Kahani suno: बाहर हो रही बरसात की गडगडाहट कविता का दिल जोरों से धडका रही वह तेजी से बर्तन और किचन साफ करते वो अपनी मालकिन गौरी से बोली-दीदी सब निपट गया मे घर जाऊं….
गौरी -बाहर बहुत तेज बारिश है कविता…..और आकाशजी भी मेहमानों को छोडने गए है अबतक लौटे नहीं है… ..
कविता-मे चली जाऊंगी दीदी….
गौरी- हूह ….अच्छा वो खाना केक वगैरह ले लिया ना ..
ये ले 500 रू जा खुश रहे अच्छा सुन ये छाता ले जा वरना बारिश में भीग जाएगी
मालकिन कितनी अमीर है ना ….कितनी बडी पार्टी की बेटे के बर्थडे की ..मन मे सोचती हाथों मे खाने की थैलियां पकडे कविता ने छाता लिया और तेजी से निकल पडी बाहर सचमुच बहुत तेज बारिश थी रात का अंधियारा ऊपर से 11 बज चुके थे ….
शाम को जब घर से निकली थी तो उसके बेटे सोनू को तेज बुखार था डाक्टर से दवाई लेकर अपनी सास के हवाले कर कविता को मजबूरी मे आना पडा कयोंकि उसकी मालकिन के इकलौते बेटे का बर्थडे था सबकुछ उसके ऊपर पहले से तय किया था सो मना भी नही सकती थी ऐसे मे मालिक लोग रुठ जाए तो फट से दूसरे नौकर का इंतजाम कर लेते है।
पानी घुटनों तक भरा था उसके कदम तेजी से घर पहुंचने मे लगे थे की अचानक पैर पर कोई ठोकर लगी देखा तो अंगूठा खूनमखून था दर्द भी बडे जोरों से हो रहा था मगर उसे तो बेटे सोनू के बुखार और सास एवं पति के रात के खाने की चिंता थी कारण सभी एकसाथ खाना खाते थे रात का …जैसे तैसे घर पहुंची तो पति राकेश दरवाजे पर खडा था जोकि गार्ड की डयूटी से लौटा था झोपड़ी मे घुसते ही सोनू खुशी से उछलते बोला-मम्मा आ गई मम्मा आ गई… कविता ने सास को थैलियां पकडाते पूछा-अम्मा …बुखार कैसा है सोनू का ..
अम्मा-ठीक है बहुरिया ..दवाई दे दी थी ..
अरे वाह ..केक मटर पनीर चावल कोफ्ते कया कया ले आई आज तो…
कविता-अम्मा वो मालकिन के बेटे का जन्मदिन था बहुत खाना बना था कहकर रस्सी से एक साडी उठाई और पर्दे नुमा बाथरूम मे बदलने लगी बारिश मे छाता होने पर भी कविता पूरी तरह भीग चुकी थी सोनू ने खुश होकर केक खाया तो पति राकेश और सास संग कविता ने भी स्वादिष्ट खाने का भरपूर मजा लिया पूरा परिवार इस पार्टी से खुश था कयोंकि कविता एक कामवाली तो उसका पति राकेश एक सिक्योरिटी गार्ड …
ऐसी मंहगाई मे कहा इतना बढिया खाना खाने को नसीब होता है ..
खाते पीते 1 बज गया सोनू जहां अपनी दादी से कहानी सुनते सो गया था वहीं दिनभर की थकी कविता जैसे ही बिस्तर पर लेटी तो उसे अंगूठे पर कुछ महसूस हुआ देखा तो उसका पति राकेश उसके जख्मी अंगूठे पर हल्दी लगा रहा था -ये आप कया कर रहे हो जी …
कोशिश कर रहा हूं तुम्हारे साथ कदम मिलाने की ….जीवन मे साथ निभाकर चलने की जो कसमें खाई थी उसमें पास होने की तुम तो अव्वल आई हो कविता…
मुझे और अम्मा और सोनू को ही नही इस घर को भी बखूबी तुम्ही ने संभाला है सच कहते है लोग आदमी मकान तो बना सकता है मगर घर उसे एक बहु एक जीवनसाथी एक लक्ष्मी ही बना सकती है …..
कविता-चलिए छोडिये लग गई हल्दी ….कहकर भीगी हुई पलकों को साफ करती कविता राकेश से लिपट गई
आज वो सचमुच एक अमीर औरत बन गई थी…!!
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