Dard Bhari Story: दर्द भरी यादों का बक्सा..
Dard Bhari Story: सुलोचना बहन भाई साहब के जाने का दुख क्या कम था जो आपके बेटे भी आपसे दूर जा रहे हैं. ! अरे पति के बाद बच्चों का ही तो सहारा रहता है आपका एक बेटा पहले भी विदेश चला गया, बताओ पढ़ने गया था घर गृहस्ती बसा ली और लौटा भी कब जब पिता ने आंखें मूंद ली..! मैंने सुना कि आपका छोटा बेटा कमलेश वो भी शहर जा रहा है, क्या आप यहां अकेली रहेंगी.? कैसे कटेंगा अपना बुढ़ापा क्या फायदा ऐसी औलाद का जो बुढ़ापे का सहारा ना बन सके।” सुलोचना जी की पड़ोसन कमला जी उनसे बोलीं।
दूसरी पड़ोसन बोली “सुलोचना बहन क्या बड़ा बेटा परिवार को लेकर नहीं आया..?” कमला जी बोलीं “अरे आता तो हमें दिखाई नहीं देती। सुलोचना बहन मैं तो कहती हूं कमलेश के जाने से पहले उसकी शादी करवा दो वरना वो भी शहर का ना होकर रह जाए।” दूसरी पड़ोसन बोली “हां हां सुलोचना बहन फिर बेटा शहर चला भी जाएगा तो बहू को अपने पास रख लेना।” कमला जी बोलीं “अरे कौन बीवी को छोड़कर शहर में अकेला रहता है.? फिर भी कम से कम मां की खोज खबर तो लेता रहे।” सब अफसोस जता कर चली गई।
मरणोपरांत पिता के लिए अपनी आखिरी जिम्मेदारी निभाते हुए उनका बड़ा बेटा दूसरे ही दिन वापस विदेश जाने लगा। मां ने कितनी मिन्नतें की “बेटा पहले तुम्हारे बाबा थे पर अब मैं यहां अकेली कैसे रहूंगी मुझे अकेला छोड़कर मत जाओ।” बेटे ने अपने परिवार और अपने काम की दुहाई दी और पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा और चला गया। सुलोचना जी तो पहले ही उससे संतोष कर चुकी थीं पर जब वो अपने पिता के क्रिया कर्म में आया तो मां को एक आस लगी जो उसने बेरहमी से तोड़ दी।
2 महीने बाद सुलोचना जी कमलेश से बोली “बेटा कमलेश मैंने कलेजे पर पत्थर रखकर तुम्हें पढ़ने के लिए शहर भेजा था पर अब तुम शहर जाने से पहले मेरी एक ख्वाहिश पूरी कर दो।” कमलेश बोला “हां मां बताइए क्या करना है..!” सुलोचना जी बोलीं “मैं चाहती हूं तुम शादी कर लो ऐसा ना हो कि अपने भाई की तरह तुम भी….।” कमलेश अपने भाई के व्यवहार के कारण अपनी मां को और दुख नहीं देना चाहता था उसने मां की पसंद की लड़की सुनैना से शादी कर ली।
करीब 15 दिन बाद कमलेश बोला “मां अब मुझे शहर जाना होगा वरना ये नौकरी मेरे हाथ से चली जाएगी। आप चिंता मत कीजिए मैं आपके खर्चे के लिए वहां से मनीआर्डर भेजता रहूंगा पहले एक बार अपनी गृहस्थी बसा लूं फिर आपको भी वहां बुलवा लूंगा।”
सुलोचना जी बोलीं “तो क्या बहू भी तुम्हारे साथ चली जाएगी..?” कमलेश बोला “हां अब वहां ये नहीं जाएगी तो मेरे लिए रोटी कौन बनाएगा? शहर का खाना भी बहुत महंगा हो जाता है तो इसे तो मेरे साथ जाना ही होगा।” बेटे के सुख में उन्होंने अपना सुख देखा और बेटे बहू को नम आंखों से विदा कर दिया।
समय बीता सुलोचना जी अकेली पुरानी यादों को याद करके मुस्कुराती और आंखों से आंसू बहा लेती। कमलेश बीच-बीच में चिट्टियां भेजता रहता और कुछ पैसे मनी ऑर्डर कर देता था, पर बड़ा बेटा तो जो गया तो कभी खोज खबर भी ना ली।
सुलोचना जी के दो बेटे एक रमेश दूजा कमलेश रमेश तो पिता से लड़ झगड़ कर खूब मोटी रकम लेकर पढ़ने के लिए शहर गया और फिर शहर से ही विदेश चला गया। जिसके गम में उसके पिता भोला बाबू ने बिस्तर पकड़ लिया। दूसरे बेटे कमलेश को सुलोचना जी ने शहर पढ़ने के लिए भेज दिया अब तो बस कमलेश का ही सहारा था वो भी अब शहर चला गया।
समय बीता सुनैना भी अपने घर गृहस्ती को संभालने लगी बीच-बीच में वो सास से मिलने आती रहती। 2 साल बाद सुनैना ने खुशखबरी दी किसी के ना रहने से जिंदगी रूकती नहीं है तो सुलोचना जी की जिंदगी भी चलती गई एक वक्त था जब भरा पूरा परिवार था आज सुलोचना जी उस घर में अकेली रहती थीं।
समय बीता रमेश जिस देश में रहता था वहां मंदी का दौड़ छाया तब रमेश को अपने देश की याद आई। मां से अपने अधिकार और बंटवारे की मांग करने लगा। इस बात का पता कमलेश को लगा वो आया और बोला “आप ऐसा कैसे कर सकते हैं! आज तक आपने कोई फर्ज नहीं निभाया और अधिकार लेने चले आए. !”
रमेश बोला “तुम छोटे हो तुम्हें इन सब बातों से क्या मतलब है।” कमलेश बोला “याद है मुझे जब मां ने मुझे पढ़ने के लिए बाहर भेजा था, आपने तो एक बार मुझसे नहीं पूछा कि तुम कैसे पढ़ रहे हो या कोई दिक्कत तो नहीं है। आपकी वजह से बाबूजी ने बिस्तर पकड़ लिया और इस दुनिया से चले गए, उनके जाने के बाद भी आपको ना मेरा ना मां का ख्याल रहा फिर आज आप यहां क्यों आए यहां है.?”
दोनों भाइयों में बहुत बहस हुई सुलोचना जी बोलीं “किसे क्या मिलेगा नहीं मिलेगा ये मेरा फैसला होगा तो जो आज तक फर्ज निभाता आया वही अधिकार भी पाएगा।” रमेश बोला “मां मैं भी आपका बेटा हूं इस संपत्ति में मेरा भी अधिकार है। बक्से में ताला लगाकर गले में चाबी टांग लेने से आप उसे मुझसे छुपा नहीं लेंगी, आपने कमलेश की पढ़ाई पर भी खर्च किया फिर आप उसे सब कुछ कैसे दे सकती हैं।”
सुलोचना जी बोलीं “अच्छा तो अब तुम्हारी नजर मेरी बकसिया पर है. ! बेटा मैं तुम्हारा कुछ नहीं जानती हूं पर तुम मेरी चीजों पर नजर डालते हो शर्म ना आई तुम्हें..? अपनी कमाई अपनी औरत पर लुटाते आए और जब दिक्कत हुई तो मां की याद आई, मैं कहती हूं निकल जाओ मेरे घर से और इस बकसिया पर तो कोई नजर भी मत डालना ये आज तक ना खुली है और ना खुलेगी।”
रमेश जैसे ही बढ़ा कमलेश ने उसे रोका “खबरदार भैया बिना मां की मर्जी के आप जबरदस्ती नहीं कर सकते आखिरी फैसला मां का ही होगा।”
सुलोचना जी बोलीं “अरे जिसने अपने बाप को जीते जी बिस्तर पर डाल दिया। उसके मरने के दूसरे ही दिन बचे हुए पैसे लेकर निकल गया उसे इस घर से अब एक मुट्ठी मिट्टी भी नहीं मिल सकती, अपनी भलाई चाहते हो तो चले जाओ यहां से वरना..।” रमेश चुपचाप वहां से चला गया।
समय बीता सुलोचना जी के मन के घाव पर धीरे-धीरे मरहम लगने लगा। सुनैना गांव आती रहती थी जब बच्चे बड़े हुए तो सुनैना सुलोचना जी से बोली “अम्मा बच्चों की पढ़ाई और इनकी नौकरी के कारण मेरा बार-बार यहां आना हो नहीं पाएगा। क्या आप हमारे साथ नहीं चल सकतीं आपकी सुख सुविधा में कोई कमी ना आने दूंगी।”
सुलोचना जी का शरीर गिर रहा था उन्हें बहू का सुझाव पसंद आया और वो बहू बेटे के साथ अपने उस बक्से को लेकर उनके साथ चल दी। जब सुलोचना जी शहर पहुंची तो उनके पोते पोती दादी के बक्से को देखकर आश्चर्य में कहते “दादी आखिर इस बक्से में है क्या जो आप इसे साथ ले जाती हैं….!” सुलोचना जी उसे पीछे करते हुए बोलीं “खबरदार बच्चों मेरे बकसिया को हाथ ना लगइयो।”
धीरे-धीरे सुलोचना जी का मन वहां लगने लगा। अब उनके उदास और मुरझाए आंखे हंसती थीं, शांत और उदार मन से हर किसी से मिलती जुलती थी बस अपने बकसिये को किसी को छूने नहीं देती थीं! उसकी चाबी उनके गले में बंधी काली डोरी में होती थी जिसमें की एक दंतकुदनी भी होती थी, आश्चर्य की बात तो ये थी कि उस बक्से को उन्हें भी किसी ने खोलते हुए नहीं देखा था!
सुनैना कई बार हंसकर पूछती भी थी कि ” इस बक्से में क्या धरी हो मांजी कभी खोलो तो हम भी देखें कि कौन सा खजाना छुपा कर रखी हो। ” पोता पोती भी अक्सर उस बक्से को खोलने की जिद करते तो सुलोचना जी यही कहती “सब कुछ तुम्हारा ही तो है पर अभी इसे खोलने की बात मत करो।” और बात टाल जाती थीं।
समय बीता एक रोज सुलोचना जी की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी और वो भोला बाबू को बहुत याद कर के बहू से बोली “बहू एक बात कहूं अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देना कि बुढ़ापे में कभी तुम्हारे साथ वो दगा ना करें। अपने कलेजे के टुकड़े के लिए आज भी दर्द महसूस करती हूं, अपने खून से जिसे सीचा था उसे कैसे भूल पाऊं।”
सुनैना बोली “मांजी मैं आपके दर्द को समझ सकती हूं कि आपको जेठ जी की याद आती है।” सुलोचना जी बोलीं “बहू मैंने तो अपनी ममता में कोई कमी ना कि पर वो अपनी मां को कैसे भूल गया। आज मैं सवेरे सोना चाहती हूं मुझे खाने के लिए मत जगाना।” इतना कहकर वो अपने कमरे में चली गईं और न जाने कब सो गईं।
कमलेश आया मां को पूछा तो सुनैना बोली “मांजी ने कहा था वो सोना चाहती हैं रात के खाने पर उन्हें जगाया न जाए।” कमलेश बोला “ऐसे कैसे मां बिना खाए सोने चली गई..! मां ओ मां चलो मेरे साथ ही एक रोटी खा लो, लगता है आज तुम्हें सबने परेशान किया तभी तो बक्से को पकड़कर सोई हो!” कमलेश के बार बार कहने के बाद भी जब सुलोचना जी ने जवाब न दिया तो कमलेश घबरा गया और उन्हे स्पर्श करके देखा।
सुलोचना जी का पूरा शरीर ठंडा हो चुका था कमलेश ने सुनैना को आवाज लगाया सुनैना भागकर देखने आई तो सुलोचना जी के चेहरे पर एक संतोष का भाव था मानो वो निश्चिंत होकर अगली यात्रा पर निकल रही थीं। सुलोचना जी के शरीर को उनके पैतृक गांव ले जाया गया वहां विधि विधान के अनुसार उन्हें तैयार किया और उनके गले से वो काली डोरी और वो चाबी निकाली गई।
क्रिया कर्म समाप्त होने के बाद जब सब वापस आए तो कमलेश ने वो काली डोरी से चाबी निकाली सुनैना बोली “बाकी के काम बाद में करना पहले बक्सा खोलो और हमें दिखाओ की इसमें कौन सा खजाना है!’
जैसे ही बक्सा खुलने लगा बच्चे आस पास खड़े हो गए “अरे ये क्या..! पुरानी पोस्टकार्ड, पुराने मनीआर्डर की रसीद और ये धुंधली होती चिट्ठियां..इनमें से कुछ चिट्ठियों में स्याही भी फैली हुई थी मानो किसी के आंसू ने उन्हें फैला दिया हो। ये सब आखिर किसकी चिट्टियां हैं? और इसे मांजी बक्से में क्यों रखती थीं..!” सुनैना ने पूछा
कमलेश के हाथ कांप रहे थे, आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे मानो वो उन चिट्ठियों को पहचानता था। और क्यों नहीं पहचाने क्योंकि वो सभी चिट्ठियां कमलेश ने मां को लिखी थी।
सुनैना कमलेश को झकझोरते हुए बोली “आप कुछ बताते क्यों नहीं है ये किसकी चिट्टियां और पोस्टकार्ड हैं? आखिर बात क्या है आप रो क्यों रहे हैं..!!” कमलेश रोते हुए बोला “सुनैना ये मेरी लिखी गई चिट्ठियां हैं। जब बाबूजी बिस्तर पर थे और मां ने मुझे पढ़ने के लिए शहर भेज दिया था, भाई ने तो पहले ही हमसे नाता तोड़ लिया था इसीलिए वक्त निकालकर में मां को चिट्टियां भेजता रहता था ताकि उसे अकेलापन महसूस ना हो। कॉलेज के दिनों मैं ट्यूशन पढ़ाकर मां के लिए कुछ पैसे मनीआर्डर करता था ये उसी की रसीद है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पूरी पढ़ाई के दौरान जितनी भी चिट्टियां मैंने मां को लिखी थी वो सब मां ने आज तक संभाल कर रखी थी।” इतना कहते-कहते कमलेश दहाड़े मार कर रोने लगा “मां मैं तो ये सब भूल चुका था पर आपने सब याद रखा! मेरे पाई पाई का हिसाब आप रखती थीं पर कभी भी जताती नहीं थीं, लौट आओ मां कुछ वक्त और मेरे साथ बिताती कम से कम जी भर के आपकी सेवा ही कर लेता। कैसा अभागा मेरा भाई है जो मां के इस दर्द में शामिल ना हो सका और ना ही उन्हें कुछ अच्छी यादें दे सका। ”
सुनैना की भी आंखें भीग गई आज उसे एहसास हुआ कि उसकी सास उसके लिए यादों का खजाना जो किसी भी संपत्ति से कम नहीं था वो छोड़ गईं।
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बच्चों की आंखें भर आई वो कभी इस बक्से को तो कभी अपने पिता को देखते थे कि उनकी दादी उनके लिए ऐसा अनमोल खजाना छोड़ गई जब किसी बाजार में नहीं मिलती।
सुनैना ने गौर से देखा उन्हीं चिट्ठियों में एक चिट्ठी रमेश की भी थी जिसमें ये लिखा था कि “मैं वापस लौटकर अपने देश नहीं आना चाहता। मैं आप लोगों की जिम्मेदारी नहीं ले सकता हूं और ना ही मुझे आपके उन थोड़े से पैसे और संपत्ति में कोई हिस्सा चाहिए। जो भी है अपने छोटे बेटे को दे दीजिए और उसी से अपना काम चलाइए।”
रमेश बोला “मां की कोई भी कड़वी याद मैं अपने साथ नहीं रखना चाहता फाड़ कर फेंक दो इस चिट्ठी को…।” सुनैना बोली “यादें अच्छी हो या कड़वी मांजी की है इसे इसी बक्से में रहने दीजिए कम से कम जीवन की सीख देगी यह चिट्ठी इतना कहकर सुनैना ने उस बच्चे को बंद करके लाल कपड़े में लपेट कर रख दिया।”
जैसे ही सुलोचना जी की मृत्यु की खबर रमेश तक पहुंची वो परिवार के साथ दरवाजे पर पहुंच गया और अपने हक की बात करने लगा। दोनों भाइयों में बहुत बहस हुई बात पुलिस तक चली गई, रमेश ने कमलेश और सुनैना पर ये इल्जाम लगाया कि उन्होंने सुलोचना जी का ध्यान नहीं रखा जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई।
बात हद से आगे बढ़ गई तब सुनैना सामने आई और बोली “अरे जो अपनी मां की मृत्यु का भी मोल लगाए ईश्वर कभी ऐसी औलाद किसी को ना दे, याद रखिएगा आपको इन सभी बातों का भुगतान करना ही पड़ेगा। कल जब आपकी औलाद आपके साथ यही सब करे तब आपको मां की अहमियत का पता चलेगा।”
सुनैना की जेठानी रेखा पहली बार उसके सामने आई और बोली “अपना ये प्रवचन अपने पास रखो। सीधी तरह से संपत्ति में आधा हिस्सा हमें दे दो वरना कोर्ट कचहरी लड़ने तक की औकात नहीं है तुम्हारी. !” कमलेश इन बातों से बहुत दुखी हुआ उसने कहा “सुनैना लेने दो इन्हें जो भी लेना चाहते हैं। ऐसे भूखंडों का पेट कभी नहीं भरता, अरे जो बेटा मां बाप को खा गया वो भाई को चैन से कैसे रहने देगा ।”
सुनैना बोली “नहीं जी बात संपत्ति तक नहीं रही अब मांजी के सम्मान की बात हो गई है। ये कोर्ट तक जाने की बात करते हैं अरे मैं अब इनको जेल तक पहुंचाऊंगी और इनका 1-1 किया हुआ सबके सामने लाऊंगी। मेरी सास का अपमान किया, अब ये बहू उसके अपमान का बदला लेगी। ये आपका घर नहीं ये मेरे पति का घर है निकल जाओ मेरे दरवाजे से बाहर, तुम जैसे निर्दई इंसान के लिए मेरे दरवाजे पर कोई जगह नहीं है।”
सुनैना के इस रूप को देखकर कमलेश भी हैरान था! सुनैना ने अपने बच्चों को अपने मायके भेजा और अपनी सास के उस बक्से के साथ महिला मुक्ति केंद्र गई, फिर उन सबको लेकर पुलिस स्टेशन पहुंची और थानेदार को सारी चीजें दिखाई।
जैसे ही रमेश वहां आया सभी महिलाएं उसकी और रेखा के नाम की हाय हाय करने लगी। पुलिस वालों को जब रमेश ने रिपोर्ट लिखने कहा तो पुलिस वालों ने कहा “आपकी रिपोर्ट तो बाद में लिखी जाएगी यहां तो आपके खिलाफ रिपोर्ट लिखी गई है। जब आपने ये लिखकर पहले ही कह दिया था कि आपके माता पिता की संपत्ति में आपको कुछ नहीं चाहिए तो अब आप अधिकार लेने कैसे आ सकते हैं?”
रमेश हैरान हो गया पुलिस वालों ने जब वो पुरानी चिट्ठी बक्से से निकालकर उसके सामने रखी तो दोनों पति-पत्नी की आंखें खुली की खुली रह गई।
रेखा रमेश से बोली “तुम इतने बेवकूफ कैसे हो सकते हो! तुमने अपनी मां को ये सब लिखकर भेज दिया था, अरे अपनी बेइज्जती तो करवाई ही मेरी भी नाक कटवा दी अब चलो यहां से..” जैसे ही दोनों जाने लगे पुलिस वालों ने कहा आप ऐसे नहीं जा सकते आप पर एफ आई आर दर्ज करवाई गई है कि आपने अपने माता पिता के साथ दुर्व्यवहार किया था।”
कमलेश और सुनैना ने सारी कार्रवाई की ये कहते हुए कि “अब आपको माफी नहीं मिल सकती अगर आज आपको माफ कर दिया तो जीवन में न जाने आप जैसे कितने ही बेटे और भाई अपने मां-बाप को छलेंगे और पैसों के लिए उन्हें छोड़कर चले जाएंगे।”
दोनों माफी मांगते रहे पर कुछ हाथ ना लगा बल्कि रमेश को काफी हर्जाना चुकाना पड़ा तब जाकर उसे एहसास हुआ कि मां के रहते उसने कभी उनकी कद्र नहीं की अब जाने के बाद अहमियत समझ में आई कि उसने क्या गलती की थी।
आपको इस बक्से के खुलने के बाद क्या एहसास हुआ यह आपने क्या अनुभव किया अपनी भावनाएं कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें….!!