kahani Gungi Gudiya : वही तो था जिसने अपनी पत्नी को गूंगी गुड़िया बनाया था।

kahani Gungi Gudiya: अब किस बात की माफी मांगते हो। वक्त भी चला गया और वो लोग भी चले गए, जिनके सामने तुमने मुझे बेइज्जत किया था। भला एक पुरूष औरत के सामने माफी मांगते हुए अच्छा नहीं लगता”
कहकर नीता रसोई में चली गई। अरविंद वहीं बैठा उसे देखता रहा। उसे याद आ गया वो दिन जब वो एक छोटे से कस्बे में रहने वाला युवा था। उसकी हाल ही में नौकरी लगी थी।


अरविंद के माता पिता, भाई भाभी, पूरा भरा पूरा परिवार था। अरविंद दिखने में ठीक था पर आत्मविश्वास की कमी थी। अरविंद की नई नई बैंक में जॉब लगी थी।


माता-पिता बहुत खुश थे और उसके लिए लड़की देखना शुरू कर चुके थे। आखिर बेटा बैंक में लगा है तो पूरी तरह से इस बात को कैश भी तो किया जाएगा। इसलिए जहां से अच्छा दहेज मिले ऐसी जगह रिश्ता देखा जा रहा था।
उसने बैंक में क्लर्क बन कर नौकरी ज्वाइन की थी, वही उसकी मुलाकात अपनी बैंक मैनेजर नीता से हुई थी।

नीता दिखने में भी काफी सुंदर थी। साथ ही साथ उसकी पर्सनालिटी ऐसी थी कि हर कोई उससे प्रभावित हुए बगैर नहीं रहता। बिल्कुल विश्वास से भरी हुई। बैंक के कार्य ही नहीं,अपितु किसी भी मुद्दे पर नीता से बुलवा लीजिए। वह किसी भी मुद्दे पर बेहिचक, पूरे विश्वास के साथ बोलती थी।
और यही अदा अरविंद को पसंद आती थी।


अरविंद को नीता पहली नजर में ही भा गई थी। अरविंद मन ही मन उसे बहुत चाहता था पर कभी कह नहीं पाता था। नीता जितनी विश्वास से भरी हुई थी। अरविंद में उसका आधा भी विश्वास नहीं था।


धीरे-धीरे नीता को भी अरविंद का साथ अच्छा लगने लगा था। दोनों में मुलाकाते बढ़ने लगी थी। ऑफिस के बाद भी कई बार कॉफी शॉप में बैठकर बातें कर रहे होते थे। उनकी यही दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में तब्दील हो गई।
दोनों शादी करना चाहते थे। जब दोनों ने अपने अपने घरों में इस बारे में बात की तो तो दोनों घरों में ऐसी स्थिति हो गए जैसे किसी ने बम फोड़ दिये हो।


नीता के माता पिता ने नीता को खूब समझाया कि अरविंद तुम्हारे स्टेटस का नहीं है। तुम से कम कमाता है। पर उस समय वह अरविंद के प्यार में अंधी हो चुकी थी। उसे अरविंद के सिवा कोई दिख भी नहीं रहा था।


वहीं दूसरी तरफ अरविंद के माता पिता भी खुश नहीं थे। पर जब किसी पारिवारिक दोस्त ने समझाया कि नीता अरविंद से ज्यादा ऊंचे ओहदे पर है और ज्यादा कमाती है, तो पैसों का लालच से ही सही, बेटे के सामने झुक कर उसकी शादी को तैयार हो गए थे। पर उसकी भी शर्त यह थी कि नीता को घर भी संभालना पड़ेगा। और साथ ही साथ रीति रिवाज मानने पड़ेंगे।


आखिर काफी सारे हंगामे और मान मनुहार के बाद दोनों की शादी हुई। चलते-फिरते लोगों ने ताने भी बहुत मारे, पर फिर भी दोनों अपने रास्ते से न डिगे। पर असल परीक्षा तो शादी के बाद शुरू होनी थी। अगर किसी घर में कुछ अच्छा हो रहा है तो भड़काने वाले कम नहीं होते हैं। बस वही सब इन दोनों के साथ होने लगा।


नीता ने शादी के बाद भी नौकरी जारी रखी थी। आते जाते लोग जेठानी के दिमाग में यह भरने लगे कि तुम तो अपनी देवरानी की नौकरानी बन कर रह गई। वह तो सुबह सुबह उठकर अपना समय व्यर्थ कर तैयार होकर ऑफिस चली जाती है और सारा काम जेठानी को संभालना पड़ता है।


इसका नतीजा यह हुआ कि महज दो महीने में ही घर में दो चूल्हे हो गए।


जिसका जिम्मेदार भी नीता को ठहरा दिया गया। पहले जहाँ जेठानी के साथ मिलकर नीता घर का काम कर लेती थी, वही अब पूरा काम नीता की जिम्मेदारी हो गया। नीता सुबह उठकर घर का सारा काम कर ऑफिस जाती और वापस आने पर कोल्हू के बैल की तरह दोबारा घर के काम में लग जाती, पर फिर भी सास ससुर खुश ना होते। हां, महीने की शुरुआत में पगार लेने को तैयार जरूर हो जाते।


काम तो कोई करता नहीं पर नीता को ही दो बातें और सुना दी जाती। अरविंद अगर नीता की मदद करना चाहे तो उसे ‘जोरू का गुलाम’ जैसे शब्दों से नवाजा जाता। छोटे-मोटे तीज त्योहारों पर नीता से छुट्टी करने के लिए कहा जाता। और अगर वह मना कर दे तो घर में लड़ाई झगड़े हो जाते।


” जब देखो तीज त्यौहार पर लड़ाई झगड़े करवा देती है। यही संस्कार दिए हैं इसके मां-बाप ने। भला घर में बरकत कहां से हो”
” पता नहीं ऐसी नौकरी पेशा औरते शादी करती ही क्यों है? जब नौकरी ही करनी थी तो शादी नहीं करनी चाहिए थी। अब तीज त्यौहार तो मनाने ही पड़ेंगे ना”

अब तो अरविंद के दोस्तों ने भी ताने मारने शुरू कर दिए,
“अरे, भाभी जी तेरी कहाँ सुनती होगी। ऑफिस में भी तेरी बॉस, घर में भी तेरी बॉस”
” तेरे तो मजे हैं। भाभी कमा कर खिला रही है तुझे क्या चिंता”
लोग तो मजाक मजाक में कह जाते, लेकिन ये बातें सीधे अरविंद के दिल पर तीर की तरह लगती। बाहर तो बाहर, घर वाले भी क्या कम थे। जब भी घर में कोई बात होती तो ताने अरविंद को सुनने को मिलते,
” तेरी बीवी तेरी बॉस होगी, तो तू ही सुनेगा, हम नहीं”

अब तो कोई न कोई बात पर नीता और अरविंद के बीच में झगड़े हो जाते। नीता भी समझ रही थी अरविंद की मनोस्थिति। वो नीता से नौकरी छोड़ने के लिए भी नहीं कह पा रहा था और ना ही चुप रह पा रहा था।

उस दिन छोटी सी बात पर घर में झगड़ा हुआ था। मां ने घर में यज्ञ हवन करवाया था जिसके लिए उन्होंने नीता से छुट्टी करने को कहा। अब जिस दिन हवन था उसी दिन ऑफिस में इंस्पेक्शन आया हुआ था। नीता मैनेजर थी इसलिए जाहिर सी बात है नीता का ऑफिस में होना जरूरी था। इसलिए नीता का छुट्टी करना संभव नहीं था।
बस इसी बात का बतंगड़ बना कर माँ ने झगड़ा शुरू कर दिया। बात बहुत बढ़ गई। जब पुरुष अपने दंभ को नहीं जीत पाता तो वह औरत को दबाना शुरु करता है। बस, आज भी वही हुआ।


आखिर एक पुरुष पर अपने पति होने से ज्यादा पुरुष वाला दंभ हावी हो गया। गुस्से में अरविंद ने नीता पर ही हाथ उठा दिया जबकि वह अच्छी तरह जानता था कि नीता गलत नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि नीता ने अपना सामान पैक किया और सीधे मायके जाकर बैठ गई।

उस समय जमाना कुछ और था। कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहते थे कि शादीशुदा बेटी अपने मायके आ कर बैठे। माता-पिता ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की, बिना यह जाने कि नीता की कोई गलती ही नहीं। पिता अलग ही गुस्सा हो रहे थे,


” पहले ही कहा था कि इस रिश्ते का कोई अस्तित्व नहीं है। पर इसी को समझ में नहीं आई थी। तब तो आंखों पर प्यार का पर्दा पड़ा हुआ था। बस, सब कुछ छोड़ छाड़ कर आ गई। समाज में कोई इज्जत है कि नहीं हमारी”
” अब आप शांत रहिए। कुछ दिन शांति से बैठ जाइये। जब उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो अपने आप ही चली जाएगी” मां ने पिताजी को चुप कराते हुए कहा।

” अरे! इसकी छोटी बहन की शादी की बात चल रही है। क्या जवाब देंगे लड़के वालों को कि बड़ी बहन क्यों आकर बैठी है मायके “

“अरे कह देंगे कि कुछ दिन मायके मिलने के लिए आई है। आप पर शांति रखिए। आखिर कुछ दिन शादीशुदा बेटी मायके तो रह सकती है”

” जैसा तुम चाहो। पर खबरदार! बाहर ये बात फैलनी नहीं चाहिए”

और यहां, अरविंद भी अच्छे से जानता था कि नीता गलत नहीं थी, बल्कि गलती उसके माता-पिता की थी। लेकिन उसका दंभ उसे नीता के सामने झुकने से रोक रहा था। “वो पति ही क्या जो अपनी पत्नी के सामने झुक जाए” बस यही सोच उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी।

लेकिन कुछ दिन बाद पता चला कि नीता मां बनने वाली है। अब तो नीता को हर कोई समझाने लगा था। बच्चे की दुहाई दी जाने लगी थी। अरविंद भी चाहता था कि नीता वापस आ जाए। पर किस मुँह से बोले। एक दो बार माँ पिता से बोला तो दोनों उसे ही सुनाने लगे,

” हमने तो निकाला नहीं था उसे। अपनी मर्जी से गई थी तो अपनी मर्जी से आ जाएगी। कोई जरूरत नहीं है उसे लाने की। अगर आज झूक गया तो कल को सिर पर चढ़कर नाचेगी”

लेकिन समाज, रिश्तेदार और दोस्तों का इतना ज्यादा दबाव बढ़ गया कि आखिरकार नीता के माता पिता खुद नीता की मर्जी के विरुद्ध उसको जबरदस्ती छोड़ने उसके ससुराल पहुंच गए। जिस तरह से सास ससुर, जेठ जेठानी नीता को देख कर मुस्कुरा रहे थे। नीता के स्वाभिमान के टुकड़े टुकड़े हो गए।

” रूठी रानी को कौन मनाएं? आ गई अपने आप ही”
सास ने तंज कसा।
” औरत कितनी ही हवा में क्यों ना उड़ ले, रहना उसे जमीन पर ही है। अच्छे से जानते है ऐसी औरतों के पंख कुतरना”
ससुर ने अपनी तरफ से दो शब्द और जोड़े।
नीता, बेचारी वह तो अपने स्वाभिमान की लाश उठाए उस घर में रहने को मजबूर हो गई। क्योंकि कोई साथ ही नहीं दे रहा था। ना माता-पिता समझ रहे थे और ना ही पति। अरविंद से तो इतना भी ना हुआ कि कम से कम अपनी गलती की ही माफी मांग ले।

हां, इतना जरूर था कि अब नीता पर तंज दुगने प्रहार से किए जाने लगे। समाज की नजरों में नीता वैसे भी कुसंस्कारी बहू बन चुकी थी जो अपने पति के खिलाफ उसके घर को छोड़कर मायके चली गई। गर्भावस्था के वो महीने नीता पर बहुत भारी पड़ रहे थे। घर का काम ऊपर से जॉब दोनों को संभालना नीता के बस की बात नहीं थी।
ऊपर से गर्भावस्था की अलग समस्याएँ।

ढंग से खानपान ना होना और जरूरत से ज्यादा काम और प्रेशर के कारण नीता की तबीयत बिगड़ने लगी थी। पहले से ज्यादा कमजोर होने लगी थी। लेकिन किसी को कुछ लेना-देना नहीं था। हालांकि अरविंद अपनी तरफ से खाने पीने का सामान मुहैया करा देता था। पर अब नीता के मन में ना तो पहले जैसा प्यार था और ना ही सम्मान। इसलिए वह भी ज्यादा कुछ अरविंद की केयर की तरफ ध्यान ना देती।

नौवें महीने में नीता ने मानव को जन्म दिया। पोता होने पर ही सही नीता की थोड़ी पूछ बढ़ चुकी थी ससुराल में। क्योंकि बड़ी बहू के तो सिर्फ एक बेटी थी। पोता होने पर माता-पिता ने बहुत खुशियां मनाई। जिस सास ने पूरे गर्भावस्था में कभी ध्यान ना रखा, वही सास अब नीता का पूरा ध्यान रखने लगी थी। आगे से आगे नीता के खानपान का पूरा ध्यान रखा जाता था।

मानव के तीन महीने के होते ही नीता ने दोबारा नौकरी जॉइन करनी चाही तो इस बात का भी बखेड़ा हो गया।

” लो, बच्चे को छोड़कर नौकरी पर जाने को तैयार हो गई। तुम आजकल की लड़कियों में ममता नाम की कोई चीज है या नहीं”

” बच्चे क्या हमारे भरोसे जने हैं? बच्चे का ध्यान कौन रखेगा? छोड़ो ये नौकरी वोकरी के ढकोसले, घर बैठो। और घर बैठकर अपने बच्चे पालो”
” अरे! अरविंद तू क्यों नहीं समझा रहा अपनी पत्नी को। ऐसे क्या पत्नी की कमाई का लालच तुझे? अपने बच्चे पर भी ध्यान नहीं दे रहा”

मानव के होने के बाद अरविंद को भी बहाना मिल गया और उसने साफ साफ शब्दों में नीता को कह दिया,
“नीता क्यों जिद कर रही हो? मनु की परवरिश के लिए जॉब छोड़ दो। पहले बच्चा जरूरी है”

दो टूक जवाब में अरविंद ने बात को खत्म कर दिया। एक बार भी नीता से यह पूछना ठीक ना समझा कि वह क्या चाहती है। आखिर नीता इस शादी को तोड़ना नहीं चाहती थी। क्योंकि उसे अच्छे से समझ में आ चुका था इस समाज में एक औरत के लिए एक पुरुष का अस्तित्व होना जरूरी है। पर जाॅब के लिए भी तो उसने बहुत मेहनत की थी।

आखिर उसने नौकरी छोड़ दी। नीता के इस फैसले से सब लोग खुश थे, सिर्फ नीता को छोड़कर। सबको अपनी-अपनी विजय हासिल हो चुकी थी। और नीता अपनी हार अपने दिल में समेटे बस अपनी गृहस्थी बचा रही थी। उसके दिल के टूटने की आवाज तो किसी ने सुनी ही नहीं थी।

सबसे बड़ा बदलाव तो उसने खुद में किया था। अब वह ज्यादा किसी से कुछ कहती भी नहीं थी। अपना पहले जैसी उन्मुक्त हंसी थी और ना ही साज श्रृंगार। बिल्कुल साधारण से रहने लगी थी। इसमें जो काम कह दिया चुपचाप कर दिया। शायद अब ये ‘गूंगी गुड़िया’ सबको पसंद आती थी।


समय यूं ही चलता रहा। सास ससुर, माता पिता स्वर्ग सिधार गए। पर आज जब मानव की पत्नी नेहा ने नीता को सबके सामने सुना दिया,
” आपके बस की बात नहीं है मम्मी जी। आप तो घर में ही अच्छी लगती है। आपने किया ही क्या अपनी जिंदगी में। सिर्फ घर और बच्चे ही तो संभाले हैं”


और वो भी सिर्फ इसलिए कि नीता ने घर के इंटीरियर के लिए अपनी तरफ से सलाह दे दी। पर अरविंद को नीता के लिए बुरा लगा। वो कुछ कहने को हुआ तो उससे पहले ही नीता उठकर कमरे में चली गई।
अरविंद उसके पीछे-पीछे कमरे में आया और बोला,


“तुम‌ बहू को उसके मुंह पर बता नहीं सकती थी कि तुम कितनी वेल एजुकेटेड हो। बैंक में मैनेजर थी तुम। और वो एक छोटी सी नौकरी के पीछे तुम्हें इतना सुना रही है। अपने आप को समझती क्या है वो”
” मुझे तो सुनने की आदत है। आप क्यों दिल पर ले रहे हो?”


“अरे! तुम में स्वाभिमान है या नहीं। हर कोई उठकर तुम्हें सुना देगा क्या “
अरविंद के कहते ही नीता ने एक नजर भर अरविंद की तरफ देखा। उसकी नजरों को देखकर अरविंद झेंप गया। नीता चुपचाप अपने कामों में लग गई।


अरविंद ने उससे माफी भी मांगी लेकिन नीता ने उपरोक्त जवाब देकर उसे चुप करा दिया। अरविंद कुछ भी नहीं बोल पाया। आखिर अपनी पत्नी के स्वाभिमान को कुचलने में उसका भी तो सबसे बड़ा योगदान था। वही तो था जिसने अपनी पत्नी को गूंगी गुड़िया बनाया था।

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