Dard Bhari Poem In Hindi: डोली में नहीं विदा होते बेटे….
बेटे डोली में विदा नहीं होते
और बात है मगर,
उनके नाम का “ज्वाइनिंग लेटर”
आँगन छूटने का पैगाम लाता है,
जाने की तारीखों के नज़दीक आते-आते
मन बेटे का चुपचाप रोता है,
अपने कमरे की दीवारें देख-देख
घर की आखरी रात नहीं सोता है,
होश संभालते-संभालते
घर की जिम्मेदारियां संभालने लगता है,
विदाई की सोच में बेचैनियों
का समंदर हिलोरता है,
शहर, गलियाँ , घर छूटने का दर्द समेटे
सूटकेस में किताबें और कपड़े सहेजता है,
जिस आँगन में पला बढ़ा
आज उसके छूटने पर सीना चाक-चाक फटता है,
अपनी बाइक , बैट , कमरे के अज़ीज़ पोस्टर छोड़
आँसू छिपाता मुस्कुराता निकलता है,
अब नहीं सजती गेट पर दोस्तों की गुलज़ार महफ़िल
न कोई बाइक का तेज़ हॉर्न बजाता है,
बेपरवाही का इल्ज़ाम किसी पर नहीं लगाता
झिड़कियाँ सुनता खुद ही, देर तक कोई नहीं सोता है,
वीरान कर गया घर का कोना-कोना
जाते हुए बेटी सा सीने से नहीं लगता है,
ट्रेन के दरवाज़े में पनीली आंखों से मुस्कुराता है
अलगाव का दर्द ज़ब्त करता, खुद बोझिल सा लगता है,
बेटे डोली में विदा नहीं होते ये और बात है ……..
फिक्र करता माँ की मगर
बताना नहीं आता है,
कर देता है “आनलाइन” घर के काम दूसरे शहरों से
और जताना नहीं आता है,
बड़ी से बड़ी मुश्किल छिपाना आता है
माँ से फोन पर पिता की खबर पूछते
और पिता से कुछ पूछना
सूझ नहीं पाता है,
लापरवाह, बेतरतीब लगते हैं बेटे
मजबूरियों में बंधे
दूर रहकर भी जिम्मेदारियां निभाना आता है,
पहुँच कर अजनबी शहर में ज़रूरतों के पीछे
दिल बच्चा बना माँ के
आँचल में बाँध जाता है,
ये बात और है बेटे डोली में विदा नहीं होते मगर…
“सभी बेटों को समर्पित “❤️🙏