Choti Bahu Short Story: “मम्मी जी के लिए यह साड़ी कैसी रहेगी?..आप जरा देखकर बताइए।”
मॉल से कपड़े खरीदती रागिनी ने अपनी सास के लिए एक साड़ी पसंद कर अपने पति राजीव की ओर बढ़ा दिया।
“मांँ को हल्के रंग की साड़ी पसंद आती है!.उन्हें गाढ़ा रंग पसंद नहीं।”
यह कहते हुए राजीव ने रागिनी को अपनी तरफ से सलाह दी।
पूरे परिवार के लिए कपड़ों की खरीददारी करती रागिनी उस साड़ी को गौर से देखने लगी..
“इस साड़ी का फैब्रिक बहुत अच्छा है!.मम्मी जी को यह साड़ी जरूर पसंद आएगी।”
यह कहते हुए अपने हाथ में उठाई उस साड़ी पर हल्के हाथ फेरती रागिनी मुस्कुराई..
“ठीक है!.ले लो।”
राजीव ने भी सहमति जता दी लेकिन साड़ी पर लगे टैग पर उस साड़ी की कीमत देख राजीव चौंक गया..
“इतनी महंगी साड़ी मांँ के लिए!”
“महंगी कहांँ है!.मात्र पांच हजार की ही तो है और वैसे भी इस मॉल में डिस्काउंट बहुत रहता है,.आप चिंता ना करें श्रीमान।”
राजीव के चेहरे के भाव देख रागिनी मुस्कुराई लेकिन फिर भी राजीव को उस साड़ी की कीमत बहुत ज्यादा लग रही थी।
लेकिन रागिनी ने वह साड़ी कार्ट में रख ली और घर के अन्य सदस्यों के लिए भी कपड़े पसंद करने लगी।
असल में रागिनी एक संयुक्त परिवार की सबसे छोटी बहू थी और अभी-अभी उसकी नई जॉब लगी थी इसलिए वह अपनी पहली तनख्वाह से अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए अपनी खुशी से कपड़े खरीद कर उन्हें उपहार स्वरूप देना चाहती थी।
अपनी पत्नी की इच्छा में राजीव ने भी खुशी-खुशी सहमति जताई थी लेकिन अभी-अभी रागिनी द्वारा खरीदे जा रहे साड़ी की कीमत देख उसका मन विचलित हो रहा था।
परिवार के सदस्यों के लिए इतनी मार्केटिंग खुद कभी न करने वाले राजीव को रागनी द्वारा खरीदे जा रहे कपड़ों की कीमत बहुत ज्यादा लग रही थी।
इधर रागिनी ने अपनी समझ से सबके लिए खरीदारी कर ली थी और वह दोनों घर वापस लौट आए।
घर पहुंच कर रागिनी उन कपड़ों को एक-एक कर घर के सभी सदस्यों को देने के लिए अलग कर रही थी तब राजीव बोल उठा..
“रागिनी!. इन कपड़ों से टैग अलग कर दो,.इन कपड़ों की कीमत सभी को बताने की क्या जरूरत?”
अपने पति की बात सुनकर रागिनी मुस्कुराई,..
“अभी नहीं!”
राजीव हैरान हुआ क्योंकि रागिनी हमेशा से बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी उसे दिखावा करना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन आज उसका रवैया देख राजीव को कुछ अटपटा लगा।
लेकिन वह रागिनी के साथ कलह करना नहीं चाहता था लेकिन फिर भी अनुरोध कर बैठा..
“टैग में क्या रखा है रागिनी!.प्लीज इसे हटा दो ना!”
“नहीं राजीव!.आप टेंशन क्यों लेते हो।”
यह कहते हुए रागिनी उन कपड़ों के सारे पैकेट उठा अपने कमरे से बाहर निकल गई।
राजीव चुपचाप अपने कमरे में ही बैठा रहा वह मन ही मन सोच रहा था कि,..
किसी और के कपड़ों से ना सही लेकिन रागिनी को कम से कम पिताजी के बुशर्ट से टैग हटा देना चाहिए था।
इसी उधेड़बुन में पड़ा राजीव अपने कमरे से बाहर नहीं गया लेकिन थोड़ी देर में ही रागिनी को ढूंढती राजीव की मांँ यानी रागिनी की सास रत्ना जी उसके कमरे में आ पहुंची..
“क्या ढूंढ रही हो मांँ?”
Read More : बेटा करे तो गलत, दामाद करे तो सही
अपनी मांँ के हाथ में टैग लगा वह बुशर्ट देख राजीव पूछ बैठा जिसे रागिनी मॉल से उसके पिताजी के लिए लाईं थी।
“बेटा!.यह बुशर्ट बदलना होगा।”
“क्यों माँ?.ऐसा भी क्या हो गया?”
अपनी मांँ की बात सुनकर राजीव चौंक गया कि हो ना हो रागिनी के दिखावे के चक्कर में कुछ गड़बड़ जरूर हुआ होगा!. तभी पिताजी ने मांँ के हाथों वह बुशर्ट वापस भिजवा दिया है।
बेटे के चेहरे के अचानक बदले भाव देख रत्ना जी ने उसे आश्वस्त किया..
“बेटा!. तुम इतना क्यों परेशान हो रहे हो?.यह बुशर्ट तुम्हारे पिताजी को बहुत पसंद है लेकिन आजकल तुम्हारे पिताजी लार्ज साइज नहीं पहनते,.एक्सेल पहनने लगे हैं!. थोड़े मोटे जो हो गए हैं।”
अपनी मांँ की बात सुनकर राजीव हंस पड़ा तभी रागिनी भी कमरे में आ पहुंची..
“मम्मी जी!.आप चिंता ना करें मैं कल यह बुशर्ट बदलकर एक्सेल साइज में ले आऊंगी।”
“बेटा!. इसे वापस करने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी ना?” रत्ना जी ने चिंता जताई।
“बिल्कुल नहीं मम्मी जी!..इसीलिए तो मैंने किसी के भी कपड़ों से टैग नहीं हटाया था!..मुझे रंग और फैब्रिक पसंद करना तो आता है लेकिन साइज में मुझसे अक्सर गलतियांँ हो जाती है।”
रागिनी के चेहरे पर मुस्कान थी और अपनी बहू की समझदारी देख रत्ना जी भी मुस्कुरा उठी।
अब तक अपनी पत्नी की समझदारी पर शक कर रहा राजीव भी रागिनी की समझदारी का लोहा मान मुस्कुराए बिना न रह सका।
आभार :-पुष्पा कुमारी पुष्प
पुणे (महाराष्ट्र)