laghu kathaबापू जल्दी चलो कोचिंग का टाइम हो गया हैँ…. इतनी देर से लायें तुम रिक्शा …. कुछ छूट जायेगा तो कोनो नहीं समझायेगा मुझे…. चंचल रिक्शा चलाते अपने बापू से बोली….
बिटिया सबेरे 30 रूपये कमा आया… मुझे पता था तू लेट ना हो जायें इसलिये एक सवारी छोड़ आया…. तेरी कोचिंग का, पढ़ाई का पैसा भी तो जुटाना हैँ तेरे बापू को… ठंड में मुंह से धुआं निकालता शाल ओढ़े हुए चंचल का बापू बोला….
तो बापू मैं तो कह रही थी मुझे दो चार बच्चे पढ़ा लेने दो …. कितने बच्चे पढ़ने को आयें…. तुमने ही मना कर दी…. अब तो मेरी बी . एस .सी भी हो गयी थी….
मुझे नहीं पढ़वाना अपनी बिटिया पर बालक बच्चे… बस तू छोटी मोटी ही सही सरकारी नौकरी पा ले….. अपने पैरों पर खड़ी हो जा मेरी मुनिया… बस मेरा जीवन सफल हो जायेगा….मुझे ना चाहिए पैसा… बस तू पढ़ जायें इतना ही हो जायें ….. ठंड से कांप रहे हैँ दोनों बाप बेटी….. कोहरे को चीरते हुए बापू का रिक्शा बिटिया के सपनों को पूरा करने आगे बढ़ता जा रहा हैँ…. जिसके पैरों में ठंड से सूजन आ गयी हैँ….
लो बापू आ गयी कोचिंग…. चंचल रिक्शे से उतर गयी… अपनी पुरानी कई सालों से पहन रही जैकेट के आगे अपने बैग को कर लिया कि जैकेट का धुंधलापन छुप जायें …. चुपचाप सिकुड़ कर पीछे की सीट पर बैठ ज़ाती थी चंचल….
अबकि बार तुझे नयी जैकेट दिलवा दूँगा मुनिया…. बहुत पुरानी हो गयी ये… कैसे छुपाती फिरती हैँ…. रिक्शे से उतर अपनी बेटी को निहारता बापू बोला…
ना बापू अब तो सरकारी नौकरी लगने के बाद वो बड़ी वाली जैकेट लूँगी ज़िसमें पूरा शरीर ढक जाता हैँ…
ठाकुर जी तेरी इच्छा जल्दी पूरी करें …. ले 10 रूपये की ये मुंगफली लाया था वो तेरा जो बीच में खाने का समय होता हैँ खा लेना…
ठीक हैँ बापू … थोड़ी तुम ले लो…. तभी कोचिंग का मालिक बाहर आया… चंचल को देख बोला… तुम रोज लेट आती हो… ऐसे कैसे क्रैक करोगी कम्पटीशन …. पता है ना नेक्स्ट वीक हैँ एसएससी का पेपर…
जी सर…. अब नहीं होंगी लेट … जल्दी से बापू को नमस्ते कर चंचल कोचिंग के अंदर चली गयी…
मास्साब … मेरी मुनिया मेरे कारण लेट हो ज़ाती हैँ… वो तो सुबह 6 बजे ही तैयार हो ज़ाती हैँ… कुछ छूट जाया करें तो दुबारा समझा दिया करो उसे… पैसों की फिकर ना करो आप… और दे दूँगा … ज़ितनी फीस हैँ उस से बढ़कर दे दूँगा… बापू हाथ जोड़कर सर से बोला..
नहीं नहीं… ऐसी कोई बात नहीं…. वो हम समझा देंगे… जाओ अपनी रोजी रोटी देखो… बेटी के लिए हम हैँ….
अगले सप्ताह एसएससी का पेपर हो गया… बापू रिक्शे से काफी दूर पड़े पेपर के सेंटर लेकर गया…. वहां पूरे दिन रुका रहा… बस ऊपर वाले को याद करता रहा…. एक परीक्षा अंदर चंचल दे रही थी… एक बाहर उसका बापू…
पेपर के बाद चंचल अगली परीक्षा की तैय़ारी में लग गयी …..
किसी ने रास्ते में चंचल के बापू से बोला… रिक्शा चलाना छोड़ दे अब… जा घर तेरी लड़की अधिकारी बन गयी…. बापू को विश्वास नहीं हुआ…. हांफता हुआ रिक्शा लेकर घर आया… उसका घर में जाना मुश्किल हो रहा था… इतनी भीड़ जो लगी थी उसके घर पर… जा जाने कितने लोगों ने उसकी पीठ थपथपायी … अन्दर मीडिया के लोग बैठे थे… जो चंचल और उसकी अम्मो भाई को घेरे हुए थे… बापू को देख कैमरा उसकी तरफ हो गया….
एक पर एक प्रश्न बापू से किये जा रहे…. कि एक रिक्शे वाले ने लड़की को अपनी मेहनत और उसकी लगन से अधिकारी बना दिया… घर के एक एक कोने की वीडियो बन रही थी कि चंचल यहां पढ़ती थी… यहां खाना बनता था… बरसात में टपकती इस झोपड़ी में रहती थी…. इससे पहले तो कोई जानने नहीं आया कि एक रिक्शे वाले ने अपनी मुनिया को कैसे पढ़ाया…. भ्ई यहीं समाज हैँ.. जहां असफलता में आपको कोई नहीं पूछेगा .. … और सफलता शोर मचाती हैँ…. कुछ भी हो आज़ चंचल अधिकारी बन गयी … चंचल ने बापू के गंदे छाले पड़े हाथों को जी भरकर चूम लिया…. बापू भी बिफर पड़ा …. अपनी मुनिया को सीने से चिपका लिया… आखिर एक और गरीब आदमी की लड़की अधिकारी जो बन गयी थी … रोज अखबार में पढ़ता था… आज मेरी मुनिया ने कर दिखाया…. आँखों में आयें ख़ुशी के आंसुओं को उसने आज रोका नहीं…
बापू रिक्शा अभी भी चला रहा हैँ… ये पिता बड़े स्वाभीमानी होते हैँ… बच्चों को आसमान की बुलंदियों पर पहुँचा देते हैँ पर खुद अपनी ज़ड़ो से जुड़े रहते हैँ…
मीनाक्षी सिंह