Desi Kahani: यह बात उस समय की है जब मैं बहुत छोटी थी शायद चार साल या उससे भी थोड़ी छोटी । हुआ यह कि हमारी कॉलोनी में एक भिखारी अपनी गोदी में एक छोटे से बच्चे को लेकर भीख मांग रहा था। वह रो – रो कर कह रहा था कि इस बच्चे की माँ नहीं है,यह भूखा है… बीमार है। कुछ पैसे दे दो कोई ताकि मैं इसका इलाज करवा सकूं।
मुझे उसे देखकर बहुत दया आई। मैं उसे कुछ देना चाहती थी लेकिन मम्मी रसोई में थी और पापा नहाने गए हुए थे। मैने समय नष्ट न करते हुए अपनी गुल्लक फोड़ी और सारे पैसे उस भिखारी को दे आई। पापा जब कमरे में आए तो गुल्लक फूटी देखकर उन्होंने मुझसे पूछा कि मैने ऐसा क्यों किया। मैने उनको सारी बात बता दी।
उन्होंने मुझे समझाया कि मुझे ऐसा नहीं करना था, मम्मी –पापा को बिना बताए किसी को कुछ नहीं देना चाहिए। मुझे समझाते हुए वो बोले ,” बेटा ये उन लोगों का काम है। वे ऐसे झूठ बोलकर लोगो से पैसे लेते हैं।”
मुझे तो सिर्फ इतना समझ आया कि ये लोग ऐसे पैसे कमाते हैं। उसके कुछ दिन बाद ही मैं मम्मी के साथ अपनी ननिहाल बस से जा रही थी। बस में भी अलग – अलग तरह के भिखारी आ रहे थे।
उनके पैसे मांगने के ढंग को देखकर मुझे लगा कि इससे अच्छे ढंग से तो मैं पैसे मांग सकती हूं। बस…. फिर क्या था, मैने तय कर लिया कि मैं बड़ी होकर भिखारन बनूंगी।
नानी के घर से आने के बाद मैने अपनी एक पुरानी फ्रिल वाली सफेद फ्रॉक निकाली जो थोड़ी फट गई थी और मम्मी ने उसे किसी को देने के लिए रख दिया था। उसे थोड़ा और फाड़ा… बाल बिखेर लिए। उसके बाद शीशे के सामने खड़े होकर मैं दयनीय सा मुंह बनाकर करुण आवाज में भीख मांगने की प्रेक्टिस करने लगी।
शीशे में खुद को देखकर मुझे यकीन हो गया कि एक दिन मैं बहुत बड़ी भिखारन बनूंगी। लोग दूर– दूर से मुझे भीख देने आया करेंगे। पूछेंगे कि भिखारन मौसम अग्रवाल कहां रहती हैं तो पड़ोसी गर्व से उनको मेरा पता बताएंगे। उसके बाद मैं अपना एक ऑफिस खोल लूंगी। इतनी कमाई होगी कि पापा अपनी नौकरी छोड़ देंगे और मुझे भीख देने आए लोगों की लाइन बनवाया करेंगे ताकि धक्का मुक्की न करे लोग।
इसमें एक ऑफर भी होगा कि ज्यादा भीख देने वाले को अगली बार लाइन में सबसे आगे खड़े होने का अवसर मिलेगा। मैने एक अलमुनियम का बरतन भी निकाल लिया था जिसे मम्मी ढूंढते हुए आई और मेरे पास देखकर एक झापड़ मारकर वो बर्तन लिया और मेरे एक झापड़ और लगाकर फ्रॉक बदलवाकर काम वाली बाई को दे दी।
इस तरह मेरा एक बड़ी भिखारन बनने का सपना चूर–चूर हो गया लेकिन मैं अपने भविष्य को लेकर बहुत सजग थी। जल्द ही मैने अपने लिए एक दूसरा काम खोज लिया।
थोड़ा बड़ा होने पर मम्मी ने मुझे रोज आंगन की झाड़ू लगाने के लिए कह दिया। उस समय हमारा घर चीनी मिल के पास था इस कारण बहुत बार आंगन राख से भर जाता था। पर मुझे तो इसमें भी मजा आता था। झाड़ू लगाते हुए मेरा खेल भी जारी हो जाता था । मैं उस राख में रास्ते बना– बना कर पूरा आंगन साफ कर देती थी। एक दिन मुझे ख्याल आया कि मैं तो बाई बन सकती हूं आखिरकार इतनी अच्छी झाड़ू लगाती हूं।
बस फिर क्या था, ख्यालों ने सिर उठाना शुरू कर दिया। एक दिन मैं बहुत प्रसिद्ध झाड़ू लगाने वाली बन जाऊंगी। अड़ोस– पड़ोस के लोग मुझसे अपने आंगन की झाड़ू लगवाने के लिए आपस में लड़ा करेंगे। मैं समझदार बन कर, सबको समझा कर सबके आंगन की झाड़ू लगाया करूंगी और खूब पैसा कमाऊंगी।
फिर टीवी पर मेरा इंटरव्यू लिया जाएगा, ” मौसम जी, आप इतनी अच्छी झाड़ू कैसे लगा लेती हैं? आपने कैसे सीखा ये सब?”
तब मैं बताऊंगी कि झाड़ू कैसी लेनी चाहिए, कैसे बैठ कर झाड़ू लगाई जाती है। खड़े होकर झाड़ू लगाने का क्या तरीका होता है।”
इसके बाद मैं एक स्कूल खोल लूंगी । लोग विदेशों तक से अपने बच्चों को मेरे पास झाड़ू लगाना सीखने के लिए भेजेंगे।
मेरे भविष्य की सारी योजनाएं बन ही रही थीं कि एक बार फिर मैं करोड़पति बनने से रह गई। मम्मी ने एक दिन तबियत खराब होने के कारण मुझसे पूरे घर की झाड़ू लगाने के लिए कह दिया और इसके बाद मैं इतनी थक गई कि अपने नन्हे – नन्हे हाथों पर तरस खाते हुए मैने बाई बनने का प्लान भी कैंसिल कर दिया।
उसके बाद भी मैने खुद के लिए कई तरह के काम सोचे और किए भी पर आजकल घर में बाई बनी हुई हूं और लिख– लिख कर सबको पकाने की कोशिश कर रही हूं।