“Desi Kahani Net: ननद रानी मुझे सलाह देने की जगह आप अपना ससुराल संभालो” का वर्णन करते हुए, आप कह सकते हैं कि ये हिंदी भाषा में लिखी हुई कहानियां हैं जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और लोगों के जीवन की घाटाओं पर आधारित होती हैं।
ये कहानियाँ अलग-अलग विषयों पर लिखी जाती हैं जैसे प्रेम, परिवार, सामाजिक मुद्दे, और सामाजिक बातचीत। देसी कहानियाँ अक्सर हमारे दैनिक जीवन की अनुभव को दर्शाती हैं और हमें सामाजिक सन्दर्भ में सोचने और समझने की दिशा में प्रेरित करती हैं।
Desi Kahani Net: ननद रानी मुझे सलाह देने की जगह आप अपना ससुराल संभालो
“क्या भाभी सुबह से तो आप अपने ही काम में लगी हुई हो। और अब मोबाइल लेकर बैठ गई। आपको तो मम्मी का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है। जब उनका ही ख्याल नहीं है तो मेरा तो बहुत दूर की बात है। मैं तो ससुराल से कभी कभार ही आती हूं। और मम्मी तो रोज आपके पास ही होती है। ऐसा नहीं की थोड़ी देर उनके पास ही बैठ जाए। बेचारी मेरी मम्मी अकेले कैसे वक्त काटती होगी”
विनीता अपनी भाभी देविका को सुनाते हुए बोली, जो अभी कुछ देर पहले ही अपने कमरे में गई थी और अपने मोबाइल पर मैसेज चेक कर रही थी।
” दीदी आप बैठी तो थी मम्मी के पास। तो मम्मी अकेली कहां थी। और वैसे भी मैं थक गई थी तो थोड़ा आराम करने के लिए अपने कमरे में आ गई “
देविका ने विनीता को जवाब दिया।
” अरे ऐसा कौन सा काम करा लिया हमने आपसे जो आप थक गई। ये तो रोज का रूटीन वाला ही तो काम है। अब तक तो आपकी प्रैक्टिस हो जानी चाहिए थी। भला इसमें क्या थकावट”
विनीता अपनी ही रौ में बोली।
“हो सकता है दीदी। आपको थकावट नहीं होती होगी, पर मुझे तो हो जाती है। अब थोड़ा आराम करूंगी तो ही तो शाम के काम के लिए रिफ्रेश हो पाऊंगी”
देविका ने फिर कहा।
” वाह भाभी! जवाब देना तो कोई आपसे सीखे। धड़ाधड़ जवाब दिए जा रही हो। ऐसा नहीं कि चुपचाप होकर सुन भी ले। भला बहूओं को ये सब शोभा देता है। इस तरह भला कोई ससुराल वालों से कैसे निभा सकता है”
विनीता तो आज चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
“विनीता क्यों बोलती ही जा रही हो? वो आराम करना चाहती तो करने दे ना उसे। तू तो मेरे पास आकर बैठ”
इससे पहले की देविका कुछ कहती, सासू मां ने विनीता को अपने पास बुला लिया। आखिर विनीता के जाने के बाद देविका ने भी चैन की सांस ली।
‘ आज जरूर हो ना हो, ये अपने ससुराल में किसी ना किसी से लड़ कर आई है’
मन ही मन बुदबुदाती हुई देविका ने आखिर अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और जाकर बिस्तर पर लेट गई।
ये तो विनीता का हमेशा का ही था। जब भी वो अपने ससुराल में किसी से लड़ती या झगड़ती, तो उसके बाद सीधे मायके पहुंच जाती। फिर यहां आकर अपनी भाभी देविका को दस बातें सुनाती।
पर देविका ज्यादा कुछ नहीं कहती। क्योंकि सासू मां हर बार बीच बचाव कर लेती थी। किसी न किसी बहाने वो विनीता को वहां से हटा ही देती। और अगर विनीता नहीं हटती तो देविका को वो कोई ना कोई काम बता कर उसे या तो उसके कमरे में पहुंचा देती। या फिर बेटे तन्मय के साथ बाजार के किसी काम के लिए रवाना कर देती।
आखिर वो अपने घर में कोई फसाद नहीं चाहती थी। विनीता को भी कई बार समझा चुकी थी कि अपने घर के लड़ाई झगड़े वो इस घर में लेकर ना आए। लेकिन वो थी कि समझने का नाम ही नहीं लेती। अगर सासू मां थोड़ी तेज आवाज में कह देती तो वो रोना धोना मचा देती,
” लोग अपनी बेटियों का साथ देते हैं। लेकिन आप? आप तो मेरी दुश्मन बनी बैठी हो। मेरे ससुराल वाले भी मेरे नहीं हैं। और अब आप भी मेरे नहीं रहे। आखिर में जाऊं तो जाऊं कहां”
उसका रोना धोना सुनकर सासू मां भी आखिर चुप हो जाती। ससुराल में तो वो खुद लड़ झगड़ करके आ जाती थी। और यहां आकर के देविका को एक आदर्श बहू बनने के पाठ पढ़ाया करती थी। पहले तो देविका फिर भी सुन लेती थी। लेकिन आजकल उसे भी चिढ़ होने लगी थी। इसलिए अब वो भी पलटकर जवाब देने लगी थी।
आजकल विनीता के ससुराल में नया मुद्दा चल रहा है। अगले हफ्ते उसकी ननद के यहां उसके बच्चे का पहले जन्मदिन का प्रोग्राम होने वाला है। और इसके लिए सासू मां और उसके पति ने सोने की चेन तोहफे के तौर पर डिसाइड की है। बस यही बात विनीता को पसंद नहीं आई। इसलिए वो अपनी सास और पति से लड़ पड़ी। और लड़ झगड़कर मायके आकर बैठ गई।
तब भी उसने यहां आकर काफी हंगामा किया था और देविका को खूब परेशान किया था। दो दिन पहले ही जैसे तैसे समझा बूझा कर उसे ससुराल भेजा था।
आज उसकी सास और पति सोने की चेन खरीदने जाने वाले थे। तो उसने भी जिद कर दी कि उसके बेटे के लिए भी सोने की चेन आनी चाहिए। उसकी ये जिद सुनकर उसके पति ने कहा,
” विनीता क्यों जिद कर रही हो। अभी तो हम एक ही सोने की चेन खरीद सकते है। अपने बेटे को तो मैं उसके जन्मदिन पर सोने की चेन दिला दूंगा”
“नहीं, मुझे तो अभी सोने की चेन चाहिए। ननद के बेटे के लिए सोने की चेन लाने के लिए पैसे हैं आपके पास। खुद के बेटे के लिए नहीं है। पूरा घर ननद को लूटा दो। अपने बीवी बच्चों पर बिल्कुल ध्यान मत दो”
“कैसी बात कर रही हो तुम? मैं अपनी बहन को सिर्फ मौके पर ही तो कुछ ना कुछ देता हूं। हमेशा तो उसे नहीं ला कर देता। तुम्हारे मायके वाले भी तो तुम्हें देते हैं, फिर मैं क्यों ना दूं अपनी बहन को”
“मेरे मायके वालों को बीच में लाने की जरूरत नहीं है। तुम्हारी बहन ने तो मेरे बेटे के जन्म पर कोई ढंग का तोहफा लाकर नहीं दिया था। क्या लेकर आई थी वो? पांच ड्रेस और चांदी के कड़े और पायल, और वो कुछ खिलौने। उसने तो कभी कुछ ढंग का नहीं दिया मेरे बेटे को। इसलिए तुम भी अपनी बहन के बेटे को सोने की चेन नहीं दोगे। देना है तो कोई छोटा-मोटा गिफ्ट लाकर दे दो”
“कैसी बात कर रही हो तुम? मेरी बहन की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वो तुम्हें सोने के गहने लाकर दे। पर मेरी स्थिति है कि मैं उसके बेटे को सोने की चेन गिफ्ट कर सकता हूं। और मैं ये दूंगा ही “
बस इसी बात से वो वापस लड़ झगड़ कर मायके आ गई। और अब यहां तमाशा कर रही है।
खैर, देविका अपने कमरे में सो गई तो थोड़ी देर शांति हो गई।
कुछ देर बाद देविका का भाई उससे मिलने आया तो देविका उठी और उससे मिलने के लिए बाहर हाॅल में आ गई। कुछ देर रुक कर उसे चाय नाश्ता सर्व भी किया। और उसके पास बैठकर उससे बातचीत की। थोड़ी देर रुक कर भाई वहां से रवाना हो गया।
उसके रवाना होते ही विनीता फिर शुरू हो गई,
“वाह! अब थकावट नहीं हुई। उठकर भाई के पास बातें करने के लिए आ गई। और ये क्या? बिना मम्मी से पूछे तुमने भाई को मिठाई भी सर्व कर दी। ज्यादा अपनी मनमानी करने लगी हो। पूरा घर लुटा दो अपने मायके वालों पर”
“विनीता चुप कर। क्या बोले जा रही है”
ये भी पढ़ें: – दर्द भरी यादों का बक्सा
सासु मां ने उसे रोकने की कोशिश की। क्योंकि अब तो पक्का था कि अब देविका जरुर बोलेगी। आखिर कौन लड़की अपने मायके वालों के खिलाफ सुनना पसंद करेगी। इसलिए सासु मां ने उसे चुप करने की पूरी कोशिश की। पर वो थी कि सुनने का नाम ही ले रही थी।
” वाह! अपने फकीर मायके वालों को तो मिठाई खिला रही हो। और यहां ससुराल वाले बैठे तुम्हारा इंतजार करते रहे कि कब बहु रानी निकलकर बाहर उनसे बात करने आएगी। अरे ऐसे फकीरों को…”
“चुप करो दीदी। कुछ भी बोले जा रही हो”
अचानक देविका भड़क गई। आखिर कौन सी लड़की अपने मायके वालों के लिए इस तरह के शब्द इस्तेमाल करते हुए सुन सकती है।
“मुझे आदर्श बहू का पाठ पढ़ाने की जगह पहले आप अपना खुद का ससुराल तो संभाल लो। खुद के अलावा कोई आसपास में दिखता भी है आपको। खुद के पास इतना कुछ है लेकिन खुद की गरीब ननद नहीं दिख रही है आपको। और मुझसे उम्मीद कर रही हो कि मैं आपका सम्मान करूं। आपके कर्म भी है कि कोई आपको सम्मान दे। आइंदा मेरे मायके वालों के लिए कुछ भी कहा ना तो देख लेना। मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी”
कहकर देविका गुस्से में अपने कमरे में चली गई। उसकी बात सुनकर विनीता को जैसे कोई सदमा लगा हो। तभी सासू मां ने भी कहा,
” विनीता संभल जा। अगर तुझे तेरा मायका जिंदा रखना है ना तो कम से कम अपने घर की आग यहां मत लेकर आया कर। यहां आकर उसे समझाने से अच्छा है कि खुद पहले अपना घर संभाल। सलाह भी उस इंसान की ही अच्छी लगती है जो खुद उस बात को अमल करता हो। खुद के ससुराल में तू निभा नहीं पा रही है। और यहां आकर उसे आदर्श बहु का पाठ पढ़ा रही है। भगवान के लिए मेरे घर को बक्श दे”
आखिर अपनी मां को लंबे हाथ जोड़ते देखकर विनीता चुप हो गई। इतनी जोर से तो कभी उसकी सास ने और पति ने भी नहीं डांटा था। इतना तो समझ में आ गया कि उसके नखरे तो उसका पति ही उठा सकता है। यहां पर तो अपनी दाल गलने वाली नहीं। इसलिए कुछ देर बाद ही अपने ससुराल खुद बा खुद रवाना हो गई।
आखिर सुनने में आया कि ननद के बेटे के जन्मदिन पर पति और सास ने सोने की चेन ही गिफ्ट की। और विनीता वहां भी मुंह फुलाए ही रही।