी हिसाब से होते हैं. ये किस छलावे में जी रहे हैं हम? जब उसकी सहेलियां उसके भाग्य को सराह रही थीं तो वह उन्हें समझाना चाहती थी कि मुझ से ज़्यादा ख़ुशनसीब तुम लोग हो, जो अपने देश में अपनों के बीच रहकर ज़िंदगी जीने का मज़ा लूट रही हो.

लेकिन इस भ्रम को तोड़ना आसान नहीं था, इसलिए वह चुपचाप मुस्कुराती रही. सहेलियों को विदा करने के बाद जब सौम्या कमरे में आयी, तो देखा मां, पिताजी और नेहा किसी गंभीर विषय पर बातचीत में मग्न हैं. उसे देखते ही पिताजी बोल पड़े, “आ गई मेरी बिटिया, अब तू ही नेहा को समझा. मेरी बात तो इसे समझ ही नहीं आ रही. इंजीनियरिंग में दाख़िला लेने की ज़िद्द कर रही है. यदि इतने पैसे इसकी पढ़ाई में लगा दिए तो इसकी शादी के लिए पैसे कहां से लाऊंगा?” सौम्या कुछ क्षण चुप रही. फिर हिम्मत जुटाकर बोली, “नहीं पिताजी, नेहा से उसके सपने मत छीनिए.

Laghu katha class 10
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पैसा उसकी पढ़ाई में लगाइए. यदि नेहा किसी क़ाबिल बन गई, तो आपको उसकी शादी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी, वह अपनी क़ाबीलियत के बल पर अपने लिए वर तलाश कर लेगी. मत काटिए नेहा के पंख. उड़ लेने दीजिए उसे खुले आसमान में.” पिताजी अवाक् से सौम्या का मुंह देख रहे थे, उसके मन की व्यथा को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे. नेहा दौड़कर सौम्या के गले लग गई. “मेरी प्यारी दीदी, आप कितनी अच्छी हो.” सौम्या आज बहुत हल्का महसूस कर रही थी और उसे पूरा विश्‍वास था कि उसके जीवन से प्रेरणा लेकर स़िर्फ एक नेहा को ही नहीं, वरन् अनेक नेहाओं को सही दिशा मिलेगी. वे विदेश के आकर्षण व मोहजाल से निकल सकेंगी, जो एक छलावे से कम नहीं.- रीतू

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