Desi kahani Net : अब मैं अपने आप को इस्तेमाल करने नहीं दूंगी ” अरे बहु, जल्दी से तैयार हो जा। आज तेरी मामी सास का फोन आया था। कह रही थी कि वंदना का रिजल्ट बहुत अच्छा आया है। तो इसी उपलक्ष्य में छोटा सा आयोजन किया है। घर घर के लोगों को ही बुलाया है। हम सबका खाना आज वही है। कह रही थी कि आप लोग जल्दी आ जाना। और ललिता को तो जरूर से ले आना। मैं तैयार हो रही हूं, तू भी जल्दी से तैयार हो जा। अभी थोड़ी देर में ही निकलते हैं”
अभी ललिता घर में थकी हारी घुसी ही थी कि सास मालती जी ने उत्साहित होते हुए कहा।
सुनकर ललिता का मूड ऑफ हो गया। कहाँ तो सोचा था कि घर जाकर थोड़ा आराम करूंगी। अब मम्मी जी के मायके जाना पड़ेगा। सब जानती थी वो कि मामी सास क्यों बुला रही है। एक पल के लिए उसके पैर वही जम गए। उसे वहां चुपचाप खड़ा देखकर मालती जी ने कहा,
” अरे बहु जल्दी कर। हमें जल्दी ही बुलाया है। जाकर थोड़ी बहुत उनकी मदद कर देंगे। तेरी मामी सास को तो घर का खाना ही पसंद है, इसलिए कोई महाराज भी नहीं लगाती। अब हम तो घर के लोग हैं, जाकर सिर्फ खाते हुए ही तो अच्छा नहीं लगता। उनकी बहू ने भी कहा है कि ललिता भाभी को जरूर लेकर आना। इसलिए थोड़ी बहुत मदद करवा देंगे। ” मदद’
ये शब्द हथौड़े की तरह ललिता के दिमाग पर लग रहे थे। मामी सास महाराज क्यों नहीं लगाती, ये वो अच्छे से जानती थी। और इस ‘मदद’ शब्द से तो उन लोगों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। मम्मी जी जाती है उन लोगों की मदद करने के लिए। पर वो लोग तो खुद ही सारा काम ललिता पर डालकर आराम फरमाने बैठ जाते हैं। भला कौन मदद करता है उसकी?
सब तो बैठ जाते हैं पंचायती करने के लिए। और बहू होने के नाते लगा देते हैं ललिता को काम पर। अब पच्चीस पच्चीस लोगों का खाना बनाना कोई मामूली सी बात तो है नहीं। और ऐसा भी नहीं की कुछ तैयारी पहले से करके रख दी हो।
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तैयारी के नाम पर सिर्फ सामान मंगा कर रख दिया जाता है और सब्जियां सुधार कर रख दी जाती है। वो भी सुधार के कहां रखी जाती है।
सभी मौसी सास और मामी सास बैठकर पंचायती करते समय साफ कर रही होती है। इस बीच में ललिता को चाय का ऑर्डर भी देती जाती है। साथ ही साथ तारीफों के झाड़ पर भी उसकी सास मालती जी को चढ़ाती जाती है,
” अरे मालती जीजी, वाकई बड़ी खूब किस्मत पाई है आपने। जो इतनी अच्छी बहू मिली है। भाई कुछ भी हो, कहना पड़ेगा ललिता पूरा काम संभाल लेती है। ये होती है तो हम बेफिक्र हो जाते हैं। और देखो ना सब को इसी के हाथ का खाना पसंद है इसलिए सब्जी तक बनाने नहीं देते मुझे। नहीं तो मैं कम से कम सब्जी तो बना कर रख ही सकती हूं”
मामी सास अपनी चिकनी चुपड़ी बातों को कहती तो मालती जी अपनी बहू पर बलिहारी जाती।
लेकिन अभी पिछली बार की ही बात है। नाना ससुर जी का श्राद्ध था। मामी सास ने अपनी ननदों के परिवारों को और अपनी बहनों के परिवार को बुलाया था। कुल मिलाकर के चालीस लोग हो गए थे। उस दिन भी मालती जी ने ललिता की छुट्टी करवा दी। क्योंकि श्राद्ध तो सुबह ही निकलना था।
लेकिन घर का काम काज में ही ग्यारह बज गए। तब तक तो मामी जी के तीन-चार बार फोन हो आ गए,
” अरे जीजी, कब तक आओगी”
और मालती जी इसी बात पर अपनी भाभी पर बलिहारी जा रही थी कि भाभी का उनसे कितना प्रेम है। इस बार तो ललिता ने भी सोचा कि अब मामी सास की बहू आ चुकी है तो चलो मदद तो मिल ही जाएगी। मदद क्या मिल जाएगी बल्कि मैं उसकी मदद कर दूंगी। आखिर मेरी देवरानी जो ठहरी”
पर जब ललिता वहां पहुंची तो कोई तैयारी ही नहीं थी। मामी जी ने तो थोड़े से आटे की पूड़ी बना कर मिठाई और सब्जी बाजार से मंगा कर भोग लगा दिया था। और अब ललिता का इंतजार हो रहा था। जब मालती जी ने इस बारे में पूछा तो मामी जी बोली,
” अरे सबको ललिता के हाथ का ही खाना पसंद है इसलिए महाराज नहीं लगाया। और बहु अभी नयी है। उससे इतना काम नहीं होता। ललिता को तो आदत हो चुकी है। वैसे भी सबका बुलावा तो दोपहर का है “
मालती जी ने तो कुछ नहीं कहा, पर ललिता को सब कुछ समझ में आ रहा था। महाराज के पैसे बचाने के चक्कर में उससे सारा काम करवा लिया जाता है। और अब नई बहू के होते हुए भी ललिता को ही काम पर लगाया जा रहा है।
पर मालती जी के कारण आखिर वहां ललिता को ही काम पर लगना पड़ा। यहां तक कि उनकी बेटी वंदना भी ललिता की मदद के लिए नहीं आई और सहेलियों के साथ घूमने चली गई।
इस कारण इस बार चाहे कुछ भी हो जाए ललिता ने मन पक्का कर लिया था। उसे महाराज की कोई जगह नहीं लेनी। चाहे कुछ भी हो जाए उसे अब अपने आप को इस्तेमाल करने से रोकना है।
सोचते सोचते ललिता ने कहा,
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” मैं शाम को आ जाऊंगी। आप चाहो तो अभी चले जाओ”
” लेकिन मामी जी को तो तेरे हाथ का खाना पसंद है। और उन्होंने खास कर कहा है कि ललिता को लेकर आना”
मालती जी बोली।
” मम्मी जी, वो सब तो ठीक है। पर मैं अभी-अभी तो आई हूं। थक चुकी हूं। मैं शाम को ही आऊंगी”
” अरे कभी कभार तो चलता है। रोज तो आकर आराम करती ही हो ना “
मालती जी पूरा जोर लगाते हुए बोली। पर इस बार तो ललिता पूरी तरह से तैयार थी,
” नहीं मम्मी जी, आज वाकई मुझ में हिम्मत नहीं है। मैं शाम को ही आऊंगी। वैसे भी मैं कोई महाराज तो नहीं जो इतने लोगों का खाना बनाती रहूं। मामी जी की बहू अब तो थोड़ी बहुत पुरानी हो चुकी है। वो ये काम सम्भाल लेगी। आप चले जाइए। आपका मायका आपको ही मुबारक”
कह कर ललिता अंदर कमरे में चली गई। मालती जी को ललिता का ये सब कहना बुरा तो लगा, पर समझ में तो उन्हें भी आ रहा था। खैर उन्हें तो अपने मायके जाना ही था तो वो अपने मायके पहुंच गई। जाकर देखा तो वहां इस बार भी कोई तैयारी नहीं थी।
ललिता को उनके साथ न देखकर मामी जी बोली,
” अरे जीजी आप अकेली आई हो? ललिता कहां है “
” भाभी आज वो बहुत थक गई थी इसलिए वो नहीं आ पाई। वो शाम को ही आएगी “
ये सुनते तो मामी सास के पैरों तले जमीन खिसक गई। अब इतनी जल्दी महाराज कहां से मिलेगा। ऊपर से इतना सामान मंगा लिया वो अलग। अब काम को देखकर मामी जी, उनकी बहू और बेटी के हाथ पैर फूल रहे थे।
बहू ने तो हाथ खड़े कर दिए कि मुझे इतना काम नहीं होगा। या तो मिलकर मदद करवाओ या फिर किसी महाराज को बुला लो। मालती जी को भी समझ में आ गया कि उनकी बहू का सिर्फ इस्तेमाल होता था।
आखिरकार बहू और बेटी दोनों मिलकर रसोई में लगी। इधर मामी जी और मालती जी सब्जियां सुधारने लगी। लेकिन खाना बनने तक सब की हालत पस्त हो चुकी थी। शाम को जब मेहमान आने लगे तब तक वो तैयार भी नहीं हुई थी।
ललिता जब शाम को खाने के मौके पर पहुंची तो ना ही मामी जी और ना ही उनकी बहू और बेटी ने उससे ढंग से बात की। पर ललिता को फर्क नहीं पड़ा। उसने तो खाना खाया और वहां से रवाना हो गई।
अब तो ललिता ने ऐसा ही हमेशा करने लगी तो मामी सास को भी समझ में आ गया कि अब ललिता बेवकूफ बनने वाली नहीं। अब धीरे-धीरे मामी सास ने भी सिर्फ ननद ननदोई को बुलाना शुरू कर दिया। अब ना पूरे परिवार को बुलावा होता था। और बुलावा हुआ भी तो महाराज काम करते थे।