छोटे घर की बेटी
“कविता मेरे कमरे का ए.सी.क्यों बंद किया कल रात को? कितनी बैचेनी हो रही थी,हमारे घर में पूरी रात ए.सी.चले तो भी हम बिल की चिंता नहीं करते?
तुम्हारे मायके की तरह नहीं कि 10 लोगों के बीच एक ही कूलर हो,सारे एक ही जगह सोते हो,पता नहीं सबको हवा कैसे आती है,बडे कंजूस है;!!
,छुट्टी में ननिहाल जाएगा मेरा लाडला ,पता नहीं वहाँ कैसे नींद आएगी मेरे किटू को ?
“सुधा जी ने अपनी बहु को मुँह बनाकर कहा।
“चाय बना दूँ ,मम्मी जी”-कविता ने बात को अनसुना करते हुए कहा।
“हाँ …बना दे”,और सुन किटू के लिए वो मफिन्स बना देना,मेरे पोते को बहुत पंसद है”।
‘मम्मी जी ,कल ही तो उसने चाकलेट केक खाई है,फिर रोज की गंदी आदत हो जाएगी उसकी,
अब अगले हफ्ते ही बनाऊंगी केक’-कविता ने कहा।
- Read More मैं चुप हूं इसलिए तुम ताकतवर हो
सुधा जी ने नाराजगी से कहा-“हो जाएगी तो क्या हमें किसी बात की कमी थोड़ी है,तुम अपने छोटे घर की बातें यहां मत किया करो,8, साल हो गए शादी को,
अभी भी यहां के तौर-तरीके नहीं सीखे”।
“कविता ,मेरा रूमाल नहीं मिल रहा,ढूंढ दो ना”-निखिल ने आवाज लगाई।
आती हूँ ,कहकर कविता पूरे कमरे में ढूंढ ने लगी।
“ये रहा ,तकिए के नीचे आ गया था ,कविता ने कहा।
‘अच्छा ,ठीक है,मेरा नाश्ता तैयार है क्या’? निखिल बोला।
‘हाँ ,आ जाओ और कार्तिक को भी बोल दो कि नाश्ता कर ले -कविता ने कहा।
कविता ने नाशता परोसते हुए किटू से कहा”ये लो किटू ,
सैंडविच और केला जल्दी से खा लो,नहीं तो पेंटिंग क्लास में लेट हो जाएगी”।
“मुझे नहीं खाना”,किटू ने प्लेट झटकातें हुए कहा।
‘किटू ये क्या तरीका है’ ,कविता ने गुस्से से कहा।
“क्या हुआ मेरे किटू को ,क्यूं डाँट रही हो मेरे लाडले को ,क्या किया है इसने?सुधा जी ने कहा।
“दादी , मम्मी ने कल मुझे डाँटा ,और मेरे बैग से पैसे भी ले लिए,”किटू ने रोते हुए कहा।
सुधा जी ने गुस्से से कविता को कहा,”शर्म नहीं आयी ,बच्चे के पैसे लेते हुए,क्या बिगाड़ लिया इसने तेरा ,जो डाँटती है मेरे लाल को,ये सब ओछी हरकतें तुम्हारें मायके में चलती होगी यहां नहीं ,पैसे दे देना किटू को वापस”।
कविता गुस्से में तमतमाती हुई बोली,”नहीं दूंगी…..,
भले ही मैं छोटे घर की हूं ,पर मेरे संस्कार छोटे नहीं है,आपके लाड़ले किटू ने मेरे पर्स से पैसे निकाले है”,
पूछो इससे …..अब तो चोरी भी करना सीख गया है ,इसकी जितनी जिद मानते है ,उतना और जिद्दी हो रहा है।
“सही किया बहू तुमने,मैं होता तो और कडी सजा देता”कविता के ससुर जी ने पूजाघर से आते हुए कहा।
और सुधा ,बहू ने ए.सी. मेरे कहने पर बंद किया था ,ठंड की वजह से तुम्हारा साँस उठने लगा था,इसलिए ।
“बहू को छोटे घर की ,छोटी सोच वाली बोलती हो,तुम्हारी खुद की सोच कितनी छोटी हो गई है ,
इतने सालों से वो इस घर में रह रही है,सबका ध्यान रखती है,सब जिम्मेदारी निभाती है,
असल में तो ‘वहीं मालकिन’है इस घर की”,आगे से ख्याल रखना सुधा कि किसको ,क्या बोलना है”।
कविता की आँखे भर आई ,
और सोचने लगी कि “भले ही मैं छोटे घर से आई हूँ ,
पर मैंने अपने मन को ,अपनी सोच को हमेशा बड़ा रखा है”
,पर इन बड़े घर के लोगों की सोच हमेशा छोटी होती है”,
वास्तव में छोटा कौन ये समझ आना इनके लिए बहुत मुश्किल है।
क्या आप पैसे से संष्कार खरीद सकते है….