पढिए सच्ची घटना पर आधारित 5-6 साल पूर्व लिखी गयी एक सशक्त कहानी Sacchi Kahani: दरकते रिश्ते
Sacchi Kahani :दरकते रिश्ते
सुबह के साढ़े सात बजे थे।निधि स्कूल के लिए तैयार होकर चुपके से ऊपर मम्मी के बेडरूम में गई।उसने धीरे से डोर सरकाकर देखा तो सारा सामान बिखरा पड़ा था अत: उसकी हिम्मत ही अंदर जाने की नहीं हुई।जब वह नीचे ड्राइंग रूम में आयी तो उसने देखा कि पापा सोफे पर बेसुध से सो रहे थे।
अपने रूम में आकर उसने अपनी गुल्लक में से पचास रुपए निकाल कर पॉकेट में रख लिए।बैग उठा कर जब वह बस के लिए निकलने लगी तो वहां घर की नौकरानी सरोज आ गयी।पिछले 10-12 वर्षों से वहां काम करने के कारण सरोज घर के सदस्य की ही तरह हो गयी थी।
” निधि बेटा आलू का परांठा बनाया है खा लो।”
निधि ने मायूस नजरों से सरोज आंटी को देखा – ” नहीं आंटी भूख नहीं है। “
सरोज ने जबरदस्ती टिफिन उसके बैग में डाला। शनिधि स्कूल के लिए निकल गयी तो सरोज सोचने लगी बेचारी छोटी सी बच्ची साहब और मेमसाब के रोज के लडा़ई-झगडे़ से इस तेरह साल की उम्र में ही कितनी बड़ी हो गयी है!
निधि के माता-पिता नरेश व नीतू दोनों मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं।निधि उनकी एकलौती संतान है। उनके घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है पर दोनों के नौकरी शुदा होने के कारण दोनों के ही अहम हमेशा टकराते रहते हैं।कोई अपने को किसी से कम मानने को तैयार नहीं इस कारण दोनों हर समय बात बे बात एक दूसरे से लड़ते रहते हैं।
रोज-रोज की चिक चिक से तंग आकर नरेश पिछले कुछ समय से नीतू से तलाक तो चाह रहा है पर वह चाहता है कि निधि की जिम्मेदारी नीतू उठाए।नीतू को भी तलाक देने में कोई हर्ज नहीं है।वह सोचती है कि वह सुंदर है,अभी जवान भी है और इतनी अच्छी नौकरी भी कर रही है।उसे कौन सी दिक्कत है?अब वह भी इस रिश्ते को ढो़ते रहने के मूड में नहीं है इसलिए वह तलाक तो देना चाहती है पर वह भी निधि की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं।आखिर कौन ऐसा शख्स होगा जो उससे शादी कर उसकी जवान होती जा रही बेटी की भी जिम्मेदारी उठाने को तैयार होगा अत: वह निधि की जिम्मेवारी नरेश को देने के साथ नरेश की जायदाद में भी हिस्सा चाहती है ताकि आगे की जिन्दगी मजे से काट सके।
बस इसी कारण से आए दिन दोनों आपस में लड़ते रहते हैं।चूंकि बच्चे की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता इसलिए दोनों एक दूसरे के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं।इन दोनों के झगडे़ के बीच पिसती है बेचारी निधि।छुट्टी का दिन तो मानो उसके लिए बिलकुल पहाड़ सा हो जाता है।लड़की होने के कारण उसे अकेले घर से कहीं जाने भी नहीं दिया जाता।जब तक सरोज घर में रहती है तब तक तो किसी तरह निधि का समय कट जाता था पर सरोज के जाने के बाद तो एक एक क्षण भारी होता था।
वह स्कूल से घर आकर अपने कमरे में दुबक जाती है।उसके मम्मी-पापा के आए दिन के झगडे़ के कारण न तो नरेश या नीतू के कोई दोस्त या रिश्ते दार उनके यहां आते हैं और न निधि की ही सहेलियां।निधि के दादा-दादी भी इसी शहर में रहते हैं।पहले सभी साथ ही रहते थे पर जैसे ही नीतू की नौकरी लगी,उन्होंने अपना अलग घर ले लिया।बच्चों की व्यक्तिगत जिंदगी में अधिक दखल अंदाजी नरेश के माता-पिता को पसंद नहीं इसलिए उन्हें कोई समझाने व संभालने वाला भी नहीं।
स्कूल में हमेशा चहकती रहने वाली निधि घर आते ही गूंगी गुडि़या बन जाती है।वह केवल सरोज आंटी से ही बात करती है और ज्यादातर बातों का जवाब हूं हां में ही देती है
रोज की तरह नीतू और नरेश ने नाश्ता अपने-अपने कमरे में किया और ऑफिस के लिए निकल गये।करीब बारह बजे स्कूल से कॉल आया कि जल्दी हास्पिटल पहुंचो निधि को चोट आयी है।हास्पिटल पहुंच कर पता चला कि निधि बहुत ऊपर से सीढ़ियों से गिर गयी है।उसे आईसीयू में रखा गया था।
आपरेशन की तैयारी हो रही थी।सिर में बहुत गहरी चोट आयी थी।आपरेशन शुरू हुआ पर जिंदगी मौत से हार गयी।नीतू और नरेश स्तब्ध रह गए।उन्हें ऐसा झटका लगा था कि अपनी सुध-बुध ही खो बैठे थे।
दुर्घटना की खबर पाकर निधि की दादी भी आ गयी थी पर उन्होंने बेटा व बहू को देखकर नफरत से मुंह फेर लिया।घटना की जाँच के लिए पूछताछ शुरू हुई।टीचर स्टुडेंट्स सभी के बयान लिए गए।यही पता चला कि बैलेंस बिगड़ने से निधि नीचे गिर गयी।
निधि की तेरहवीं निबटने के बाद नरेश ने अपनी मां को रोकना चाहा पर उन्होंने आंखों में आंसू भर कर कहा – तुम दोनों खूनी हो।तुम्हारी जिद मेरी पोती को खा गयी।मैं उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी पर तुम दोनों ने ही उसे अपने अहम का मोहरा बना कर उसकी जान ले ली।
दादी मां चली गयी।सरोज तब से सदमे में थी फिर उसने जैसे तैसे होश संभाला और नरेश और नीतू से कहा-मेमसाब मैं अब यहां नहीं रह पाऊंगी।इस घर की दीवारें मेरी निधि की सिसकियों से भरी हैं।उसे मैंने कभी अपनी गोद में तो कभी छिप कर रोते हुए देखा है।कभी तो मेरा मन किया कि उसे लेकर कहीं भाग जाऊं पर मैं डरपोक थी इसलिए ऐसा नहीं कर सकी।अगर चली गयी होती तो शायद वह आज जिंदा होती।
नरेश और नीतू के पास अब शायद कहने को कुछ नहीं था।जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे उनका लडा़ई- शझगड़ा एक अजीब सी बर्फ में तब्दील हो चुका था।उनकी सारी भावनाएं अंदर ही अंदर एक खामोशी अख्तियार कर चुकी थी।
संडे का दिन था।बड़ी मुश्किल से नीतू ने निधि के रूम में जाने की हिम्मत जुटायी थी। महीनों दोनों उसके कमरे में कदम नहीं रखते थे।कैसे मां बाप थे वो दोनों?
उसका रूम,उसका बेड,तकिया,उसकी किताबें,पेंसिल,पैन,स्कूल बैग सब वैसे ही रखे थे।उसने जब अलमारी खोली तो निधि का हल्का ब्लू नाइट सूट जिसे वह अक्सर पहना करती थी,नीचे गिर पड़े।
आज शायद नीतू के आंदर की माँ जग गयी थी।वह रोते हुए अलमारी से सामान निकालने लगी।तभी उसके हाथ एक ब्लू कलर की डायरी लगी।उसने कांपते हाथों से उसे खोला।डायरी के आगे के कुछ पेज फटे हुए थे।आगे के पृष्ठों में पेज दर पेज टूटे दिल की दास्तां छोटे-छोटे टुकड़ों में दर्ज थी–
मम्मी पापा मैं आपको डियर नहीं लिखूंगी । क्योंकि डियर का मीनिंग प्यारा होता है पर आप लोग तो प्यारे हो नहीं?पापा, आप मम्मी को कहते हो कि यह तुम्हारी बेटी है और मम्मी आप पापा को कहते हो यह तुम्हारी बेटी है।क्या मैं केवल एक से ही पैदा हुई थी??अब मैं भी बड़ी हो रही हू़।मुझे भी पता है कि मैं आप दोनों में से किसी से भी अकेले तो पैदा नहीं हुई ?फिर आप दोनों ये क्यों नहीं कहते कि हमारी बेटी…
अगले पेज पर था–पता है आप लोगों को,जब मैं मामा जी के घर जाती हूं,मामा मामी मुझे बहुत प्यार करते हैं।मामी अनु को जब प्यार से मेरा बच्चा कहती हैं तो मुझे लगता है कि क्या मैं प्यारी बच्ची नहीं हूं ? मम्मा मैं तो आपका सारा कहना मानती हूं फिर भी आपने मुझे कभी प्यारी बच्ची नहीं कहा
मम्मी जब मैं बुआ के घर जाती हूं तो बुआ मुझे बहुत प्यार करती हैं पर खाना हमेशा अपने बेटे नक्ष की पंसद का ही बनाती हैं।मम्मा मुझे भी राजमा बहुत पसंद है।एक दिन मैंने आपसे कहा भी था कि आप राजमा बनाओ पर आपने कहा मुझे मत तंग किया करो,जो खाना है सरोज आंटी को बोला करो।पता है मम्मा ,मैंने राजमा खाना छोड़ दिया है।अब खाने का मन नहीं करता।
पापा मैं आपके साथ आज आइसक्रीम खाने जाना चाहती थी पर आपने कहा आपके पास फालतू चीजों के लिए टाइम नहीं है।पापा जब चीनू मासी और मौसा जी मुझे और विपुल को आइसक्रीम खिलाने ले जा सकते हैं तो फिर वे यह क्यों नहीं कहते कि ये सब फालतू चीजें हैं ।
पता है मम्मी मैं अपने घर से दूर जाना चाहती हूं जहां मुझे ये न सुनाई दे कि निधि को मैं नहीं रखूंगी।जहां पापा के चिल्लाने की आवाज न सुनाई दे।
पापा अगर मैं बड़ी होती तो मैं आप दोनों को कभी परेशान नहीं करती।मैं खुद ही कहीं चली जाती।मैं तो आप दोनों से बहुत प्यार करती हूं।पापा मम्मी आप दोनों मुझे प्यार क्यों नहीं करते ?
एक पेज पर था–आइ लव यू सरोज आंटी। मुझे प्यार करने के लिए,जब मुझे डर लगता है तो अपने पास सुलाने के लिए,मेरी हर बात सुनने के लिए।
और सबसे अंतिम पेज पर था
दादी आई लव यू . आप मुझे यहां से ले जाओ।आइ प्रॉमिस ,मैं आपको कभी तंग नहीं करूंगी।
नीतू डायरी को सीने से लगा कर जोर-जोर से रो पड़ी।नरेश भी उसके रोने की आवाज सुनकर आ गया था शायद बेटी के गम ने उसे भी तोड़ कर रख दिया था।नीतू ने डायरी उसे पकडा़ दी।
पेज दर पेज पलटते हुए नरेश के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे।वह खुद को संभाल नहीं पाया और वहीं जमीन पर बैठ गया।
नीतू रोते हुए बोली – नरेश पता है वो एक्सीडेंट नहीं आत्महत्या थी,सुसाइड था. जिस रिश्ते को हम बोझ समझते थे,हमारी निधि ने उससे हमें हमेशा के लिए आजाद कर दिया।नरेश हम दोनों ने अपनी बच्ची का खून किया है।नरेश फूट-फूट कर रो पड़ा।
Moral – Sacchi Kahani :दरकते रिश्ते
– दोस्तों,यह कहानी हर उस घर की है जहां मां-बाप बच्चों के सामने लड़ते हैं।ऐसे घर टूट कर बिखरते हैं और उसका सबसे बड़ा खामियाजा भर्ती हैं- बच्चे।अगर आप अपने बच्चे को अच्छी परवरिश नहीं दे सकते तो आपको बच्चे को जन्म देने का भी कोई अधिकार नहीं है।
अच्छी परवरिश रुपए-पैसे व सुख-सुविधाओं से नहीं होती।इसका मतलब यह है कि आप बच्चे की जरूरत के समय उसके कितने करीब हैं।आप अगर आज अपने बच्चों के लिए वक्त निकालेंगे तो ही कल को,जब आपको अपने बच्चों के वक्त की जरूरत होगी,वे आपके लिए अपना वक्त निकालेंगे।अत: अपने बच्चों के लिए वक्त निकालिए खास कर किशोरावस्था में कदम रखने जा रहे या रख चुके बच्चों के लिए यह बहुत ही जरूरी है।
यह उम्र गुड्डे – गुड्डियों से खेलने का नहीं होता।इस समय बच्चे भावनाओं को समझने लगते हैं।छोटी-छोटी बातों से उनकी भावनाएं आहत होने लगती हैं अत: इस उम्र में उन्हें सबसे अधिक भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है।इस कमी को रुपया-पैसा या अन्य चीजें कभी नहीं पूरी कर सकती।
आज एकल परिवार का जमाना है। जहां पति-पत्नी दोनों काम काजी हैं वहां दस में से आठ घर की लगभग यही कहानी है।अपनी नौकरी व कैरियर के फेर में लोग अपने प्रोफेशन व परिवार में तालमेल नहीं बिठा पाते।इसका खामियाजा सबसे अधिक बच्चे ही उठाते हैं खासकर औलाद अगर इकलौती है तो।
पहले संयुक्त परिवार का प्रचलन था। बच्चे भी औसतन दो तीन तो होते ही थे। अगर किसी कारण से कोई बच्चा एकलौता भी रह गया तो वह परिवार के अन्य बच्चों के साथ अपने सुख-दुःख शेयर कर लेता था। अपने मां-बाप के प्यार की कमी को चाचा , दादा,बुआ,मौसी आदि से पूरी कर लेता था पर अब ऐसा नहीं है।अत: एकल परिवार , जहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं,बच्चे गलत राह पकड़ ले रहे हें।वे अवसाद ग्रस्त होकर गलत कदम उठा रहे हैं।अत: अगर कहानी अच्छी लगी हो तो इसे दूसरे तक भी पहुंचाएं।अगर इस आलेख को पढ़ने के बाद किसी एक आदमी की जिन्दगी में भी कुछ बदलाव आया तो मुझे अपनी मेहनत पर गर्व होगा।
शिवनाथ भैया