Best Moral Hindi Story 2024 | Hamari Adhuri kahani

Hamari Adhuri kahani: शशि तैयार होकर आईने के सामने खड़ी होकर खुद को निहार रही थी और खुद की खूबसूरती पर खुद ही मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी। भगवान ने उसे बनाया भी तो सुंदर है। कॉलेज में तो हर कोई उसके आगे पीछे घूमता था। पर इस घर में? उसकी खूबसूरती की बिल्कुल भी कद्र नहीं है। बस जब देखो काम, काम और काम।

इतने में बाहर से सासू मां शिमला जी की आवाज आई,

” शशि बहू कहां हो तुम? यहाँ बाहर सबके काम पर जाने का वक्त हो गया है और तुम हो कि अब तक कमरे से बाहर नहीं आई। जल्दी आओ और सब को नाश्ता परोसो “

बस इन्हीं की कमी थी। बड़े बिजनेस करने जा रहे हैं ये लोग। जाकर खेती-बाड़ी ही तो करनी है और उठाना क्या है गाय का गोबर। उसके लिए इतना शोर मचा रही है। खूबसूरती के साथ भगवान थोड़ी किस्मत भी दे देता तो क्या बिगड़ जाता। बाबा ने पता नहीं क्या सोच कर मेरी शादी इस घर में कर दी। सोचा था किसी अमीर घराने में शादी होगी तो आगे पीछे नौकर चाकर घूमेंगे, पर यहां तो खुद ही नौकर बन कर रह गई।

मन ही मन भुनभुनाते हुए शशि कमरे के बाहर निकल कर आई। देखा तो सब लोग नाश्ता करने बैठ चुके थे। सीधे रसोई में गई, जहाँ जेठानी गरमा गरम पराठे बना रही थी और सास सबके लिए छाछ बिलो रही थी। सास ने एक तिरछी निगाह से शशि की तरफ देखा, फिर अपने काम में लग गई। इधर शशि भी नाश्ता लाकर सब को परोसने लगी।

घर के पुरुष नाश्ता कर अपने अपने काम पर रवाना हो गए, वही सास नाश्ता कर अपने कमरे में जाकर बैठ गई। इधर जेठानी ने फटाफट नाश्ता तैयार किया और अपना नाश्ता थाली में परोस कर अपने कमरे में जाने से पहले शशि से बोली,

” देखो शशि, नाश्ता मैंने बना दिया है। अब तुम फटाफट से नाश्ता कर लो। उसके बाद रसोई की सफाई कर देना। दोपहर के खाने की भी तैयारी करनी है। आज नौकर चाकर भी छुट्टी पर है तो बाहर गाय के बाड़े की सफाई भी करनी है। अम्मा जी ने कहा है कि ये काम हम दोनों को ही करना पड़ेगा”

इतना कहकर अपना नाश्ता लेकर जेठानी अपने कमरे में चली गई। पीछे शशि खुद की थाली लगाते समय मन ही मन बड़बड़ाने लगी,

” हे भगवान! अब ये गाय का गोबर भी उठाना पड़ेगा। अरे जब खेत पर इतनी सारी गाय पाल रखी है तो क्या लेने के लिए घर पर ये दो गाय रख रखी है। नाश्ता बना दिया तो कोई एहसान कर दिया क्या मुझ पर? बोल के तो ऐसे गई है जैसे बहुत बड़ा तीर मार लिया हो। अब साफ सफाई का काम मुझ पर छोड़ कर चली गई। ये तो चाहती यही है कि मेरा रंग काम करते समय खराब हो जाए। जलती है मेरी खूबसूरती से”

शशि बढ़बढ़ाते हुए खुद के लिए नाश्ता लेकर अपने कमरे में चली गई।

शशि की शादी इस ग्रामीण पर धनाड्य परिवार के छोटे बेटे दीपक के साथ अभी दो महीने पहले ही हुई थी। घर में सास ससुर, जेठ जेठानी है। जेठ जेठानी की शादी को भी एक साल ही हुआ था। लेकिन शशि अपनी जेठानी से ज्यादा सुंदर थी। ऊपर से ग्रेजुएट भी थी। बस शशि को इसी बात का घमंड था।

अमीर घर है और घर में नौकर चाकर है। गांव भर में इज्जत है। लड़का भी पढ़ा लिखा है और अपने पैरों पर खड़ा है। एक बेटी के पिता को और क्या चाहिए। यही सोचकर उन्होंने शशि की शादी इस घर में कर दी। ऐसा नहीं था कि उन्होंने शशि से पूछा नहीं था। उन्होंने शशि से शादी के लिए पूछा था और अमीर घर को देखकर ही उसने हां की थी। उसे लगा था कि नौकर चाकर है तो उसकी जिंदगी तो ऐश में कटेगी।

लेकिन शशि तो एक नंबर की कामचोर थी। मायके में अपनी मां के डर से घर का काम करती थी और अब यहां सास के डर से। खैर रोते-धोते घर का काम तो कर लेती। लेकिन आज…. गाय का… गोबर… भी?

खैर जैसे-तैसे रोते-रोते शशि ने रसोई की सफाई की और अपना नाश्ता करने बैठ गई। नाश्ता खत्म करने के बाद वापस अपने कमरे में जा रही थी कि जेठानी बोली,

“चल शशि, बाड़े की सफाई कर आते हैं। अभी लगेंगे तो फटाफट काम हो जाएगा। फिर दोपहर के खाने की भी तैयारी करनी है। सबका खाना बांधकर खेत पर भिजवाना है”

आखिर मन मारकर शशि को बाड़े में जाना पड़ा। जेठानी तो फटाफट झाड़ू लेकर साफ सफाई करने लगी, पर वो तो वहां जाकर खड़ी हो गई। उसे तो जेठानी को काम करते देखकर ही घिन आ रही थी।

‘छी, कैसे गोबर उठा रही हैं? शायद ये इसी काम के लिए बनी है। पर मुझसे तो नहीं होगा ये काम’

मन ही मन सोचते हुए अपनी नाक भौं सिकोड़ते हुए वो वहीं खड़ी रही।

इतने में सासू मां शिमला जी भी बाहर आ गई। बड़ी बहू को काम करते और छोटी बहू को खड़ी-खड़ी उसे देखते देख कर बोली,

” अरे छोटी बहू तुम खड़ी क्या हो, फटाफट काम में लगो। जो जल्दी काम निपटे। तब तक मैं साग भाजी की तैयारी कर लेती हूं”

” अम्मा जी मुझसे तो ना होगा ये काम। इसे तो देखकर ही घिन आ रही है”

” अरे कौन सा गोबर उठाने को कह रही हूं। झाड़ू ही तो लगानी है। जब एक तरफ से बड़ी बहु लगा रही है तो दूसरी तरफ से तू लगा दे। काम जल्दी हो जाएगा। भला इसमें घिन का कौन सा काम है”

” मुझे नहीं पता। पर मैं घर के कामों के लिए नहीं बनी हूं”

आखिर हिम्मत कर शशि ने बोल ही दिया।

एक पल के लिए तो शिमला जी भी उसकी शक्ल देखते रह गई।‌ जेठानी के हाथ भी झाड़ू लगाते लगाते अचानक से रुक गए। तभी शिमला जी बोली,

“अच्छा तो फिर किस काम के लिए बनी है तू?”

” ऐशो आराम के लिए बनी हूं मैं। आपके इन गायों के गोबर को उठाने के लिए नहीं। अगर यही सब करवाना था तो कोई जेठानी जी जैसी ले आते। मुझसे तो नहीं होता ये सब काम”

शशि बेशर्मी के साथ सब कुछ बोल गई।

” ओहो! बड़ी आई ऐशो आराम वाली। तुम बहू हो, और मैं सास। फिर भी मैं आज तक घर का काम करती हूं। और घर में रहना है तो घर का काम भी करना ही पड़ेगा”

शिमला जी उसे डांटते हुए बोली।

” आप कुछ भी कहो सासू मां, हमसे तो घर का काम नहीं होगा”

कहकर शशि अंदर चली गई। जेठानी ने सासू मां की तरफ इस तरह से देखा जैसे कह रही हो क्या मैं अकेली ही काम करूंगी। शिमला जी को समझ में ही नहीं आया कि क्या करें। एक बहू के पीछे दूसरी बहू भी बगावत कर देगी तो घर के टुकड़े होना लाजमी है। ऐसे में बड़ों को समझदारी रखनी ही पड़ेगी।

उन्होंने बड़ी बहू से कहा, Hamari adhuri kahani

” बहू ये सफाई रहने दे। पहले दोपहर के खाने की तैयारी करवा दे। इस छोटी बहू का क्या करना है वो मैं फिर देखती हूं”

शिमला जी की बात मानकर बड़ी बहू ने झाड़ू वही रख दी और पहले रसोई में आ गई। दोनों सास बहू ने मिलकर रसोई तैयार की और खाना पैक करके खेत में भिजवा दिया। लेकिन इस दौरान शशि एक बार भी बाहर नहीं आई।

दोपहर में भी रसोई में वो सिर्फ अपना खाना लेने आई थी। अपना खाना लेकर वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई।

शशि मन ही मन खुश हो रही थी। अच्छा हुआ मैंने जवाब दे दिया। आज मुझे कोई काम नहीं करना पड़ा।

और इधर शिमला जी सोच रही थी कि छोटी बहू कामचोर है। काम से जी चुराती है। उसको सबक सिखाना ही पड़ेगा। वरना मेरे घर में महाभारत शुरू हो जाएगी।

शाम को जब घर के सभी पुरुष आ गए, तब उनको खाना खिलाने के बाद शिमला जी ने अपने कमरे में बुलाया और कुछ समझा कर वापस भेज दिया। दीपक अपने कमरे में आया तो शशि सो चुकी थी।

दूसरे दिन वो सुबह 8:00 बजे तक उठी। उसे किसी ने नहीं उठाया। नहा धोकर वो रसोई में नाश्ता लेने गई तो देखा रसोई में कोई नाश्ता नहीं था। तभी दीपक वहां पर आया उसे देखकर शशि हैरान रह गई।

” आप आज खेत पर गए नहीं?”

” नहीं, मां ने कहा है कि अपनी अपनी रोटी खुद अपने दम पर कमाओ। और अपना बंदोबस्त खुद कर लो। कब तक मां-बाप तुम्हें पालते रहेंगे। उन्होंने तो अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली”

” क्या मतलब?”

शशि ने हैरान होते हुए पूछा।

” मतलब मां ने साफ कह दिया है कि अब उनके आराम करने के दिन है। इसलिए अब वो हमारी जिम्मेदारी नहीं उठाएगी। कब तक कोल्हू के बैल की तरह घर का काम करती रहेगी। आखिर उनका भी ऐशो आराम पसंद है”

दीपक की बात सुनकर शशि सकपकाते हुए बोली,

” फिर अब? जेठ जी जेठानी की कहां है?”

“भैया भाभी तो खुद हैरान है कि अचानक मां को हुआ क्या?वो लोग भी अब देख रहे हैं कि अपना बंदोबस्त कैसे करना है। इसलिए भैया भाभी दोनों ही सुबह-सुबह निकल गए”

इतने में शिमला जी कमरे से निकल कर बाहर आई और कमला को आवाज दी,

” कमला, ओ कमला। ला मुझे जरा चाय तो बना दे। बहुत सिर दर्द हो रहा है “

अचानक बाहर से एक उनतीस तीस साल की एक महिला दौड़ती हुई अंदर आई। उसे देखकर शशि ने दीपक की तरफ इशारा कर पूछा। दीपक धीरे से बोला,

” ये कमला है। खेत पर काम करती थी। पर आज से बाबूजी ने इसे यहां अम्मा की सेवा के लिए छोड़ दिया”

तभी कमला शिमला जी से बोली,

” जी मालकिन, अभी बनाती हूं। कितने कप बनानी है”

” कितने कप का क्या मतलब? मेरे लिए बनानी है। और किसके लिए बनानी है?”

कमला ने प्रश्न भरी नजरों के साथ शशि और दीपक की तरफ देखा तो शिमला जी बोली,

” मैं अपने पति के पैसों पर ऐश कर रही हूं। जिम्मेदारी निभाकर इस दौर में आई हूं मैं। पति के साथ हर कदम से कदम मिलाकर चली हूं मैं। इस सुख को मैंने कमाया है। जिन्हें ऐशो आराम की जिंदगी जीने का शौक है। अपने दम पर जिओ। मां बाप के दम पर नहीं। और अपना ऐशो आराम खुद कमाओ “

शिमला जी के ऐसा कहते ही शशि को कल की बात याद आ गई। उसे समझते देर नहीं लगी कि शिमला जी ऐसा क्यों कर रही है। पर उसके पैरों तले जमीन तो ये सुनकर खिसक गई कि अभी अगर दीपक परिवार से अलग हो गया तो अभी तो उसके पास खुद के ही ठिकाने नहीं है। वो भला उसे कहां रखेगा।

किराए का घर, दो वक्त की रोटी, घर का काम, ये सब चीज उसके दिमाग में घुमने लगी। यहां काम से काम सब कुछ समय पर तो मिल रहा है। पता नहीं वहां मिल भी पाएगा या नहीं।

सोचते सोचते उसने शिमला जी से कहा,

“सासू मां आप भी कौन सी बात को दिल पर लगा कर बैठ गई हो। मैंने घर को अलग-अलग करने को थोड़ी ना कहा था”

” अच्छा! तूने नहीं कहा था कि तू ऐशो आराम के लिए बनी है। घर के कामों के लिए नहीं”

शिमला जी आंखें बड़ी करती हुई बोली।

” सासू मां वो तो मैंने गोबर उठाने से इनकार किया था। क्योंकि गोबर उठाने में घिन आती है। घर के काम तो मैं जैसे तैसे कर ही लेती हूं ना। तो भला इसके लिए आप अपने बेटों को अपने से अलग क्यों कर रही हो? परिवार तो एक साथ ही अच्छा लगता है”

शशि ने कहा तो शिमला जी ने पूछा,

” पर बहू तुझसे तो काम होते नहीं है। फिर भला परिवार में एक साथ कैसे रहेगी”

” सासू मां, मैं घर का काम तो कर ही लेती हूं ना। आप भी मेरी एक ही बात को पकड़ कर बैठ गई। क्या छोटा समझ कर मेरी बात को माफ नहीं कर सकते”

शशि हाथ जोड़ते हुए बोली।

” देख ले, बाद में बोलना मत कि इतना अच्छा मौका मिला था अलग होने का। पर सासू मां ने दोबारा एक साथ कर दिया”

“नहीं नहीं, मैं तो कुछ नहीं कहूंगी “

” ठीक है, फिर यहां खड़ी-खड़ी देख क्या रही है। जा जाकर चाय बना कर ला। ये कमला गाय का काम कर लेगी। पर घर का काम तो तुम दोनों बहुओं को ही करना है”

शिमला जी के कहते ही शशि चुपचाप रसोई में चाय बनाने चली गई।‌ पीछे से दीपक शिमला जी के पास आकर बैठ गया,

” वाह मां, एक ही बार में लाइन पर ले आई अपनी बहू को”

” बेटा यूं ही बाल सफेद नहीं किए हैं। अच्छे से जानती हो कि वह कामचोर है। काम निकलवाने के तरीके सब आते हैं मुझे। थोड़ी समझदारी बड़ों को भी रखनी चाहिए। उसके कहने पर मैं उससे लड़ने थोड़ी ना बैठ जाती”

” पर भैया भाभी कहां गए “

” तेरी भाभी के मायके गए हैं”

शिमला जी ने कहा तो दीपक अपने मुंह पर हाथ रखकर हंस दिया। आखिर शिमला जी की समझदारी ने घर के टुकड़े होने से रोक दिए।

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