छोटी कहानी इन हिंदी

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छोटी कहानी इन हिंदी : हर रोज़ की तरह आज भी अमित जी साँझ होते ही अपने घर के बाहर बने लम्बे से बरामदे में आकर बैठ गये । हाथ में मोबाइल और अख़बार आँखों पर चश्मा और आते जाते लोगों को दुआ सलाम रिटायरमेंट के बाद यह दिनचर्या का हिस्सा अब बड़ा ख़ास लगने लगा था ।

कभी कभार थोड़ा साथ के बने पार्क में घूम भी आते थे, लेकिन आज दोपहर से ही बादल बरसने की शक्ल लिए बैठे थे । अचानक से ही काली घटा ने पूरे आसमाँ को घेर लिया और बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बारिश भी जम कर बरसने लगी ।

गली में पैदल चलते हुए लोगों के कदमों ने रफ़्तार पकड़ ली थी और अचानक से सब कुछ धुंधला सा दिखने लगा । अमित जी कुर्सी पर बैठे भीगते हुए मौसम का आनन्द ले रहे थे कि तभी तेज़ी से भागते हुए शुक्ला जी नज़र आये । उनके हाथ में पकड़ा खुला छाता हवा में उड़े जा रहा था और वो उसे सम्भालने के चक्कर में जल्दी से अमित जी के बरामदे की चार सीढ़ियाँ चढ़ कर बरामदे में आ गये । अमित जी के सामने अपना खुला छाता बंद करते हुए कहने लगे… बाप रे, कितने ज़ोरों का तूफ़ान आया है !!

अमित जी – कहाँ से घूमकर आ रहे हैं शुक्ला जी ??
शुक्ला जी – अरे, कहीं नहीं जनाब बस यूँही टहलने निकला था कि मौसम ने रूप ही बदल लिया ।
अमित जी – अभी थम जायेगी यह बारिश थोड़ी देर यही बैठ जाइये.. कहकर साथ पड़ी कुर्सी शुक्ला जी की तरफ़ सरका दी । शुक्ला जी भी समय की नज़ाकत देख थोड़ी देर रूकने के भाव से बैठ गये ।

गली के छोर में उनका मकान था । कालेज में बतौर संस्कृत प्रोफ़ेसर कार्यरत थे । गली से आते जाते राम राम नमस्ते से ज़्यादा का रिश्ता नहीं था उनका अमित जी से । आज शायद पहली बार बारिश ने दोनों को इकट्ठे बिठाया था ।
अमित जी इस घर में अपने जन्म से ही रह रहें थे । बैंक से मैनेजर की पोस्ट पर साल पहले ही रिटायर हुए थे । बेटी चाँदनी की शादी कर दी थी और बेटा अर्जुन की छः महीने पहले एक अच्छी कम्पनी में नौकरी लगी थी । अब थोड़ा राहत महसूस करते थे।

सारी ज़िंदगी एक मध्यमवर्गीय पिता की ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए कभी अपनी छोटी सी ख़ुशी के बारे में भी नहीं सोचा । कुछ करने का सोचते भी तो बजट पीछे खींच कर ले जाता। यारी दोस्ती शब्द तो उनकी ज़िंदगी में कोरे काग़ज़ जैसा था ।

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अकेले पन में रिटायरमेंट गुज़र रही थी । आज भी उसी का हिस्सा बने हुए थे कि शुक्ला जी ने अचानक से आकर उनके अन्तरिम का कोई दरवाज़ा खटखटाया ।दोनों बैठ कर बातें करने लगे तो एक दूसरे की संगति में डूब से गये । दोनों की एक जैसे विषयों पर रूचियाँ मिलने लगी । बातों का समा सा बंधने लगा हंसने की आवाज़ों ने वातावरण को घेर लिया ।

पत्नी मृदुला जो कि साथ वाले कमरे में बैठी अपना मनपसंद धारावाहिक देख रही थी कि अचानक पति की किसी के साथ आवाज़ों ने उसका ध्यान बाहर की ओर खींचा । पति किसके साथ बातें कर रहे हैं यह देखने के उद्देश्य से वो भी बाहर आ गई । शुक्ला जी को देख नमस्कार कर हाल-चाल पूछ कर वापिस अन्दर जाने को मूँड़ी तो पति ने पीछे से आवाज़ लगाई… अरे सुनो मृदुला दो कप चाय तो बना लाओ !!

जी , अभी लेकर आती हूँ कहकर अभी दो कदम आगे बढ़ी तो पति ने फिर से आवाज़ लगाई … ऐसा करो यार दो दो पकौड़े भी हो जाये आज !! मौसम का भी यही तक़ाज़ा है,कहकर अमित जी मटकाती हुई आँखों से पत्नी की ओर देखने लगे ।

मृदुला पति के यूँ हुक्म चलाने पर जल भून जाती लेकिन जब से बेटे अर्जुन की नौकरी लगी थी तब से बहुत खुश रहने लगी थी । बेटा कहीं दूर नहीं गया था अपने ही शहर में अपने ही पास था । इसीलिए मन में बड़ी राहत महसूस करती थी ।

जल्दी रसोई घर में आई सब्ज़ियाँ काटने लगी । गैस पर जल्दी से चाय का पानी चढ़ाया । लेकिन जैसे ही उसने बेसन का डिब्बा खोला , उसका मुँह खुला का खुला रह गया । डिब्बे में दो चम्मच से ज़्यादा बेसन नहीं था ।
जल्दी से उसने सामान की वो सूची देखी जिसे पकड़ा कर उसने पति से कल ही राशन मँगवाया था । यह क्या !! बेसन तो लिखना भूल ही गई । अब सामने से निकल कर जायेगी तो शुक्ला जी मना करेंगे और पति से डाँट पड़ेगी अलग !!

इन सोचो मैं डूबीं ही थी कि बेटे अर्जुन का फ़ोन आ गया । मम्मी अगर चाय बना रही हो तो मेरी भी बना देना । मौसम ख़राब होने वाला है इसलिए जल्दी ही छुट्टी कर ली है ।
मृदुला ने हल्के से सुर में कहा… ठीक है बेटा !!

माँ कीं आवाज़ में कोई चिंता नज़र आई तो अर्जुन पूछने लगा । क्या बात है मम्मी सब ठीक तो है ना ??
हाँ बेटा सब ठीक है । वो जो गली के नुक्कड़ में शुक्ला जी रहते हैं ना वो तेरे पापा के साथ बाहर बैठे हैं । पापा ने पकौड़े की फ़रमाइश की है । लेकिन कैसे बनाऊँ घर में तो बेसन ही नहीं है… डिब्बे को बंद कर वापिस रखते हुए मृदुला बोली ।

अरे मम्मी चिंता मत करो मैं लेकर आ रहा हूँ । तुम चाय बनाओ कहकर अर्जुन ने माँ की सारी परेशानी पल में दूर कर दी ।

थोड़ी देर बाद अर्जुन हाथ में एक बड़ा सा लिफ़ाफ़ा लेकर घर में दाखिल हुआ । उसने बाहर बैठे शुक्ला जी को प्रणाम किया और सीधा रसोई घर में माँ के पास चला गया । बेटे को देखते ही माँ चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लाकर बोली.. ला दे बेटा बेसन !! यह क्या अर्जुन ने उस बड़े से प्लास्टिक थैले में से दो तेल से सने लिफ़ाफ़े निकाल कर माँ के हाथ में थमा दिए । बेटा पकौड़े ही नहीं बल्कि गर्म गर्म जलेबियाँ भी लाया था ।
मृदुला- तू पकौड़े ही ले आया ?? इसकी क्या ज़रूरत थी बेटा, मैं बना देती काहे को बैठे बिठाए इतने पैसे लगाकर आ गया ।

माँ को पीछे से आलिंगन करते हुए अर्जुन कहने लगा.. जाओ माँ तुम भी पापा के साथ बैठकर मौसम को आनन्द लो । कभी तुम भी रसोई से छुट्टी लिया करो और ज़्यादा मत सोचा करो ।

मृदुला बेटे की ओर मुड़ी .. बहुत बड़ा हो गया है तू कहकर एक हल्की सी चेहरे पर चपत लगाई ।
पकौड़े जलेबियाँ और चाय लेकर जल्दी से जाकर बाहर पति और शुक्ला जी के साथ बैठकर गप्पें मारने लगी । भीगा भीगा मौसम और गर्म गर्म चाय पकौड़े ने शुक्ला जी के बैठने के इरादे को मज़बूत कर दिया जो कि मन में काफ़ी देर से उठने बैठने की कश्मकश में फँसे हुए थे ।

तीनों की बातों का दौर चल ही रहा था कि शुक्ला जी की पत्नी अनुराधा का फ़ोन आ गया । कहाँ हो इतनी देर से , मुझे फ़िक्र हो रही है ?? पत्नी की चिन्ता को हटाते हुए शुक्ला जी बोले.. अरे चिंता मत करो अभी थोड़ी देर में आ जाऊँगा । अपने जो वो अमित जी है उचें घर वाले उन्हीं के पास बैठा हूँ ।

अच्छा ठीक है उधर से पत्नी का सुर आया ।फ़ोन बंद करने वाले ही थे कि मृदुला झट से बोली अनुराधा से कहिए वो भी यहाँ आ जाये, अगर कुछ ख़ास नहीं कर रही । अनुराधा ने मृदुला का आमंत्रण स्पष्ट सुन लिया । घर में अकेली बैठी बोर हो रही थी तो झट से हाँ कर दी ।

थोड़ी देर बाद अनुराधा एक हाथ में छतरी और दूसरे से सलवार को पानी से बचाती हुई पहुँच गई । हल्के नीले रंग का सूट और बहुत ही हल्का सा मेकअप में भी बहुत प्यारी लग रही थी । मृदुला झट से एक एक कप चाय ओर बना लाई । बेटा दिल खोलकर पकौड़े लाया था । आज बारिश की तरह ये चौकड़ी भी जम गई । बातों क़िस्सों का और हंसने हंसाने की एक समा सा बंध गया ।

अमित जी को एक बासी सी नियमितता में आज एक ग़ज़ब की ताज़गी मिली । मृदुला तो पहली बार शायद ऐसे किसी अनुभव से गुजर रही थी । शुक्ला जी और अनुराधा के साथ उनके विचार और दिल खूब मिले । उनकी ही तरह यह दम्पति भी काफ़ी सीधे साधे दिखावे वाली थोथी बातों से काफ़ी दूर थे।

अर्जुन जो कि साथ वाले कमरे में बैठा था । उसका भी टी वी देखते देखते थोड़ी थोड़ी देर बाद ध्यान बाहर बैठे दोनों दम्पति की बातों की तरफ़ जा रहा था । पापा के पास तो सदा ही बातें होती है । लेकिन हैरान था माँ अपने कालेज के क़िस्से सुना रही थी तो कभी अपने बहन भाई की नटखट बातें सुनाती पीछे यादों की दुनिया मे खो रही थीं । माँ को उसने कभी इतना बात करते पहले नहीं देखा । दादा दादी के रहते बहुत चुप चुप रहती थी । काफ़ी संकीर्ण सख़्त विचारों वाले बुजुर्ग थे । घर में यार दोस्तों की धमाचौकड़ी मौज मस्ती वाला कभी माहौल ही नहीं बनने दिया उन दोनों ने ।

अर्जुन सोचने लगा बादल तो बरस कर थम भी गये । लेकिन भरे हुए मन अभी तक बरस रहे हैं । उसने घड़ी देखी तो आठ बजने वाले थे । रसोईघर में गया तो देखा रात के खाने की कोई तैयारी नहीं थी । फिर बाहर आया तो देखा चारों मस्ती में खूब बतिया रहे हैं ।आज माता पिता की मस्ती भंग करने का मन नहीं किया । चुपचाप पास के एक रेस्तराँ से खाना आर्डर कर दिया ।

खाना आर्डर कर वो मेहमानों को रोक कर रखने के इरादे से बाहर आया और उन्हें अपना नया लाया स्मार्ट टी वी दिखाने के बहाने से अन्दर ले गया । थोड़ी देर में खाने की डिलीवरी वाले ने घंटी बजाई । अर्जुन के हाथ में बड़ा सा बेग देखकर माता-पिता भौचक्के रह गए । अर्जुन ने बड़े प्यार से शुक्ला जी से कहा… अंकल जी मैंने खाना मँगवाया है । आप लोग खा कर जाइयेगा । अर्जुन के प्रेम के इस आग्रह पर शुक्ला जी बड़े निश्चित इरादे से मना करने लगे ।
शुक्ला जी – नहीं नहीं अब हम चलेंगे । यह बहुत ज़्यादा हो जायेगा । आप लोगों ने बहुत खिला दिया अब खाने की तो भूख भी नहीं ।

अर्जुन – कुछ ज़्यादा नहीं, आप लोग बैठिए जितना मन हो उतना खा लेना । माँ चलो आओ खाना मेज़ पर लगा दो ।
अर्जुन के पीछे पीछे मृदुला रसोई घर में भागी आई । धीरे से लेकिन कसी आवाज़ में बोली .. खाना क्यूँ मँगवाया, ये तो जा रहे थे अपने घर और फिर ये तो बस यूँही आ गये थे ।

अर्जुन – माँ को हाथ के इशारे से रोकता हुआ बोला , माँ खाना लगाओ , इस विषय में बात हम बाद में करेंगे ।
सबने बैठ कर बड़े से आराम से खाना खाया । अर्जुन ने लाजवाब आर्डर किया था । शुक्ला जी भूख ना होते हुए भी डटकर खाया फिर थोड़ी देर में खाना खाकर शुक्ला जी और अनुराधा बहुत सारा धन्यवाद और अर्जुन को आशीर्वाद देकर तारीफ़ों के पुल बांधते हुए चले गये ।

उनके जाते ही माता-पिता के चेहरों पर आये भावों को पढ़कर अर्जुन जवाब ढूँढने लगा । पहले पिता ने त्यौरियाँ माथे पर चढ़ाकर कहा, बहुत पैसे आ गये हैं मृदुला तुम्हारे साहिबज़ादे के पास.. घर में कोई जश्न चल रहा था क्या ??जो बैठ बिठाये हज़ार रूपया खर्च कर दिया होगा । अब खाना भी इस घर में बाहर से आयेगा??
मृदुला – बेटा क्या ज़रूरत थी खाना मँगवाने की , मैं बना लेती और फिर ये लोग तो बस यूँही आ गये थे । हमने कोई निमंत्रण थोड़े दिया था । चाय पकौड़े तक तो ठीक था लेकिन ये खाना और वो भी इतना कुछ सच में अर्जुन ये तो मेरी भी समझ के परे है … थोड़ी नाराज़गी माँ के चेहरे पर भी दिखाई दी ।

माँ बाप की मनोवृत्ति समझते हुए बड़े प्यार से अर्जुन बोला – पापा ये ज़रूरी तो नहीं जो अब तक नहीं हुआ वो आगे भी ना हो । इस काबिल अब हम है कि खड़े पहर चार पैसे खर्चने पड़े तो सोचने की ज़रूरत नही है । मैं आया था बाहर माँ को बुलाने लेकिन नहीं बुला पाया । पहली बार मैंने अपनी माँ को एक आत्मिक ख़ुशी में पाया । आप सब इस पल के क्षणों में एक दूसरे के साथ अत्यन्त आनंदित थे । मैं रसोई में गया वहाँ खाने की कोई तैयारी नहीं थी । और फिर पापा की दवाई लेने का भी समय हो रहा था ।

आज पहली बार मुझे अपनी माँ के लिए कुछ करने का मौक़ा मिला तो मैं इसे व्यर्थ कैसे जाने देता । सारा दिन हमारे लिए काम में लगी रहती है । कभी-कभी माँ को भी छुट्टी देनी चाहिए । आप दोनों ने हमेशा हमारी ख़ुशी पढ़ाई सुख सुविधा के बारे में सोचा । आप दोनों की अपनी भी कोई इच्छा अरमान है ये तो आपने सपने में भी सोचना बंद कर दिया होगा आज मैंने सोचा और मुझे इस बात की ख़ुशी है ।और फिर अनुराधा आंटी को भी घर जाकर सारा काम करना पड़ता ।

मम्मी पापा मैं जानता हूँ ये लोग यूँही अचानक इत्तफ़ाक़ से आ गये थे । लेकिन सच बताऊँ पापा ये इत्तफ़ाक़ कभी-कभी कमाल कर जाते है और बहुत लम्बे समय तक चलते हैं । पता है लोग यार दोस्त बनाने के लिए कितने पापड़ बेलते है । बढ़िया खाना एक से एक बढ़कर पकवान , महँगी महँगी क्राकरी, घर की सजावट एक दो नौकरों का इंतज़ाम फिर भी मन परेशान क्यूँकि अपने स्वभाव से मेल खाते लोग आजकल मिलते कहाँ है!! जिसे देखो अपनी ही डींगें मारता रहता है । हर कोई चाहता है बस मेरी सुन लो अपनी रहने दो ।

ये दोनों आज भले ही एक संयोग से आपको मिले हैं । लेकिन हम उम्र यार दोस्तों की आपको भी ज़रूरत है । आज इस संगति ने अवश्य आपको इस कमी का तो अहसास कराया ही होगा । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ पापा ये इत्तफ़ाक़ ये बस आपका यूँही बेकार नहीं जाने वाला.. जाइये जाकर अब सो जाइये, ज़्यादा सोचना सेहत के लिए नुक़सानदायक है और हाँ दवाई खाना मत भूलिएगा ।

बेटे ने आज माँ कीं भावनाओं को ही नहीं समझा बल्कि माँ को प्यार के सातवें आसमान पर बिठा दिया । मृदुला तो मन ही मन फूली नहीं समा रही थी । सोचने लगी सही तो कह रहा है अर्जुन कहाँ इस घर के लोगों ने कभी किसी से दोस्ती करने दी । आज जो मिला वो अनोखा अनुपम था । अमित जी भी काफ़ी हद तक बेटे से सहमत थे इसलिए बिना कुछ ओर बोले चुपचाप वहाँ से चले गये ।

दो हफ़्ते बीते नहीं थे कि अर्जुन कि भविष्यवाणी सही निकली । अनुराधा और शुक्ला जी के घर से खाने का निमंत्रण आया । अमित जी और मृदुला अच्छे से बन ठन कर हाथ में एक छोटा सा तोहफ़ा भी लेकर गये । वहाँ पहले से एक दम्पति विराजमान थे । राजीव और सौम्या नाम से उनका शुक्ला जी ने परिचय कराया । अब चार की बजाय छः लोग थे । महफ़िल अच्छी जमी , बातों का सिलसिला ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । खाना पीना और हँसना हँसाना लग रहा था कि जीवन की एक सख़्त ज़रूरत थी । दवाई मिले ना मिले लेकिन ख़ुशी ऐसी साथ रहे तो सेहत का कुछ बिगड़ने वाला नहीं ।

मुलाक़ात रंग लाई अब तीनों अच्छे मित्र बन गये । महीने में एक के घर ज़रूर रौनक़ लगती । तीनों महिलायें खाने से लेकर समेटा समेटी तक एक दूसरे का पुरा हाथ बँटवाती ।

फिर कुछ महीनों के बाद अर्जुन एक कान्फ्रेंस से सात दिनों के बाद जब घर आया तो उसने देखा कि पापा अलमारी से कपड़े निकाल रहे हैं और साथ में एक नया ख़रीदा सूटकेस भी पड़ा है । पापा कहाँ जाने की तैयारी है और ममी कहाँ है ??

अमित जी – अरे बेटा तू आ गया !! अरे कुछ नहीं वो राजीव और सौम्या ने बैठे बिठाए हम सबका वैष्णोदेवी जाने का प्रोग्राम बना दिया । उनके बेटे ने सारी बुकिंग भी करवा दी । हम बस मना नहीं कर पाये । इसी सिलसिले में मम्मी तुम्हारी शापिंग करने गई है ।

अर्जुन के चेहरे की बाँछें खिल गई । पहली बार माता-पिता को कहीं अपने लिए कुछ करते देख रहा था । मना करना भी नहीं चाहिए ऐसे मौक़े कोई बार बार थोड़े आते हैं । जाओ और खूब अच्छे से माँ के दर्शन और इन्जॉय करके आओ । पीछे घर की चिंता मत करना मैं हूँ !!

फिर धीरे से पापा के पास जाकर उन्हें छेड़ने के मक़सद से बोला पापा आपका यूँही तो कमाल कर गया । मैं ना कहता था योजनाएँ सफल हो ना हो लेकिन इत्तफ़ाक़ साथ निभा जाते हैं । अमित जी सूटकेस में कपड़े रखते हुए मुसकराते हुए बेटे की तरफ़ देखने लगे ।

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स्वरचित रचना

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