सुमित के घर में सुमित के माता-पिता और पत्नी सुनिधि थे। सुमित की आमदनी बहुत ज्यादा अधिक नहीं थी, और मुश्किल से घर खर्च चला पाता था । सुमित अपने मां-बाप की बहुत इज्जत करता था, और सुनिधि से भी यही उम्मीद रखता था, कि वह भी उसके मां-बाप की बहुत इज्जत करें।
लेकिन सुमित के लिए सब कुछ उसके मां-बाप ही थे, सुनिधि का कोई मोल नहीं था, और यह बात सुनिधि बहुत अच्छे से समझ चुकी थी। लेकिन फिर भी वह समझौते करके अपना फर्ज निभा रही थी, और घर को सुचारू रूप से चला रही थी। सुमित के घर पर कुछ नियम थे। सुमित के घर में दूध और फल सिर्फ सुमित के माता-पिता ले सकते थे ।
सुनिधि से सुमित ने यही कहा था, की दूध और फल मम्मी पापा को रोज दिया करो, और मेरा इतना बजट नहीं है, कि मैं ज्यादा दूध और फल ला सकूं । हम दोनों जवान है, तो हमें दूध और फल की इतनी आवश्यकता नहीं, जितनी मम्मी पापा को है । सुनिधि भी ऐसा ही करती थी। अब सुमित और सुनिधि की शादी को 1 साल बीत चुके थे। सुनिधि अब गर्भवती थी। लेकिन सुमित के घर के राशन पानी का वही हिसाब था, जो कि पहले था, और जो भी खाने के लिए पौष्टिक चीज होती थी, जैसे दूध, फल वगैरह, वह सिर्फ सुमित के माता-पिता के लिए होते थे।
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शुरू के 3 महीने तो सुनिधि उल्टी कर करके ही परेशान थी। लेकिन उसके बाद वह थोड़ी ठीक हो गई थी। अब सुनिधि ने सुमित से बोला, कि वह गर्भवती है । उसे अपना भी ख्याल रखना है। लेकिन सुमित ने लापरवाही से बोला, इसमें ख्याल रखने की क्या बात है? गर्भवती तो हर औरत होती है ,और हम जवान हैं, तो हमें ऐसी कोई दिक्कत नहीं, तुम बस मम्मी पापा का ख्याल रखो।
सुनिधि को समझ में आ चुका था, कि सुमित एक अच्छा बेटा तो है, पर एक अच्छा पति और पिता नहीं है बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन सुनिधि अपना पूरा ख्याल रखती थी। डॉक्टर ने सुनिधि को पौष्टिक आहार लेने के लिए कहा था। सुनिधि ने अब तक अपने लिए काफी समझौते किए थे, लेकिन वह अपने बच्चे के लिए समझौता करने को तैयार नहीं थी।
अब सुनिधि ने अपने सास ससुर को आधा-आधा गिलास दूध देना शुरू कर दिया ,और एक गिलास दूध खुद लेने लगी, क्योंकि सुमित ज्यादा दूध लेने को तैयार ही नहीं था। सुनिधि अब किसी भी फल का आधा आधा अपने सास ससुर को देती थी और एक फल खुद खाती थी, क्योंकि सुमित ज्यादा फल लाने को तैयार नहीं था। मेवे देते वक्त भी उन दोनों में से आधा-आधा निकाल कर खुद खाती थी।
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एक-दो दिन के बाद सास ससुर ने सुमित से इसकी शिकायत की, और सुमित ने सुनिधि को बातें सुनानी शुरू कर दी। अच्छी खासी जवान भली चंगी औरत हो तुम। शर्म नहीं आती मेरे मां-बाप के दूध में से आधा दूध निकाल लेती हो , और खुद पी जाती हो। मेरे मां-बाप को आधे फल देती हो, और खुद पूरे फल खाती हो। कैसी बेगैरत औरत हो , की मेरे मां-बाप का भी ख्याल नहीं रख सकती। कोई फल दूध तुम्हारे मायके से नहीं आता, बल्कि मैं लेकर आता हूं, और वह सिर्फ मेरे मां-बाप के लिए आता है, ना कि तुम्हारे खाने के लिए।
सुनिधि ने भी बहुत जोर से जवाब दिया, कैसे इंसान हो तुम? जब औकात नहीं थी, बीवी बच्चे को रखने की और उनके खर्च उठाने की, तो शादी क्यों की थी? सिर्फ अपने मां-बाप के खर्च उठाने की औकात थी, तो अपने मां-बाप के खर्च उठाते। मानती हूं तुम्हारे लिए तुम्हारे मां-बाप बहुत मायने रखते हैं, हर किसी के लिए रखते हैं, लेकिन मेरे लिए मेरा बच्चा भी उतना ही मायने रखता है, और वह अभी इस दुनिया में आया भी नहीं है।
मैंने अपने लिए सारे समझौते कर लिए है, लेकिन अपने बच्चे के लिए कोई समझौते नहीं करूंगी। अगर तुम्हारी औकात नहीं थी, कि तुम अपने बच्चे के पोषण के लिए उसे दूध और फल दे सको, तो बच्चा पैदा करने की हिम्मत कैसे की? जितनी जरूरत तुम्हारे मां-बाप को दूध और फल की है ना, उतनी ही जरूरत मुझे और मेरे बच्चे को भी है, और मैं इसमें समझौते कभी नहीं करूंगी।
सुमित ने बोला, दिमाग खराब हो गया है क्या तुम्हारा? मेरे मां-बाप बूढ़े हो गए हैं। उन्हें पौष्टिक आहार की बहुत जरूरत है ,तो पहले उन्हें देना हमारा फर्ज है। सुनिधि देने बोला, हां तुम्हारे सारे फर्ज तो सिर्फ तुम्हारे मां-बाप के लिए हैं, जिन्होंने अपने जिंदगी का काफी बड़ा हिस्सा गुजार लिया है, और तुम्हारा बच्चा जो अभी इस धरती पर आया भी नहीं है, बल्कि मेरी कोख में है, उसके लिए तुम्हारे कोई फर्ज नहीं ,उसे किसी भी पौष्टिक आहार की जरूरत नहीं।
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कैसे बाप हो तुम?, और शर्म नहीं आती तुम्हारे मां-बाप को, मेरे खिलाफ तुम्हारे मन में जहर भरते हुए। क्या उन्हें नहीं पता कि मैं गर्भवती हूं, और उन्हीं का पोता या पोती आने वाला है, और एक गर्भवती औरत को पौष्टिक आहार की जरूरत होती है, जो वह मेरे खिलाफ तुम्हें भड़का रहे हैं। वह जो बोल रहे हैं, वह बोल रहे हैं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?
एक अच्छे बेटे तो बहुत बनते हो, एक अच्छे बाप हो तुम? सुमित ने बोला, मुझे वह सब कुछ नहीं पता, बस आज से दूध और फल मम्मी पापा को ही मिलेगा। तुम्हारे लिए दूध और फल का इंतजाम मैं नहीं कर सकता। सुनिधि ने भी आज कड़क आवाज में बोला, तो फिर ठीक है, तुम बाप का फर्ज नहीं निभा सकते, ना सही, लेकिन मैं मां का फर्ज नहीं भूल सकती। जैसे तुम्हारे लिए तुम्हारे मां-बाप भगवान है ना, वैसे ही मैं भी अब मां बनने वाली हूं, और जैसे तुम्हारे मां-बाप के लिए तुम उनकी औलाद हो न, वैसे ही मेरे लिए मेरी औलाद भी है। मेरे बच्चे के लिए मैं ही सब कुछ हूं।
बेगैरत मैं नहीं, तुम हो। जरा सोच कर देख बगैरत इंसान, अगर तुम्हारे पिता ने तुम्हारी मां का ख्याल नहीं रखा होता न, उनकी गर्भावस्था में, तो तुम यहां हट्टे-कट्टे खड़े नहीं होते। अपनी औलाद सबको प्यारी होती है। लेकिन पता नहीं तुम्हें अपनी औलाद से प्यार क्यूं नहीं है?
सुमित ने बोला, तुम कुछ ज्यादा ही बोल रही हो। यही संस्कार दिए हैं तुम्हारे मां-बाप ने? इस पर सुनिधि ने जवाब दिया, संस्कार तो मेरे मां पिता ने तुम्हारे मां-बाप से अच्छे ही दिए हैं। तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें क्या संस्कार दिए हैं? यह की सिर्फ मां-बाप की पूजा करो, और बीवी बच्चों को भूल जाओ। एक अच्छा और काबिल बेटा तो बन जाओ, पर एक अच्छा पिता और पति कभी मत बनो।
जरा सोचो तुम खुद कैसे अच्छे पिता बनोगे? और तुम्हारी औलाद तुम्हारी पूजा कैसे करेगी?
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बेगैरत इंसान अगर आज तक अपने मां-बाप की इतनी इज्जत कर रहे हो न,तो उन्होंने मां-बाप होने का पूरा फर्ज निभाया है। लेकिन अगर कल को तुम अपने संतान से अपने लिए ऐसे ही इज्जत की उम्मीद करोगे न, तो वह तुम्हें कभी नहीं मिलने वाली। क्योंकि तुमने बाप होने का कोई फर्ज नहीं निभा रहे हो। सिर्फ बेटे होने का निभा रहे हो।
और हां मैं मेरे खाने पीने में कोई समझौता नहीं करूंगी। अगर औकात नहीं थी तो शादी क्यों की ?और शादी तय करते वक्त यह बात बोल देनी चाहिए थी, कि मैं सिर्फ मेरे माता-पिता के खाने पीने का ध्यान रख सकता हूं ,पत्नी और होने वाले बच्चे का नहीं। फिर मैं और मेरे माता-पिता सोचते, कि हमें यह शादी करनी है या नहीं। अब कान खोल कर मेरी बात सुन लो, मैं मेरे बच्चे के लिए कोई समझौते करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हूं ,और अगर तुम्हें इससे दिक्कत है, तो मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार हूं। मुझे मेरा और मेरे बच्चे का पूरा खर्चा चाहिए, और तुम अपने मां-बाप की सेवा करो।
लेकिन मैं तुम्हारे मां-बाप को खुश करने के लिए अपने बच्चे की बली नहीं चढ़ा सकती । सोच लो तुम्हें क्या करना है? सुमित और उसके माता-पिता चुपचाप सुनिधि की ओर देख रहे थे, और उनके पास सुनिधि की बातों का कोई जवाब नहीं था।