Desi Kahaniyan : बहू के गहनों का मोल नहीं था: दोपहर के 2:00 बज रहे थे। घर का दरवाजा खुला हुआ ही था। सौम्या हॉल में बैठकर खाना खा रही थी। अभी पहला निवाला मुंह में लिया ही था कि घर के बाकी सदस्य चेहरे पर उदासी लिए घर में घुसे।सौम्या ने अपना खाना जारी ही रखा। सौम्या को इस तरह खाना खाते देख सासू मां ने ताना कसा,
” यहाँ तो हम सबका खाना छूट गया है। और इसे देखो? आराम से बैठ कर खाना खा रही है। यही होते हैं बहुओं के लक्षण”
सौम्या ने उनकी बात को सुना अनसुना किया और अपने खाने पर ही फोकस रखा। सासू मां ने हाथ नचाते हुए कहा,
” यहाँ कर्जा उतारने के चक्कर में मेरे और छोटी बहू के सारे गहने बिक गए। हमारी जान मुँह को आ रही है और इसे देखो कोई फर्क ही नहीं पड़ा। खाने में देखो हलवा पूरी खा रही है”
” पहली बात तो यह कि इस घर में होता क्या है मुझे नहीं पता। दूसरी बात मेरी इच्छा मुझे क्या खाना है। और रही बात आप के गहने बिकने की तो मैं क्या कर सकती हूं? ये तो आप लोगों के कर्म थे जो लौट कर आए हैं”
सौम्या कि इतना कहते ही सासू मां कुछ कहना तो चाहती थी लेकिन अविनाश ने इशारा कर चुप करा दिया।सौम्या खाना खाकर अपने बर्तन रसोई में रखने गई। उसके बाद सीधे अपने कमरे में और वहां जाकर पलंग पर लेट गई। पलंग पर लेटे ही पिछली बातें उसके दिमाग में घूमने लगी।
उस दिन सुबह से सौम्या इधर से उधर दौड़े जा रही थी। अविनाश भी अभी तक घर नहीं पहुंचे थे। सौम्या बिल्कुल परेशान हो चुकी थी, लेकिन घर में किसी को भी इस बात से कोई लेना-देना नहीं था। आखिर देवर ने सासु मां की तरफ इशारा किया तो सासु मां ने बेरुखी से कहा,
” हमने तो पहले ही कहा था फालतू के कर्ज लेने की जरूरत नहीं है। पर सुनता कौन है? रख दिये अपने गहने गिरवी। अब परेशान हो रहे हैं। बड़ों की बात नहीं सुनेंगे तो ऐसा ही होगा”
एक बार तो सौम्या के मन में आया कि जवाब दे दूँ कि अगर आप साथ दे देती तो शायद यह नौबत नहीं आती, पर फिर चुप रह गई। एक तो वैसे भी दिमाग खराब हो रहा था और अविनाश घर पर भी नहीं आए थे। ऊपर से घर में बैठे लोग साथ देने की जगह बस छींटाकशी कर रहे थे।
खैर, सौम्या ने ध्यान ही नहीं दिया। अभी भी उसके नजरें दरवाजे की तरफ ही लगी हुई थी। उसे इसी तरह छोड़ सब ने शांति पूर्वक अपना खाना खत्म किया और अपने अपने कमरे में जाकर आराम करने लगे।थोड़ी देर बाद अविनाश घर में आता हुआ दिखा तब जाकर सौम्या की जान में जान आई। अविनाश के घर में आते ही वो सीधा अविनाश के पास जाकर बोली,
” क्या हुआ अविनाश, पैसों का बंदोबस्त हो पाया?”
सौम्या का सवाल सुनकर अविनाश बिल्कुल चुप रह गया। उसकी चुप्पी देखकर सौम्या को एहसास हो गया कि पैसो का बंदोबस्त नहीं हो पाया है। पर अविनाश की सुबह से भूखा प्यासा है यह सोचकर सौम्या ने उससे कहा,
” कोई बात नहीं पहले खाना खालो। फिर सोचते हैं कि क्या करना है”
” मैं पैसों का बंदोबस्त नहीं कर पाया “
अविनाश ने उदासी से कहा। एक बार को तो सौम्या की आंखों में भी आंसू आ गए पर फिर हिम्मत करके बोली,
“हम दोनों मिलकर इस समस्या का भी कोई ना कोई निदान कर लेंगे। तुम फिक्र मत करो। पहले खाना खा लो”
कहकर सौम्या रसोई में जाकर अविनाश के लिए खाना लगाने लगी। खाना लगाते लगाते उसकी आंखों में आंसू आ गए। कितने प्यार से पापा ने वो गहने उसकी शादी में दिए थे। कुछ गहने तो मम्मी के थे जो उन्होंने खुशी खुशी अपनी बेटी को दे दिए थे। एक एक गहने से उसकी यादें जुड़ी हुई थी।
पर पिछले साल अविनाश के बिजनेस में घाटा पड़ जाने के कारण गहने गिरवी रखवा दिये थे इस उम्मीद के साथ कि बिजनेस चल निकलेगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टा वो पैसे भी डूब गए। क्योंकि उसी बीच ननद प्रतिमा की शादी पक्की हो गई और जो पैसे बिजनेस में लगने थे वो उसकी शादी में खर्च हो गए। एक दो बार अविनाश ने मना भी किया तो सासु मां ने अच्छा खासा हंगामा खड़ा कर दिया। थक हार कर अविनाश को वो पैसे शादी में देने ही पड़े।
अब नौबत यह थी कि ब्याज देने के पैसे तक नहीं थे। बैंक से दो बार वार्निंग काॅल भी आ चुका था। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या करे?सासु माँ और देवर से मदद भी मांगी पर उन्होंने साफ मना कर दिया यह कह कर कि हम से पूछ कर कर्जा लिया था क्या? जबकि उन लोगों का काम भी अच्छा चल रहा था।
खैर खाना लगाकर सौम्या अविनाश की थाली बाहर ले कर आई तो अविनाश हॉल में नहीं था। दूसरे कमरे में से कुछ आवाजें आ रही थी। थाली वही टेबल पर रख उस कमरे की तरफ बढ़ी पर वहाँ हो रही बातचीत सुनकर उसके पैर वही ठिठक गए। सासु मां, पति और देवर की बातें सुनकर ऐसा लगा कि किसी ने पैरों को जंजीरों से बांध दिया है।
” कहां घूम रहा था इतनी देर तक अविनाश?”
” कुछ नहीं मां, बस आज अपनी पसंद की मूवी देखने गया था। पर पता नहीं क्यों सौम्या के लिए थोड़ा बुरा लग रहा है”
” अब हम क्या कर सकते हैं? अपने पापा के इलाज के लिए अपनी एफ डी दे दी, पर ननद की शादी के लिए पैसे ना निकले। क्या हुआ? उसके पापा तो मर गए और पैसे भी डूब गए”
” हां अगर भाई के बिजनेस के घाटे का बहाना ना किया होता तो भाभी गहने भी ना देती “
” हां एक पत्नी अपने पति के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। उसे तो लग रहा है कि गहने गिरवी रखे हैं पर उस बेचारी को क्या पता कि उसके गहने तो कब के बिक चुके। अगर एफ डी ननद की शादी के लिए दे देती तो गहने तो कम से कम रह जाते हैं”
सौम्या ने अचानक कमरे का दरवाजा खोल दिया। एक पल के लिए तो सब की बोलती बंद हो गई। थोड़ी देर पहले जिन आंखों में नीर भरा हुआ था अब उनसे अंगारे बरस रहे थे। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले अविनाश के गाल पर थप्पड़ रसीद किया।
” तुम पति हो मेरे??????? बोलते ही शर्म आ रही है। मेरे अपनेपन और प्यार का यह सिला दिया तुमने। मेरी भावनाओं का इस तरह अपमान किया तुमने”
” बस कर बहू। तेरी हिम्मत कैसे हुई अविनाश पर हाथ उठाने की। अभी घर से धक्के मार कर निकाल दूंगी तुझे। बाप तो रहा नहीं, भाई भाभी भी देखते हैं कितनी जगह दे देंगे तुझे तेरे मायके में”
” चुप कर बुढिया, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे बहू कहने की?”
सौम्या के मुंह से इस तरह की भाषा सुनकर सब चौंक गए।
” यह कैसे बात कर रही है तो मम्मी से? सास है वो तुम्हारी”
” भाड़ में गया मान सम्मान। और तुम्हें क्या लगता है मैं मायके जाकर बैठूंगी। कभी सोच मत लेना। इसी घर में रहूंगी और तुम्हारा सुख चैन बर्बाद करूंगी”
” हां, देखती हूं कैसे रहती है घर में? अब तो तेरा दाना पानी उठ गया इस घर से “
” सोचना भी मत क्योंकि जो तुम लोगों ने काम किया है ना उसे फ्रॉड कहा जाता है। और अगर मैंने कानूनी एक्शन लिया ना तो मैं उसको साबित भी करके दिखा दूंगी क्योंकि आपने किसी बैंक से लोन नहीं लिया है तो आपके पास ऐसा कोई पेपर्स भी नहीं है। पढ़ी लिखी हूँ। कानूनी दांव पर मुझे भी खेलने आते हैं। इसके अलावा पूरे समाज में थू थू होगी वो अलग। मुझे फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि बेशर्म लोगो के घर में रहना है तो बेशर्म बनना ही पड़ेगा”
वहां से सौम्या सीधे पुलिस थाने गई और सबसे पहले उसने पुलिस थाने में लिखवाया कि अगर मुझे कुछ भी होता है तो उसके लिए जिम्मेदार मेरे ससुराल वाले होंगे।
आज भी सौम्या उसी घर में रहती है उन लोगों की नाक के नीचे। पूरा परिवार एकजुट है पर वो अकेली। पर अब वो हर वो चीज करती है जो उसे पसंद है।
दोस्तों किरदारों के नाम बदले गये है पर यह एक सच्ची कहानी पर आधारित है। उस लड़की की हिम्मत कि वाकई में दाद देती हूं जिसने इतना बड़ा फैसला कर दिखाया। लेकिन कभी-कभी डर भी लगता है उसके लिए कि क्या वो ससुराल में सुरक्षित है?पर उसकी मुस्कुराहट हमेशा यही कहती हैं आप डरो मत। मैं सुरक्षित हूं और अब मैं किसी से डरती नहीं। आज वो अपने पैरों पर खड़ी है किसी की मोहताज नहीं।
मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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