Hindi kahani: बरसात….
बरसात लगातार तेज हो रही थी सुधा जब विधालय से निकली थी बच्चों को पढ़ाने के बाद घर जाने के लिए तब तो मौसम साफ ही था मगर फिर अचानक थोड़ी सी बदली बनी ओर बरसात शुरू हो गई वैसे तो उसे भीगने से परहेज़ नहीं था मगर आज उसकी तबीयत बिगड़ी हुई थी उसपर अचानक तेज चलते हुए उसकी चप्पल टूट गई थी तभी उसे स्मरण हुआ कालोनी के उस मोड़ पर एक लड़का चप्पल की मरम्मत का काम करता है
वह लगभग लंगड़ाते हुए वहां तक पहुंची लड़के को वहां देखकर उसने राहत की सांस ली की चलो घर पहुंचने से पहले उसकी चप्पल ठीक हो जाएगी उसने लड़के को चप्पल ठीक करने के लिए कहा वह दस बारह साल का लड़का उसे देखकर मुस्कुरा कर चप्पल ठीक करने लगा कुछ ही देर में चप्पल सिल गयी
कितना हुआ…
वह लड़का कुछ बोला नहीं.. बस उसकी ओर देखता रहा
अरे बोलो ना कितना हुआ
वह लड़का थोड़ा शरमाया सा धीरे से बोला …गोलगप्पे खिला देंगी आप
गोलगप्पे….अरे पैसे लेकर का लेना … कितना हुआ
पैसे …वो तो पापा ले लेते है..
मतलब…
मतलब … उन्हें बस अपनी शराब से मतलब है वो अभी आएंगे और
ओह…. अच्छा चलो ….
गोलगप्पे खाते खाते सुधा ने उससे पूछा …तुम पढ़ना नहीं चाहते
पढ़ना…. नहीं
क्यों…
अगर में पढूंगा तो कमाएगा कौन
मतलब तुम्हारे मम्मी पापा
मम्मी तो … पापा अपाहिज हो गये थे एक एक्सीडेंट में
दो छोटे भाई बहन हैं वो आपके स्कूल में पढ़ने जाते हैं वहां सभी अध्यापकों की तारीफ करते हैं मेरा बड़ा मन था कभी आप जैसे व्यक्तियों के साथ कुछ समय रह सकूं इसलिए …
सुधा निशब्द सी कुछ गोलगप्पे खाकर पैसे देकर वहां से निकल गई मगर अब जब भी उधर से गुजरती है तो बहाने से वहां थमती है और उस लड़के के साथ बातचीत करती है और दोनों गोलगप्पे भी खाते है
अब वह दोनों दोस्त बन गए है वह लड़का अक्सर उससे तरह तरह के सवाल पूछता है पढ़ना चाहता है इसलिए सुधा उसे वहीं कुछ किताबें काफी देकर पढ़ाई करवाती रहती … एक शाम उसकी बातें रोक कर सुधा ने उसे बताया सुनो दो दिन बाद जा रही हूं
अपने बेटे के पास .. शायद ही वापिस आना होगा
क्यों ….
क्योंकि मेरा बेटा वहां रहकर पढ़ता है तो अब वही रहूंगी
कुछ दिन और नहीं रह सकती आप
क्यों …
बस आपके साथ अच्छा लगता था
परसों मेरा जन्म दिन है जो में मनाती नहीं हूं… अपने पति के बाद से मगर इस बार बेटा चाहता है कि में उसके साथ जन्मदिन पर वहां रहूं तो कहते हुए सुधा घर आ जाती है
जन्मदिन से पहले की शाम .. अखबार में लिपटी गिफ्ट दरवाजे से सुधा के हाथों मे देकर वह लड़का झट चला जाता है
सुधा अखबार खोलती है तो उसमें हरे रंग की सूती साड़ी थी ..
सुधा साड़ी पहनती हैं .. उसकी सिली चप्पल भी….
फिर चल देती है दुकान पर वह लड़का चुपचाप बैठा हुआ था उसे देखते ही पास आता है और देखकर मुस्कुरा कर तारीफ़ करता है
तुमने कैसे जाना मेरी पसंद का रंग… सुधा हैरानी से बोली
मां को यही रंग अच्छा लगता था….
अचानक फिर से आज बरसात शुरू हो गई थी पानी बरस रहा है दोनों के चेहरे भीगे हुए थे पता नहीं बरसात से या आंसूओं से ….
एक प्यार भरी ममता और स्नेह का तानाबाना बुनती सुंदर रचना…